मोदी के धार्मिक दंगों पर न बोलने का रहस्य ?

प्रधानमंत्री मोदी पर वैसे तो उनके विरोधी आरोपों की झड़ी लगाये रखते हैं। भद्दी-भद्दी बातें भी करते हैं और कहते हैं कि मोदी राज में बोलने की आज़ादी नहीं है। उनके मरने के खुले आम नारे लगाते हैं और कहते हैं कि अघोषित इमरजेंसी लगी है। लालू जैसे अनेक अपराधी सजा हो जाने के बाद भी जेल के बजाय घरों पर आराम कर रहे हैं, मगर मंचों पर चिल्लाते हैं कि मोदी ने न्यायपालिका सहित सारे संस्थान अपने कब्जे में ले रखे हैं। देश का बहुसंख्यक समाज भी चिल्लाता है कि मोदी उसके पक्ष में कभी नहीं बोलते, हमेशा अल्पसंख्यकों के विकास की बात करते हैं। अपने गठन के समय से ही और उससे पूर्व से भी अलग-अलग राजनैतिक दलों की इकाई के रूप में ‘आइएनडीआइए’ गठबंधन जोर शोर से इस बात को उठा कर मुद्दा बनाता रहा है कि किसी भी गंभीर मुद्दे पर विशेषकर धार्मिक दंगों जैसे संवेदनशील मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी कुछ नहीं बोलते? या फिर बोलते भी हैं तो एकाधेक मिनट बोलकर मामले की गंभीरता को कम करने का प्रयास करते हैं। 
वर्तमान में भी मणिपुर दंगे को लेकर इण्डिया गठबंधन ने संसद में कोहराम मचा रखा है। संसद को चलने नहीं दिया जा रहा है। कुल मिलाकर दोनों सदनों में अराजकता की स्थिति पैदा हो चुकी है। सोने पर सुहागा यह कि अब हरियाणा के नूंह ज़िले में हुए शिवार्चन यात्रा पर पथराव और गोलीबारी के साथ वाहनों में की गयी भयंकर आगजनी के अलावा दो पुलिस वालों और चार नागरिकों की मृत्यु और कई पुलिसकर्मियों के अस्पताल में इलाज हेतु गम्भीर दशा में भर्ती होने के प्रकरण को लेकर विपक्षी नेता जिस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं। उसे किसी भी दशा में उचित नहीं कहा जा सकता है। 
अब गठबंधन के नेताओं की अगली मांग यह हो सकती है कि मोदी इस प्रकरण में बयान दें। इस मांग को लेकर फिर गठबंधन सामूहिक रूप से या अलग-अलग घटकरूप में फिर अराजकता की स्थिति पैदा करने का प्रयास करेगा। विपक्षी दल और इण्डिया गठबंधन स्पष्ट रूप जानता है कि मोदी प्रधानमंत्री के एक जिम्मेदार पद पर बैठे हुए हैं। उनकी यह जिम्मेदारी बनती है कि देश के हरेक नागरिक को समान दृष्टि से देखें, चाहे वह उनको वोट करता हो या ना करता हो। उनके ऊपर अंतर्राष्ट्रीय दबाव भी होता है। पूरे विश्व की विभिन्न विचार धाराओं और असमानताओं से तालमेल रखकर और उनमें सामंजस्य रख कर चलना पड़ता है ताकि हमारी विदेश नीति मजबूत रहे, हम एक छोटी सी गलती करते हैं तो, अंतर्राष्ट्रीय खबर बना दी जाती है, ये हम ने देखा, महसूस किया है। 
इधर बहुसंख्यक समाज को यह शिकायत है कि मोदी जी कभी उनके पक्ष में एक शब्द भी नहीं बोलते। आपही सोचिये राष्ट्राध्यक्ष के रूप में उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वे राष्ट्र के हर समाज से समान व्यवहार ‘मनसा, वाचा, कर्मणा’ करते दिखायी दें। वे जब तक पद पर है एकतरफा होकर चल भी नहीं सकते। ये कभी भी मत समझिए कि आप अकेले हैं, जहां तक सम्भव होता है प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से मोदी जी आपके साथ खड़े हैं। भारत के बहुसंख्यक समाज में यह मूल कमी है कि वह स्वयं तो कुछ करना नहीं चाहता अपितु सरकार से यह अपेक्षा करता है कि वह उसके बाथरूम के दरवाजे पर भी रक्षक बन कर खड़ी रहे। वह कभी नहीं चाहता कि भगत सिंह उसके घर पैदा हो। उसकी वांछना होती है कि पड़ोसी के घर पैदा हो और उसकी प्राण देकर भी रक्षा करे। आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि यह व्यक्ति आपका और हमारे बच्चों का भविष्य बनाने के लिए दिन रात मेहनत कर रहा है। नब्बे के दशक में कल्याण सिंह पहली बार उ.प्र. के मुख्यमंत्री बने, भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर को लेकर पूरे भारत में रथ यात्राएं निकाली थी। उत्तर प्रदेश की जनता ने पूर्ण बहुमत के साथ कल्याण सिंह को उप्र की सत्ता दी। जनादेश दिया कि ‘जाओ मंदिर बनाओ’। कल्याण सिंह बहुत ही भावुक नेता थे। सरकार बनने के तुरन्त बाद विश्व हिन्दू परिषद को बाबरी मस्जिद से सटी हुई जमीन कारसेवा के लिए दे दी, संघ के हज़ारों कार सेवक, साधू संत दिन रात भूमि समतलीकरण में लग गए। सुप्रीम कोर्ट यह सब देख कर बहुत परेशान था। सर्वोच्च न्यायालय ने कल्याण सिंह से साफ कह दिया कि ‘आपको पक्का यकीन हैं न ये लोग, सिर्फ यहां की जमीन समतल करने आये हैं, मतलब कि आपके लोगों ने यदि बाबरी मस्जिद को हाथ भी लगाया तो अच्छा नहीं होगा’। कल्याण सिंह ने बाकायदा लिखकर एक हलफनामा दिया कि हम लोग सबकुछ करेंगे पर मस्जिद को हाथ नहीं लगायेंगे।
आज हम उलाहना देते हैं कि मोदी हिंदुओं के पक्ष में खुल कर नहीं बोलते, न खुल कर अल्पसंख्यकों का विरोध करते हैं। क्यों करें वे ये सब खुल कर, ताकि उनका भी राजनैतिक करियर खत्म हो जाये, आप ही बताये ऐसे स्वार्थी बहुसंख्यक समाज के पक्ष में मोदी जैसे लोग खुलकर कैसे बोलें, क्या बोले और कहां तक इनके लिए लड़ें। अब तथाकथित किसान आंदोलन को ही देख लीजिए किस तरह पूरा आंदोलन अंतर्राष्ट्रीय साजिश के हाथों में कब्जे में था जिसको कोई हल नहीं चाहिये था, कोई धारा 370 खत्म कर सकता था नहीं बिल्कुल नहीं, मोदी ने कर दिखाया उसके बाद तो हिन्दू समाज को ऋणी होना चाहिए था, लेकिन देख लो किस प्रकार से मोदी का विरोध हो रहा है। 24 के निर्वाचन में अगर सत्ता मोदी के हाथ से गयी तो बहुसंख्यक समाज को शरणार्थी कैम्पों में रहने को तैयार रहना होगा। (युवराज)