बड़ी आर्थिक शक्ति बनने हेतु जनसंख्या नियंत्रण ज़रूरी

करीब चार दशक पहले राजनीतिक बैठकों, टीवी की चर्चाओं और चाय की दुकानों पर बातचीत का मुख्य मुद्दा बढ़ती हुई आबादी होता था। कुछ वर्ष पूर्व स्वतंत्रता दिवस के भाषण में ‘जनसंख्या विस्फोट’ शब्द का इस्तेमाल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बहस को वापस सुर्खियों में ला दिया। 1970 के दशक में आपातकाल के दौरान जबरदस्ती कराए गए परिवार नियोजन के आये नकारात्मक परिणाम के बाद राजनेताओं ने इस शब्द का उपयोग न के बराबर किया। तब से जनसंख्या नियंत्रण राजनीतिक रूप से अछूता रहा लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बहस को नए आयाम पर पहुंचा दिया। उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण को देशभक्ति के बराबर बताया। उन्होंने कहा, ‘समाज का वह लघु वर्ग जो अपने परिवार को छोटा रखता है, सम्मान का हकदार है। वह जो कर रहा है, वह देशभक्ति का कार्य है।’
पिछले कुछ वक्त से कई राजनेता मुखर होकर जनसंख्या नियंत्रण की बहस को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा को मानने वाले राकेश सिन्हा ने जुलाई 2019 में जनसंख्या विनियमन विधेयक को एक निजी विधेयक के रूप में पेश किया था। सिन्हा के अनुसार ‘जनसंख्या विस्फोट’ भारत के पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन के आधार को अपरिवर्तनीय रूप से प्रभावित करेगा और अगली पीढ़ी के अधिकारों व प्रगति को सीमित कर देगा। यह विधेयक प्रस्तावित करता है कि सरकारी कर्मचारियों को दो से अधिक बच्चे पैदा नहीं करने चाहिए और वैसे गरीब लोग जिनके दो से अधिक बच्चे हैं, उन्हें सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं से वंचित कर देने का सुझाव देता है।
सिन्हा ने दावा किया था कि विपक्षी नेताओं ने भी उनके  इस प्रयास की निजी तौर पर सराहना की। पिछले साल सितम्बर में कांग्रेस के राजनेता जितिन प्रसाद ने भी जनसंख्या वृद्धि की जांच के लिए एक कानून बनाने की मांग की थी। दिल्ली भाजपा के एक नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें जनसंख्या नियंत्रण के लिए कड़े कानून की मांग की गई थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले को याचिक कर दिया था। अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में है। 2018 में लगभग 125 सांसदों ने राष्ट्रपति से भारत में दो बच्चों की नीति लागू करने का आग्रह किया था। 2016 में भाजपा  सांसद प्रह्लाद सिंह पटेल ने भी जनसंख्या नियंत्रण पर एक निजी सदस्य बिल पेश किया था हालांकि यह अधिकतर निजी विधेयकों की तरह मतदान के चरण तक नहीं पहुंच सका। 
जनसंख्या नियंत्रण के लिए कई राज्यों ने पहले से ही दंडात्मक प्रावधान लागू कर रखे हैं। मोदी के भाषण के तुरंत बाद भाजपा  के नेतृत्व वाली असम सरकार ने दो साल से अधिक समय पहले पारित असम जनसंख्या और महिला सशक्तिकरण नीति को लागू करने का फैसला किया। इसके तहत ‘जनवरी 2021 से असम में दो से अधिक बच्चे वाला कोई भी व्यक्ति सरकारी नौकरी के लिए पात्र नहीं होगा।’ 12 राज्यों में ऐसे ही प्रावधान लागू हैं जो दो-बाल नीति की शर्तों को पूरा न कर पाने की स्थिति में योग्यता व अधिकार से जुड़े प्रतिबंध लगाते हैं। इन प्रतिबंधों में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव लड़ने हेतु लोगों पर रोक लगाना भी शामिल है। एक ऐसे देश में जनसंख्या पर बहस अपरिहार्य है जिसने वर्तमान में सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन को पीछे छोड़ दिया है। वर्तमान में विश्व की 16 प्रतिशत आबादी भारत में है, वैश्विक सतह क्षेत्र के केवल 2.45 प्रतिशत और जल संसाधनों के 4 प्रतिशत हिस्से के साथ निवास करती है।
भारत के लिए यह बहुत बड़ी राहत की बात है कि देश की कुल प्रजनन दर 2.2 से घटकर 2.0 हो गई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पांचवें दौर की रिपोर्ट में सामने आए इन आंकड़ों से यह साफ  है कि यह जनसंख्या नियंत्रण उपायों की अहम प्रगति का परिणाम है। कुल प्रजनन दर को प्रति महिला बच्चों की औसत संख्या के रूप में माना जाता है। रिपोर्ट के अनुसार देश में केवल पांच राज्य हैं जो 2.1 के प्रजनन क्षमता के रिप्लेसमैंट लेवल से ऊपर हैं। इन आंकड़ों से यह संकेत मिलते हैं कि देश जनसंख्या नियंत्रण की ओर बढ़ रहा है। 
असम, बिहार, मेघालय, छत्तीसगढ़, नागालैंड, मणिपुर, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में संस्थागत जन्म में 10 प्रतिशत से अधिक बढ़ौतरी हुई है।
सन् 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान नई जनसंख्या नीति लाई गई जिसमें विवाह की न्यूनतम आयु लड़की के लिए 18 और लड़के के लिए 21 वर्ष करने का निर्णय लिया गया। इस नीति में जनसंख्या नीति के सिद्धांतों को अपनाने वाले दम्पतियों को पुरस्कृत करने, बाल विवाह निरोधक कानून को सख्ती से लागू करने का प्रावधान किया गया। 2005 में तत्कालीन संप्रग सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन किया गया था। जनसंख्या नियंत्रण के लिए लगातार किए जा रहे प्रयासों के परिणाम अब जाकर मिलने लगे हैं। विडम्बना यह है कि 2.98 प्रजनन दर के साथ बिहार सबसे आगे है, जो काफी खतरनाक है। बिहार के ग्रामीण इलाकों में शहरों की तुलना में प्रजनन दर अधिक है। अब समय आ गया है कि यदि भारत को विश्व में आर्थिक शक्ति बनना है तो उसे जनसंख्या वृद्धि को कम करना ही होगा। इसके लिए सरकार को भारतीय नागरिकों को मानसिक रूप से तैयार करने के लिए कुछ नई नीतियों को प्रभावी तौर पर पेश करना होगा।