आपदा प्रबंधन में जापान से सीख लेने की आवश्यकता

भारत में कई वर्षों बाद भीषण वर्षा के कारण बाढ़, भूस्खलन और नदियों में उफान आने से उत्तरांचल, उत्तराखंड, दिल्ली और पंजाब भीषण त्रासदी झेल रहे हैं और जन हानि भी हुई है। विश्व में कई देशों में भारी वर्षा से बाढ़ भी आती है, भूस्खलन भी होता है, परन्तु सर्वाधिक मौतें भारत में ही होती हैं। भारत में भूकम्प भी आता है और जन-धन की हानि भी अधिक होती है।
यह ऐसा तो है नहीं कि अति वर्षा कई सालों में एक बार होती हो। कोई न कोई प्राकृतिक आपदा लगभग प्रत्येक वर्ष आती है। ऐसे में केंद्र तथा राज्य सरकारों को आपस में सामंजस्य कर आपदा तथा विपदा का पहले से प्रबंध करने की आवश्यकता होनी चाहिए जिससे आमजन को जान माल का कम से कम नुकसान हो सके। आपदा सदैव अनापेक्षित घटना होती है। 
जो मानवीय नियंत्रण से बाहर तथा प्राकृतिक व मानवीय कारकों द्वारा मूर्त रूप दी जाती है। प्राकृतिक आपदा अल्प समय में बिना किसी पूर्व सूचना के आती है, जिससे मानव जीवन के सारे क्रियाकलाप अवरुद्ध हो जाते है, जन-धन की बड़ी हानि होती है। प्राकृतिक आपदाएं समाज तथा देश को आर्थिक तथा अन्य पक्षों से बड़ी हानि पहुंचाती हैं। 
आपदा प्रबंधन में जापान से सीख ली जा सकती है, क्योंकि जापान आपदा प्रबंधन में विश्व में अग्रणी देश माना जाता है। जापान पृथ्वी के ऐसे क्षेत्र में स्थित है, जहां भूकम्प, सुनामी, ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक आपदाएं सदैव आती रहती हैं। जापान में आपदा प्रबंधन की अत्याधुनिक तकनीक को ‘याकोहामा रणनीति’ कहा जाता है। जापान में आपदा प्रबंधन की साल भर नियमित रूप से मॉनिटरिंग कर अभ्यास किया जाता है। सम्भावित आपदाओं पर नज़र रखी जाती है, एवं इसके निदान के लिए पूर्व से ही सुनियोजित योजना बनाकर नागरिकों को सुरक्षित कर लिया जाता है। भारत को भी इस तरह के आपदा प्रबंधन को अपनाकर बाढ़, अतिवृष्टि, भूस्खलन तथा भूकम्प का पूरी क्षमता तथा विशेषताओं के साथ सामना करना चाहिए।
आपदाएं समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग को ज्यादा प्रभावित करती हैं। समाज के सबसे संवेदनशील वर्ग यानी वृद्धों, महिलाओं, बच्चों एवं दिव्यांग लोगों को  प्राकृतिक आपदा में सबसे अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। 
भारत के भू-भाग का लगभग 58 प्रतिशत क्षेत्र भूकम्प की संभावना वाला क्षेत्र है, जिसमें हिमालयन क्षेत्र, पूर्वोत्तर राज्य, गुजरात का कुछ क्षेत्र अंडमान निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं। देश के 65 से 68 प्रतिशत भू-भाग पर कभी कम कभी ज्यादा सूखा पड़ता है, इसी तरह भारत के पश्चिमी और प्रायद्वीपीय राज्य में मुख्यत: शुष्क तथा अर्ध शुष्क न्यून नमी वाले क्षेत्र सूखे से सदैव प्रभावित रहते हैं। देश के 12 प्रतिशत क्षेत्र में बाढ़ की सम्भावना रहती है। देश के पर्वतीय क्षेत्र मैं भूस्खलन की आशंका सदैव बनी रहती है। देश के विशाल तटवर्ती क्षेत्र में चक्रवात तथा सुनामी का खतरा भी रहता है। भारत को आपदा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विभाग को चुस्त-दुरुस्त तथा अत्याधुनिक तकनीक से युक्त रखने की आवश्यकता है। भारत को आपदा प्रबंधन के सिस्टम पर आकलन कर एक नई व्यूह रचना बनाकर लोगों की सुरक्षा के लिए आगामी प्रबंध करने चाहिए, क्योंकि आपदा कभी बताकर नहीं आती। 
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