बच्चों के लापता होने की समस्या

देश में लापता हो जाने वाले बच्चों की संख्या में एकाएक फिर हुई वृद्धि ने जहां देश और समाज के रहनुमाओं को चौंकाया है, वहीं जन-साधारण की चिन्ताओं में भी बड़ा इज़ाफा किया है। विगत कुछ वर्षों से देश और समाज में से बच्चों और महिलाओं के लापता होने की घटनाओं और इनकी होने वाली चर्चा के दृष्टिगत केन्द्र सरकार की ओर से संसद में जारी किये गये आंकड़े काफी सनसनीपूर्ण और दिला को दहला देने वाले हैं। इन आंकड़ों के अनुसार देश भर में पिछले पांच वर्ष में पौने तीन लाख से अधिक बच्चे लापता हुए हैं, अथवा उनका अपहरण किया गया है। गायब होने वाले बच्चों को लेकर सर्वाधिक दुरावस्था मध्य प्रदेश की है जहां 61 हज़ार से अधिक बच्चे लापता हुए। 49 हज़ार लापता बच्चों के साथ प. बंगाल दूसरे स्थान पर आता है। राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में भी स्थिति चिन्ताजनक है जबकि हिमाचल और हरियाणा में स्थिति कमोबेश नियंत्रण में पाई गई है। पंजाब में विगत 10 वर्षों ंमें 10 हज़ार लोगों के लापता होने की सूचना है, अर्थात प्रतिदिन तीन बच्चे गुम होते रहे हैैं। कुल लापता होने वाले लोगों में आधे दोआबा क्षेत्र से हैं, और कि इनमें बच्चों की संख्या अधिक है।
केन्द्र और राज्यों की सरकारें अक्सर बालिकाओं और महिलाओं की सुरक्षा के दावे करती हैं किन्तु केन्द्रीय मंत्री की अपनी रिपोर्ट के अनुसार देश भर में गायब होने वाले बच्चों में महिलाओं और बच्चियों की संख्या लड़कों से अधिक होती है। दिल्ली, जम्मू-कश्मीर और चंडीगढ़ में भी ऐसे आंकड़े भयावह हैं। वर्ष 2011 में भारत भर में 35000 बच्चे लापता हुए थे, किन्तु इन आंकड़ों में प्रत्येक वर्ष होती वृद्धि के दृष्टिगत आज स्थिति यह हो गई है कि आज यह आंकड़ा प्रति वर्ष 55000 से अधिक हो गया है। इस स्थिति की गम्भीरता का पता इस एक तथ्य से चल जाता है कि प्रत्येक आठ मिनट बाद एक बच्चा लापता हो जाता है अथवा उसका अपहरण हो जाता है। 
इन बच्चों के अपहरण अथवा इनके लापता होने के पीछे अनेक कारण उत्तरदायी हो सकते हैं किन्तु एक बड़ा कारण ़गरीबी और अनपढ़ता भी है। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया का हर छठा बच्चा बेहद ़गरीबी की दलदल में ग्रस्त है। विश्व बैंक ने भी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि धन और समृद्धि के असमान वितरण से ़गरीबी और भूख की स्थिति गम्भीर हुई है। इसी रिपोर्ट के अनुसार निरक्षरता भी बच्चों में ़गरीबी बढ़ाने का कारण बनती है। ऐसे बच्चों की सर्वाधिक संख्या भारत, पाकिस्तान, नेपाल और बंगलादेश में है। प्राय: हर देश में ऐसे बच्चों को जीने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। वैसे भी, देश के कुल ़गरीबों की संख्या में आधे से अधिक बच्चे ही होते हैं।
इस रिपोर्ट के अनुसार इन लापता होने वाले बच्चों में लड़कों को ज़बरदस्ती भिक्षा-वृत्ति अथवा तस्करी आदि हेतु विवश किया जाता है जबकि लड़कियों में से अधिक को वेश्यावृत्ति की दलदल में धकेल दिया जाता है। भिक्षा-वृत्ति हेतु विवश किये जाने से पूर्व अधिकतर बच्चों के अंग-भंग कर दिये जाते हैं ताकि उनकी भिक्षा की राशि में वृद्धि हो सके। ऐसी भिक्षा-वृत्ति बाकायदा एक घृणित व्यवसाय बन चुका है। भिक्षा-वृत्ति के धंधे में गये इन बच्चों में से 60 प्रतिशत तक अपराध की दुनिया की ओर अग्रसर हो जाते हैं।  इन बच्चों के कारण ही देश में भिखारियों की संख्या में भी प्रत्येक वर्ष वृद्धि दर्ज की जाती रहती है। विगत वर्ष किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार देश में 4 लाख, 13 हज़ार 760 भिखारी थे जिनमें से 2 लाख से अधिक महिलाएं अथवा लड़कियां थीं। इन बच्चों और महिला भिखारियों में से अधिकतर जब्री भिक्षा-वृत्ति कराने वाले आपराधिक गिरोहों का शिकार होते हैं। इन महिलाओं को भी अन्तत: वेश्या-वृत्ति के धंधे की ओर धकेल दिया जाता है। एक बड़ी समस्या यह है कि लापता हो जाने वाले इन बच्चों में से अधिकतर दुर्भाग्य का शिकार हो जाते हैं। इनमें से कइयों को तो एक से दूसरे और फिर तीसरे गिरोह के पास, आगे से आगे कई-कई बार बिकना पड़ता है। बहुत कम भाग्यशाली बच्चे ऐसे होते हैं जिन्हें सम्बद्ध प्रदेश का प्रशासन अथवा पुलिस तंत्र ढूंढ पाता है। ऐसे अनेकानेक बच्चों को ढूंढने में कामयाब रहने वाले राज्यों में केरल सबसे आगे है जबकि, हरियाणा राज्य की इस संबंध में कारगुज़ारी भी उल्लेखनीय रही मानी जाती है। जो बच्चे इस त्रासदी के जंगल में से बच कर लौट भी आते हैं, वे भी उम्र भर तनाव और अवसाद का शिकार बने रहते हैं।
हम समझते हैं कि बेशक यह समस्या विश्व-व्यापी है, किन्तु भारत में इस का दंश कुछ अधिक तीव्र और पीड़ादायक रहा है। यही कारण है कि पिछले दिनों इस मुद्दे को लोकसभा में भी उठाया गया जिसे लेकर अन्तत: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को जवाबदेह होना पड़ा। प्रस्तुत आंकड़े इसी मंत्रालय द्वारा जारी किये गये हैं। नि:संदेह बच्चे इस देश का सरमाया हैं। इन्हीं में से कोई बड़ा होकर ‘बड़ा आदमी’ भी बन सकता है। भारत में अपराध की यह विष-बेल बहुत गहरे तक जा चुकी है। इसे समूल नष्ट करने के लिए इसकी जड़ों पर भीतर से भरपूर प्रहार करना पड़ेगा। देश और समाज में अपराध बढ़ने का एक बड़ा कारण यह समस्या भी है। नशीले पदार्थों की तस्करी में भी इन बच्चों का इस्तेमाल किया जाता है। इस समस्या को खत्म करने हेतु जितनी शीघ्र यत्न किये जायेंगे, उतना ही देश और समाज के लिए उत्तम रहेगा।