राहुल पर केन्द्रित हो गया है सामाजिक विमर्श 

 

23मार्च, 2023 को गुजरात की एक सैशन अदालत ने मानहानि के जिस मामले में राहुल गांधी को दो साल की सज़ा सुनायी थी और 7 जुलाई, 2023 को जिसे गुजरात हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था, 133 दिनों बाद 4 अगस्त, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल उस फैसले पर रोक लगा दी है। याद रखिए अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटा नहीं है, जैसा कुछ लोग अपने ज़ोरदार जश्न से भ्रम पैदा कर रहे हैं, लेकिन देश की सर्वोच्च अदालत ने सैशन कोर्ट के फैसले पर जो बुनियादी सवाल खड़ा किया है, उससे यह अंदाज़ा तो लगता है कि सुप्रीम कोर्ट अंतत: उसे जारी नहीं रखेगा। सुप्रीम कोर्ट ने सैशन कोर्ट के फैसले पर वही सवाल खड़ा किया है, पहली बार फैसले को सुनकर जो सवाल किसी भी आम आदमी के जेहन में पैदा होता है कि क्या राहुल गांधी को अधिकतम सज़ा इसलिए सुनाई गयी कि वह संसद सदस्य न रह सकें? 4 अगस्त, 2023 को इस सज़ा पर अंतरिम रोक लगाने वाली सर्वोच्च अदालत के तीन वरिष्ठ न्यायाधीश बी.आर गवई, जस्टिस पी.एस नरसिम्हा और न्यायाधीश संजय कुमार की पीठ ने साफ शब्दों में कहा है कि ट्रायल कोर्ट ने अधिकतम सज़ा सुनाने के लिए कोई वजह नहीं दी है। इसलिए अंतिम निर्णय होने तक सज़ा के आदेश पर रोक लगाना ज़रूरी है।
कहने का मतलब तात्कालिक तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने सैशन कोर्ट द्वारा सुनाई सज़ा पर रोक लगा दी है, लेकिन फैसले को पलटा नहीं है। अभी कुछ भी हो सकता है। हां, सुप्रीम कोर्ट के तीनों माननीय न्यायाधीशों ने इस पूरे फैसले का जिस तरह से रिव्यू किया है, उसके बाद लगता नहीं है कि अब ये सम्मानित न्यायाधीश ट्रायल कोर्ट के फैसले के पक्ष में जाएंगे क्योंकि न्यायाधीशों ने यह भी कहा है कि इस फैसले का व्यापक असर न केवल राहुल गांधी के सार्वजनिक जीवन पर पड़ा है  बल्कि इस फैसले से उन निर्वाचकों का भी जीवन प्रभावित हुआ है, जिन्होंने राहुल गांधी को चुना है। मतलब यह है कि राहुल गांधी की संसद सदस्यता फिर बहाल हो सकती है और चूंकि जब सज़ा सुनायी गई थी, तो उनकी यह  सदस्यता महज 24 घंटे के भीतर खारिज कर दी गई थी, तो अब कांगेस के नेता उम्मीद कर रहे हैं कि जल्द से जल्द राहुल की सांसदी बहाल की जायेगी, जिससे वह संसद के मौजूदा मानसून सत्र की कार्यवाही में हिस्सा ले सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से राहुल गांधी को फिर से उनके लिए एक घर आवंटित होगा, भले वह उनका वह पुराना घर न हो जहां वह पिछले कई सालों से रह रहे थे।
लेकिन इन सब तकनीकी अनुमानों के बीच असली बात देश के दो प्रतिद्वंदी गठबंधनों की राजनीति के उस मॉरल ग्राउंड की है जो इस फैसले के बाद, निश्चित रूप से ‘इंडिया’ की मजबूत हुई है। कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सुप्रीम कोर्ट के इस अंतरिम फैसले को न सिर्फ राहुल गांधी की बल्कि देश के लोकतंत्र की जीत बताया है। राहुल गांधी ने अपनी संसद सदस्यता जाने के बाद जिस तरह 25 मार्च, 2023 को एक प्रैस कान्फ्रैंस करके कहा था कि मुझे इस बात से कतई फर्क नहीं पड़ता कि मुझे अयोग्य किया जाए, मुझे जेल में डाला जाए, या मारा पीटा जाए, मैं सच्चाई बोलता हूं और बोलता रहूंगा क्योंकि यह मेरे खून में है। ठीक उसी तरह से जब 4 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सज़ा पर अंतरिम रोक लगा दी, वह एक बार फिर पत्रकारों के सामने आये और कहा कि आज नहीं तो कल सच्चाई की जीत होनी ही थी। उन्होंने यह भी कहा कि मेरा रास्ता क्लीयर है, मुझे क्या करना है, मेरा क्या काम है, मुझे इसकी पूरी क्लियरिटी है।
