घनिष्ठ मित्रता

विगत दिनों अमरीका के सफल दौरे के बाद अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फ्रांस की दो दिवसीय यात्रा को भी बेहद सफल कहा जा सकता है।  इस दौरे ने एक बार पुन: विश्व भर में भारत की चर्चा शुरू कर दी है। फ्रांस में बड़ी संख्या में रह रहे भारतीय मूल के व्यक्तियों को सम्बोधित करते हुए भी श्री मोदी ने न सिर्फ भारत की उपलब्धियों को ही गिनाया, अपितु लम्बी अवधि से चले आ रहे फ्रांस के साथ भारत के घनिष्ठ संबंधों का भी ज़िक्र किया है। उन्होंने यह भी कहा कि फ्रांस में रह रहे भारतीय मूल के लोग यहां के विकास तथा सामाजिक गतिविधियों में अपना बड़ा योगदान डाल रहे हैं। जहां तक फ्रांस का संबंध है, हम समझते हैं कि एशिया में जापान तथा यूरोप में फ्रांस के साथ दशकों से ही भारत के अच्छे संबंध बने रहे हैं। फ्रांस के साथ सांस्कृतिक संबंधों के अतिरिक्त अंतरिक्ष, रक्षा तथा शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग के अलावा दोनों देश आपसी व्यापार तथा निवेश बढ़ाने में भी अहम योगदान डालते रहे हैं। दशकों से बड़ी फ्रांसीसी कम्पनियों ने भारत में काम करके इसकी अर्थ-व्यवस्था को मज़बूत किया है।
दोनों देशों के आपसी संबंध सदियों से बने रहे हैं। फ्रांस ने भी पुर्तगाल, स्पेन तथा इंग्लैंड की तरह विश्व भर में अपने पांव पसारे। इन देशों ने ज्यादातर अफ्रीकी तथा एशियाई देशों में अपनी बस्तियां कायम करके लम्बे समय तक उन पर शासन किया। भारत में भी अंग्रेज़ तथा फ्रांसीसी लगभग एक समय में ही दाखिल हुए, चाहे यह आये तो व्यापार करने थे परन्तु धीरे-धीरे अपने आधुनिक हथियारों तथा चुस्त नीतियों से इन्होंने भारत में पांव पसारने शुरू कर दिये थे। इसी कारण इन दोनों देशों के आपस में कड़े टकराव भी होते रहे। भारत में ही दोनों की आपसी लड़ाइयां भी हुईं। अंतत: अंग्रेज़ इनमें जीत गए तथा उन्होंने समय पाकर पूरे भारत पर कब्ज़ा कर लिया। फ्रांसीसी मद्रास के निकट पुडूचेरी (पांडीचेरी) के क्षेत्र तक ही सीमित रह गये। 19वीं सदी में यूरोप में फ्रांस के सेना प्रमुख तथा बाद में बने बादशाह निपोलियन के साथ अंग्रेज़ों तथा अन्य यूरोपीय देशों के भीषण युद्ध हुए, जिनमें निपोलियन की हार हुई तथा फ्रांस को उस समय निराशा का मुंह देखना पड़ा।  बिल्कुल उसी समय पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह ने अपना शासन कायम कर लिया था। उन्होंने निपोलियन के नेतृत्व में यूरोपियन युद्धों में हारे हुये जरनैलों को इसलिए शरण दी ताकि वह महाराजा की सेना को आधुनिक मार्ग पर डाला जा सके। फ्रांस के साथ ही उन्होंने इटालियन जरनैलों को भी अपनी सेना में शामिल किया। उसके बाद पहले तथा दूसरे युद्ध में, भारतीय सेना जिनमें खास तौर पर पंजाबी सैनिक शामिल थे, ने भाग लिया था। इन युद्धों में इंग्लैंड तथा फ्रांस इकट्ठे थे इसलिए उस समय ज्यादातर पंजाबी सैनिकों ने फ्रांस तथा बैल्जियम में हुए युद्धों में अपना बड़ा योगदान डाला तथा अपनी बहादुरी का लोहा भी मनवाया।
उस समय के बाद भी फ्रांस के भारत के साथ संबंध बने रहे। 1947 में भारत की आज़ादी के बाद दोनों देशों के संबंध लगातार हर पक्ष से मज़बूत होते रहे। इसलिए जहां फ्रांस के नेता अक्सर भारत के दौरे करते रहे वहीं भारतीय नेता भी फ्रांस की यात्राएं करते रहे हैं। इसी क्रम में ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस यात्रा को देखा जा सकता है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुयल मैक्रोन जोकि मोदी के बहुत नज़दीक रहे हैं, ने उन्हें फ्रांस के मनाए जा रहे राष्ट्रीय दिवस पर विशेष रूप से मुख्य अतिथि बनने का निमंत्रण भेजा था। इसीलिए ही भारतीय प्रधानमंत्री का वहां भावपूर्ण तथा जोश भरा स्वागत किया गया। इसके साथ ही यह भी गर्व की बात कही जा सकती है कि फ्रांस की एक राष्ट्रीय परेड में भारतीय सेना की तीनों सेनाओं के सैनिकों की टुकड़ियों ने भाग लिया, जिसमें विशेष रूप से पंजाबी बटालियन भी शामिल थी। इस संक्षिप्त दौरे में 26 राफेल विमानों तथा तीन अत्याधुनिक पन-डुब्बियों के सौदे से निश्चय ही भारत की सैनिक शक्ति में और भी वृद्धि होगी। इस यात्रा से दोनों देशों के संबंधों के हर पक्ष से और भी घनिष्ठ होने की सम्भावना है, जो दोनों देशों के लिए लाभदायक सिद्ध होंगे।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द