मंत्रिमंडल में फेरबदल-हर सहयोगी का बनेगा एक मंत्री

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सिद्धांत पर कायम है कि सहयोगी पार्टी कितनी भी बड़ी हो उसे केंद्र में सिर्फ एक मंत्री पद मिलेगा। इसी सिद्धांत की वजह से 2019 के चुनाव के बाद जब सरकार बन रही थी, तब उस समय की सहयोगी जनता दल (यू) के साथ बदमजगी हुई थी। हालांकि बाद में आरसीपी सिंह अकेले मंत्री बने, लेकिन उससे पहले नितीश कुमार ने तीन मंत्री पद मांगे थे। जनता दल (यू) की तरफ  से यह तर्क दिया गया था कि एक-एक, दो-दो सांसदों वाली पार्टी का भी एक मंत्री बनेगा और 16 सांसदों वाली पार्टी का भी एक मंत्री बनेगा तो यह ‘टके सेर भाजी, टके सेर खाजा’ वाली बात हो जाएगी, लेकिन उसकी एक नहीं सुनी गई। 
बताया जा रहा है कि अब भी अगर केंद्र सरकार में फेरबदल होता है तो हर सहयोगी पार्टी को एक ही मंत्री पद मिलेगा। शिव सेना के एकनाथ शिंदे गुट के पास 13 सांसद हैं, लेकिन उनकी पार्टी से सिर्फ  राहुल शेवाले के मंत्री बनने की चर्चा है। इसी तरह राकांपा के अजित पवार गुट से भी एक मंत्री बनाया जा सकता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सदस्य प्रफुल्ल पटेल मंत्री बन सकते हैं। उधर, अगर अकाली दल की राजग मे वापसी होती है तो हरसिमरत कौर बादल फिर से मंत्री बन सकती हैं। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान का मंत्री बनना तय बताया जा रहा है। तेलुगू देशम पार्टी अगर राजग से जुड़ती है तो उसका भी एक मंत्री बनेगा।
नहीं मिल रहा चावलों की खरीदार
केन्द्र सरकार ने राजनीतिक कारणों से अचानक राज्यों को चावल बेचने पर रोक तो लगा दी, लेकिन अब उसके चावल के खरीदार नहीं मिल रहे हैं। पिछले दिनों केन्द्र सरकार ने भारतीय खाद्य निगम यानी एफसीआई को निर्देश दिया था कि वह घरेलू बाज़ार के लिए लागू ओपन मार्केट स्कीम के तहत राज्यों को चावल बेचना बंद करे। इसके बदले सरकार ने ई-ऑक्शन के जरिए चावल बेचने का निर्देश दिया। सरकार ने जब यह आदेश जारी किया तो कहा गया कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार की मुफ्त चावल बांटने की योजना को फेल करने के लिए ऐसा किया जा रहा है। कर्नाटक सरकार ने बाज़ार की कीमत पर चावल खरीदने की इच्छा जताई थी, फिर भी उसे चावल नहीं मिला। अब खबर है कि एफसीआई ने चावल की नीलामी शुरू की तो उसे खरीदार नहीं मिल रहा है।
 सरकारी आदेश के मुताबिक नीलामी की प्रक्रिया में सिर्फ  निजी खरीदार ही हिस्सा ले सकते हैं। राज्य सरकारों को इसमें हिस्सा लेने की अनुमति नहीं है। एफसीआई ने 3.86 लाख मीट्रिक टन चावल की नीलामी का टेंडर किया था, लेकिन उसको सिर्फ 170 मीट्रिक टन की बोली मिली। एफसीआई ने नीलामी की कीमत प्रति क्ंिवटल 3,173 रखी है और जिस 170 मीट्रिक टन की बोली लगी है उसकी औसत कीमत 3,175.35 रुपये रही जबकि कर्नाटक सरकार 3400 रुपये प्रति क्ंिवटल की कीमत पर खरीदने को तैयार थी।
शिंदे पांचवे शिकार होंगे अजित पवार के!