कुल मिलाकर देखें तो वास्तव में राहुल गांधी की राजनीति इस मानहानि के मामले से भी काफी हद तक प्रभावित हुई है। हालांकि अगर यह कहा जाए कि राहुल गांधी द्वारा की गई ‘भारत जोड़ो यात्रा’, संसद में अडानी मुद्दे को लेकर उनका तीखा प्रहार और फिर मानहानि के केस के चलते उनका अयोग्य होना, इन तीन घटनाओं ने उनकी समूची सियासी शख्सियत को बदल कर रख दिया है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। आज भले भाजपा या भाजपा के गठबंधन वाली पार्टियां इस बात को न मानें, फिर भी सच्चाई यह है कि पिछले 9 महीनों के भीतर राहुल गांधी की राजनीतिक हैसियत पर भले कोई इजाफा न हुआ हो, लेकिन उनकी व्यक्तिगत प्रोफाइल में जबरदस्त इजाफा हुआ है। पहले जिस राहुल गांधी को राजनीतिक गलियारों में ही नहीं, विभिन्न सामाजिक दायरों में भी हल्के में लिया जाता था, आज लोग विभिन्न मुद्दों पर उसी राहुल गांधी की प्रतिक्रिया का इन्तजार करते हैं। हाल के महीनों की सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों ने राहुल के व्यक्तित्व को लगभग पलट कर रख दिया है। कोई कुछ भी कहे, आज राहुल गांधी न सिर्फ  देश की वैकल्पिक राजनीति के विकल्पों में से एक हैं, अपितु सामाजिक विमर्श में भी वह केंद्र में आ गये हैं। शायद यह राहुल की अब तक की छवि का बड़ा भारी विलोम है, जिसे  दूसरी पार्टियों के लोग ही नहीं बल्कि खुद उनकी अपनी पार्टी के लोग भी महसूस कर रहे हैं। आज आम लोग भी राहुल को बदला हुआ, वजनदार और महत्वपूर्ण मान रहे हैं। यह महज कांग्रेस के लिए ही खुशखबरी नहीं है बल्कि देश के लोकतंत्र के लिए भी राहुल गांधी के व्यक्तित्व में इस तरह का परिवर्तन होना फायदेमंद है।
हालांकि जब तक राहुल गांधी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का कोई अंतिम फैसला नहीं आ जाता, कम से कम इस अदालती मामले को लेकर उन पर कोई भी निर्णायक टिप्पणी जल्दबाजी होगी। लेकिन राजनीति में कोई भी प्रभाव एक झटके में नहीं आ जाता, राजनीतिक प्रभाव न केवल धीरे-धीरे आना शुरु होता है, बल्कि  वह सबको नज़र भी धीरे-धीरे ही आना शुरू होता है। पिछले कुछ समय से राहुल गांधी की राजनीतिक  शख्सियत में, उनकी सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में, जो जनपक्षधरता आयी है, भले वह सायास हासिल की गई हो, लेकिन उससे फर्क पड़ा है। पहले जो लोग राहुल गांधी को हल्के में लेते थे या उनकी कही बातों पर कान नहीं देते थे, आज वे सब किसी भी मामले में राहुल गांधी की टिप्पणियों का इंतज़ार करते हैं। भले आम लोगों के बीच राहुल गांधी की सभी गतिविधियां प्रयोजित ढंग से शुरु की गई हों, लेकिन जिस जीवंतता के साथ राहुल उनमें शामिल होते हैं, देश के आम लोगों का मन और संवेदना उसे सिर्फ अभिनय नहीं मानती। राहुल गांधी की यही सबसे बड़ी सियासी ताकत है और हाल के दिनों तक उन पर किए गए तमाम विपक्षी प्रहारों पर उनकी ठोस जीत है। राहुल गांधी की यह ताकत देश के लोकतंत्र को भी ताकत देती है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर