‘इंडिया’ ने मोदी और राजग का बहुत कुछ दांव पर लगा दिया

चेन्नई भारत में एक स्पष्ट रूप से प्रभावी विपक्षी गठबंधन के उद्भव के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 2024 के लोकसभा चुनावों में अपने तीसरे कार्यकाल को सुनिश्चित करने के लिए लोकसभा में आवश्यक संख्या को लेकर अधिक उत्साहित नज़र आ रहे हैं। भाजपा सरकार के मुखिया 2024 के लिए बने नये 26-पार्टियों वाले विपक्षी गठबंधन को ‘कट्टर भ्रष्ट समूहों के सम्मेलन’ कहते हुए कहा कि उससे तो ‘वंशवाद/पारिवारिक शासन’ को ही बढ़ावा मिलेगा और उससे देश का कोई भला नहीं होगा। वह जिस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं वह इस बात का खुलासा करता है कि भाजपा वास्तव में मूलभूत रूप से बदलते राजनीतिक परिदृश्य के कारण कितना चिंतित हो उठी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिन्होंने अपनी विदेश यात्राओं और सरकारों के प्रमुखों तथा जी-20 के वर्तमान अध्यक्ष को गले लगाकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कद हासिल किया है, को भी अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करनी होगी। फिर यह ऐसे समय में हो रहा है जब मणिपुर जैसी देश में होने वाली घटनाएं और एक प्रशंसित लोकतंत्र में नागरिकों के अधिकारों के अतिक्रमण को विदेशों में प्रतिकूल ढंग से नोटिस लिया जा रहा है। भारत के विश्व के केन्द्र में होने के बड़े दावों के संदर्भ में लोकसभा चुनाव-2024 को एक भू-रणनीतिक घटना के रूप में भी देखा जा सकता है। 
परिदृश्य में भारी बदलाव हो रहा है इसमें कोई संदेह नहीं है। नवगठित 26-पार्टियों वाले गठबंधन-खुद को इंडिया घोषित करने वाली कांग्रेस और मज़बूत क्षेत्रीय पार्टियां-भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन-अधिक आशाजनक आर्थिक और राजनीतिक कार्यक्रम तैयार करेगी, यह भी तय है। परन्तु इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें पूरे देश में सीट-विभाजन का समायोजन करना होगा।  
‘इंडिया’ गठबंधन के साझेदारों की सितम्बर में मुंबई में बैठक होने वाली है ताकि भाजपा के राजनीतिक आख्यान के मुकाबले एक विपक्षी राजनीतिक आख्यान तैयार करने में प्रगति हो सके। देश को बढ़ते रोज़गार और सामाजिक न्याय के साथ सतत आर्थिक विकास सुनिश्चित करने की सख्त ज़रूरत है। भाजपा का 2014 का ‘अच्छे दिन’ का वायदा मोदी सरकार के नौ साल बाद भी आम लोगों के हित में नज़र नहीं आ रहा है।  
मोदी सरकार ने देश में बढ़ती बेरोज़गारी और गरीबी के स्तर को कम करने की प्रमुख समस्या को छोड़कर बड़े व्यवसाय के स्तर को बढ़ाने के लिए मुख्य रूप से बुनियादी ढांचे में सुधार किये। आम तौर पर बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने के साथ मोदी मानते हैं कि भारत पहले से ही एक विकसित देश है और अब देश के डिजिटलीकरण पर अधिक जोर दिया जा रहा है। ‘हम बड़ा सोचते हैं, बड़े सपने देखते हैं और बड़े काम करते हैं’ यह प्रधानमंत्री का दावा है जो शेष राजनीतिक भारत को ‘भ्रष्ट’ कहकर खारिज करता है। 
भाजपा जीतने के जोखिमों को भी जानती है और उसने खुद को हाई गियर में डाल लिया है। पहले तो उसे तीन राज्यों-मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जहां 2023 के अंत से पहले विधानसभा चुनाव होने हैं, पर जीत हासिल करनी है। श्री शिवराज सिंह के नेतृत्व वाले मध्य प्रदेश को बनाये रखने के लिए भाजपा अपेक्षाकृत आश्वस्त है, परन्तु यह कांग्रेस के कब्जे वाले राजस्थान में अधिक कठिन लड़ाई में सामने आयी है, जहां पार्टी को अभी भी अपनी आंतरिक दरारों से उबरना बाकी है। दक्षिण में कर्नाटक में अपनी हार के बाद भाजपा उत्तर और पश्चिम (उत्तर प्रदेश और गुजरात के अलावा) में अपनी संख्या में कमी की भरपाई करना चाहती है।  इस प्रकार लोकसभा में अपनी 39 सीटों के साथ तमिलनाडु को पहले से कहीं अधिक महत्व मिला है और भाजपा द्रमुक को उसकी मजबूत पकड़ से उखाड़ने की साजिश रच रही है। 2019 में, एम.के. स्टालिन (अब सीएम) के नेतृत्व वाली द्रमुक (तब सत्ता में नहीं थी) ने 25 सीटें हासिल की थीं। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह यह सुनिश्चित करने के लिए तमिलनाडु की देखभाल कर रहे हैं कि डीएमके की सीटों में भारी कमी आये।  
यह सब पार्टी और मोदी सरकार दोनों स्तरों पर, अपने चुनावी बहुमत के बावजूद, तमिलनाडु में ‘द्रविड़’ सरकार से जल्द से जल्द छुटकारा पाने के लिए दृढ़ संकल्पित भाजपा के अभियान का हिस्सा है।  राज्यपाल आर.एन. रवि द्रविड़ विचारधारा पर सवाल उठाते रहे हैं और स्टालिन सरकार के साथ कई तरह से गंभीर विवाद में रहे हैं। भाजपा ने अपने नेताओं की कुछ टिप्पणियों के माध्यम से अपने सहयोगी अन्नाद्रमुक को नाराज़ करके कुछ गलतियां की हैं, लेकिन पार्टी इंडिया गठबंधन को चुनौती देने के लिए और अधिक सहयोगी जुटाने के लिए सभी प्रयास कर रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु में नरेंद्र मोदी बनाम एम.के. स्टालिन है। (संवाद)