अजित पवार को लेकर पिछले कुछ दिन से कई संयोगों की चर्चा हो रही है, जिसमें एक संयोग यह है कि वह जिस मुख्यमंत्री की सरकार में उप-मुख्यमंत्री बनते हैं, वह समय से पहले हट जाता है या उसका कद छोटा हो जाता है। अब तक वह चार मुख्यमंत्रियों के साथ उप-मुख्यमंत्री बने हैं और किसी ने कार्यकाल पूरा नहीं किया। उलटे सबका कद छोटा हुआ या वह किसी न किसी मुश्किल में फंसा। अजित पवार सबसे पहले अशोक चव्हाण की सरकार में उप-मुख्यमंत्री बने थे। अशोक चव्हाण पर आदर्श सोसायटी घोटाले का आरोप लगा और उनको मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। उनकी जगह पृथ्वीराज चव्हाण मुख्यमंत्री बने, जिसमें फिर अजित पवार उप-मुख्यमंत्री बने। उनकी कमान में कांग्रेस बुरी तरह से हारी, जिसके बाद देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने। इसके बाद अजित पवार 2019 के नवम्बर में फडणवीस की सरकार में उप-मुख्यमंत्री बने, लेकिन इस बार फडनवीस चार दिन ही मुख्यमंत्री रह पाए। फिर फडणवीस की जगह उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने तो अजित पवार उनकी सरकार में उप-मुख्यमंत्री बन गए। 
अढ़ाई साल बाद ठाकरे की न सिर्फ  सरकार गिरी, बल्कि पार्टी भी टूट गई। अब एकनाथ शिंदे की सरकार में अजित पवार उप-मुख्यमंत्री हैं और उनके बनने के एक हफ्ते के भीतर ही स्पीकर ने शिंदे को अयोग्य ठहराने की मांग वाली उद्धव ठाकरे गुट की याचिका पर सुनवाई शुरू कर दी है। यह भी कहा जा रहा है कि उन पर इस्तीफा देने का दबाव है। इसीलिए कहा जा रहा है कि अजित पवार का पांचवां शिकार शिंदे हो सकते हैं।
शरद पवार को एनटीआर बनाने की कोशिश 
प्रादेशिक पार्टियों में हुई बगावत में एकाध अपवाद को छोड़ दें तो अब तक संस्थापक नेता पार्टी बचाने में कामयाब होते रहे हैं। संस्थापक नेताओं के जीवित रहते उनकी इच्छा के विरुद्ध पार्टी पर कब्जे की कामयाबी की एकमात्र कहानी तेलुगू देशम पार्टी की है। एन.टी. रामाराव की आंखों के सामने उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने उनकी बनाई पार्टी पर कब्जा कर लिया। एन.टी. रामाराव ने अपनी दूसरी पत्नी को पार्टी की कमान देने की कोशिश की थी, लेकिन नायडू ने बाकी परिजनों के साथ मिल कर पार्टी पर कब्जा कर लिया। क्या महाराष्ट्र में एन.टी. रामाराव की कहानी दोहराई जाएगी या पवार अपनी पार्टी बचा लेंगे? अजित पवार ने अपने चाचा की पार्टी पर कब्जे का पूरी योजना बनाई हुई है, जिसमें भाजपा उनकी मदद कर रही है। जिस तरह से एकनाथ शिंदे शिव सेना तोड़ कर अलग हुए और चुनाव आयोग ने उनकी पार्टी को असली शिव सेना मान लिया, उसी तरह से राकांपा के साथ भी हो सकता है, लेकिन सवाल है कि क्या शरद पवार हार मान कर घर बैठ जाएंग? ऐसा होने की संभावना कम है। शरद पवार लड़ेंगे। 
ज़रूरत पड़ी तो नई पार्टी बनाएंगे और पूरी कोशिश करेंगे कि उनकी विरासत अजित पवार के पास न जाए। इस लिहाज़ से महाराष्ट्र का अगला चुनाव देश के किसी भी राज्य के मुकाबले ज्यादा दिलचस्प होगा। वहां इस पर नज़र रहेगी कि शरद पवार और अजित पवार की पार्टी में से कौन बाजी मारती है। अगर पार्टी तोड़ने का पूरा खेल शरद पवार का हुआ तो बात अलग है।
सिर्फ  केजरीवाल को व्यापारियों की चिंता 
ऐसा लग रहा है कि देश के व्यापारियों की चिंता अकेले अरविंद केजरीवाल को है, क्योंकि वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी को धन शोधन निरोधक कानून (पीएमएलए) के दायरे में लाने और ईडी को इस मामले में शामिल करने के फैसले का विरोध सिर्फ आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल ने किया है। उन्होंने इसे बड़ा मुद्दा बनाया है। हालांकि हैरानी की बात है कि पिछले दिनों हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में यह मुद्दा नहीं बना। केजरीवाल ने सभी राज्यों से अपील की थी कि वे इसका विरोध करें और बदलने की मांग करें। उनकी पार्टी लगातार ट्वीट कर रही है कि 1.38 करोड व्यापारियों को इस बदलाव से बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। केजरीवाल का दावा है कि जीएसटी भरना बहुत तकनीकी काम है और जरा-सी भी गड़बड़ी पर पीएमएलए की धाराएं लग जाएंगी और ईडी गिरफ्तार कर लेगी। यह सचमुच देश के व्यापारियों के लिए बहुत मुश्किल पैदा करने वाला होगा। उन पर हमेशा तलवार लटकी होगी और कारोबार करना मुश्किल होगा। गौरतलब है कि केजरीवाल जब पहली बार सत्ता में आए थे तो उन्होंने वैट के छापे बंद कराने का ऐलान किया था और बंद करा भी दिए थे। उसकी वजह से कारोबारी उनके साथ जुड़े थे। अब जीएसटी को पीएमएलए के दायरे में लाना और ईडी को अधिकार देना ऐसा ही मुद्दा है, जिस पर केजरीवाल देश भर के व्यापारियों का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।