बेकाबू होने के पथ पर मणिपुर में गृह-युद्ध जैसे हालात

मैतई व कूकी समुदायों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस पक्षपाती बहस में नहीं  हो सकता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायाधीश जेबी पारदीवाला और न्यायाधीश मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने कहा है कि हिंसा-ग्रस्त मणिपुर में राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण के कार्यों की निगरानी करने के लिए वह तीन सदस्यों की एक महिला टीम का गठन करेगा, जिसका नेतृत्व जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल करेंगी और शेष दो सदस्य भी हाईकोर्ट्स की पूर्व न्यायाधीश ही होंगी- शालिनी फंसलकर (बॉम्बे हाईकोर्ट) व आशा मेनन (दिल्ली हाईकोर्ट)। इसके अतिरिक्त सीबीआई को सौंपे गये 12 गंभीर केसों को छोड़कर बाकी अपराधिक मामले जो राज्य पुलिस की 42 एसआईटी (विशेष जांच टीमों) के पास है की निगरानी महाराष्ट्र के पूर्व डीजीपी दत्तारे पैडसल्गिकर करेंगे, जो समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के लिए यह कदम उठाना लाज़मी हो गया था; क्योंकि मणिपुर में राजनीतिक, प्रशासनिक व कानून व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा चुकी है। ऐसा प्रतीत हो रहा है मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह का राज्य में किसी चीज़ पर भी नियंत्रण नहीं है और यही कारण है कि तीन माह से जारी देशज हिंसा पर वह काबू नहीं कर पा रहे हैं। बिरेन सिंह व राज्य की पुलिस पर पक्षपाती होने के भी गंभीर आरोप लगे हैं, विशेषकर इसलिए भी कि जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मणिपुर का दौरा किया था, तो बिरेन सिंह उनके साथ कूकी बहुल क्षेत्रों में गये ही नहीं थे। कोआर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रिटी (कोकोमी) के नेतृत्व में राज्य की अनेक सामाजिक संगठनों ने तय किया है कि वह बिरेन सिंह व उनके नेतृत्व वाली भाजपा सरकार का ‘अनिश्चित सामाजिक बहिष्कार’ करेंगे क्योंकि वह घाटी में जीवन सुरक्षित रखने में नाकाम रही है। कोकोमी मैतई समुदाय का प्रतिनिधि संगठन है, वह अलग प्रशासनिक ईकाई की कूकी मांग के विरोध में है और इस मांग को ‘ठुकराने’ के लिए राज्य विधानसभा का सत्र जल्द बुलाने की मांग कर रहा है। दूसरी ओर संभवत: 21 अगस्त से आरंभ होने जा रहे विधानसभा सत्र में कूकी विधायक हिस्सा नहीं लेंगे, चाहे किसी भी दल से उनका संबंध हो।
मालूम हो कि मणिपुर में 10 कूकी-ज़ोमी विधायक हैं, जिनमें से सात सत्तारूढ़ भाजपा के हैं। इन विधायकों का कहना है कि इम्फाल की यात्रा करना खतरे से खाली नहीं है। थानलोन का प्रतिनिधित्व करने वाले भाजपा विधायक वुन्गज़गिन वाल्ते पर इम्फाल में हमला किया गया था, वह अभी तक मैडीकल केयर में हैं। दूसरा यह कि पहाड़ी क्षेत्र के लिए अलग प्रशासनिक ईकाई गठित करना एजेंडा में नहीं होगा तो कूकी-ज़ोमी-हमार विधायक सत्र में शामिल होकर क्या करेंगे। विधानसभा में बिना कूकी प्रतिनिधित्व के देशज हिंसा को रोकने के संदर्भ में कोई अर्थपूर्ण डायलाग हो ही नहीं सकता। यहां यह बताना भी आवश्यक है कि 8 अगस्त को इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) के नेताओं ने नई दिल्ली में अमित शाह से मुलाकात की और उनके समक्ष अपनी मांगें रखीं, जिनमें आदिवासियों के लिए अलग राज्य बनाने की मांग भी शामिल थी।
गौरतलब है कि ़गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिलाने के लिए मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा था कि वह मैतेई समुदाय की मांग की सिफारिश केन्द्र को भेजे। इससे राज्य के आदिवासियों को लगने लगा कि उन्हें जो आरक्षण लाभ मिल रहे हैं, उनमें बहुत कमी आ जायेगी। इसलिए 3 मई 2023 को आल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने आदिवासी एकता मार्च का आयोजन किया, जिसके बाद राज्य में हिंसा अचानक भड़क उठी, जो अभी तक नहीं रुकी है। अब तो ऐसा प्रतीत होने लगा है जैसे मणिपुर में ‘गृह युद्ध’ छिड़ा हुआ हो। इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने 3 अगस्त को घोषणा की कि वह देशज हिंसा के 35 पीड़ितों का सामूहिक अंतिम संस्कार करेगी। मैतई समुदाय ने इसका विरोध किया और फिर अदालत के हस्तक्षेप व प्रशासनिक अधिकारियों के प्रयास से सामूहिक अंतिम संस्कार की योजना को जल्दबाज़ी में रद्द कर दिया गया। लेकिन तब तक अंतिम संस्कार स्थल पर दोनों तरफ के अनेक गुट जमा हो गये थे और उनमें आमने सामने ऐसी झड़पें हुईं जैसे सीमा पर ‘युद्ध’ हो रहा हो, जबकि पुलिस व सेना भी वहां मौजूद थी। इसी दंगे का परिणाम था कि 5 अगस्त को क्वाक्ता क्षेत्र में मैतई समुदाय के तीन व्यक्तियों की गोली मारकर हत्या कर दी गई और चुराचंदपुर ज़िले में कूकी समुदाय के दो व्यक्तियों की हत्या की गई। उसी दिन बिश्नुपुर में आर्मरी से सैंकड़ों बंदूकें, राइफल्स व हज़ारों गोलियां लूटी गईं। इस लूट में मणिपुर राइफल्स का एक सैनिक शहीद हुआ। निरंतर बिगड़ती स्थिति को मद्देनज़र रखते हुए केन्द्र ने 800 अतिरिक्त केन्द्रीय सुरक्षाबल कर्मियों को मणिपुर भेजा है, लेकिन राज्य से ताज़ा हिंसा की लगातार रिपोर्ट्स आ रही हैं। इम्फाल पश्चिम ज़िले में 6 अगस्त को 15 मकानों में आग लगा दी गई और इस हिंसा में एक 45-वर्षीय व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी गई।राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 6,523 अपराधिक घटनाओं व इतने ही केसों का ब्रेकअप दिया है, जिनमें से 72 का संबंध हत्या से, एक का रेप-कम-मर्डर से, तीन का सामूहिक बलात्कार से और छह का यौन हिंसा से संबंध है। हालांकि मई में 6,116 अपराधिक घटनाएं हुईं, लेकिन सिर्फ 2,167 केस ही दर्ज हो सके।
सुप्रीम कोर्ट की कोशिश शांति लाने और नागरिकों में न्यायिक व्यवस्था में विश्वास जागृत करने की है लेकिन जो 12 केस सीबीआई के पास हैं, जिनमें दो महिलाओं के निर्वस्त्र परेड का मामला भी है, उनकी निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट विभिन्न हिंदी-भाषी राज्यों से पांच डीएसपी रैंक के अधिकारियों को नियुक्त करेगा। ऐसा जांच को अधिक निष्पक्ष बनाने के लिए किया गया है। सीबीआई की जांच उसके ही संयुक्त निदेशक के नेतृत्व में होगी।-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर