शक्तिपीठ है मां चामुण्डा देवी का धाम

हिमाचल प्रदेश में स्थित यह तीर्थ शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। यह शिव और शक्ति दोनों की मिश्रित आराधना का स्थल है। बाण गंगा के तट पर स्थित यह सिद्ध स्थान प्राचीनकाल से ही रोगियाें, साधक तथा तांत्रिकों का तपस्थल है। इस कारण से यह उग्र सिद्धपीठ के रूप में जाना जाता है।
कोलाहल से दूर यह शांत स्थान प्राकृतिक सुषमा से युक्त हैं। चारों तरफ हिमालय की हरीतिमा इसकी प्राकृतिक छटा में और श्रीवृद्धि करती है। चामुण्डा शक्तिपीठ बाईस गांवों का श्मशान स्थल भी है, इसलिए मंत्र विद्या द्वारा सिद्धि प्राप्त करने का यह वरदायी क्षेत्र माना गया है। 
चामुण्डा देवी के वास के साथ-साथ यहां भगवान आशुतोष शिव का पौराणिक मंदिर भी है अत: शिव शक्ति के मिश्रित वास के कारण भक्तजन शिवशक्ति का मंत्रों से पूजन, दान तथा श्राद्ध, पिंडदान आदि करते हैं। चूंकि बाण गंगा यहां स्थित है, इस कारण से उसमें स्नान करना शत चण्डी पाठ सुनना और सुनाना श्रेष्ठ माना गया है। पहले चामुण्डा शक्तिपीठ पर बलि दी जाती थी लेकिन अब यह प्रचलन नगण्य हो गया है। यहां कुमारी पूजन भी किया जाता है उसके अलावा रूद्राभिषेक तथा गंगालहरी से शिव-शंभु की आराधना किये जाने का विधान है।
ऐसी मान्यता है कि इस गांव के एक देवी भक्त को मां चामुण्डा ने स्वप्न में यह आदेश दिया था कि पूजन हो रही पिण्डी पर मूर्ति स्थापना करो। माता ने भक्त को यह भी आदेश दिया था कि बाण गंगा के पार कगार के नीचे मेरी मूर्ति स्थिर है, उसे ही स्थापित कर दिया ज़रूर उसका पूजन आरंभ किया जावे। 
भक्त ने तद्नुरूप प्रक्रिया दोहराई तथा स्थापित की गई मूर्ति का पूजन आरंभ किया। धीरे-धीरे इसकी ख्याति फैलती गई। बाद में एक भक्त ने यहां मंदिर का निर्माण करवा दिया जो लगभग 700 वर्ष पुराना है।
पठानकोट से रेल की छोटी लाइन जो पपरोला जाती है, उसमें बैठकर श्रद्धालु चामुण्डा रेलवे स्टेशन पर उतर सकता है। चामुण्डा रेलवे स्टेशन मलां में बना है जहां से मंदिर की दूरी लगभग 4 किमी. है। मलां से चामुण्डा तक अगर बस सुलभ न हो पाए तो यात्री पहाड़ी दृश्यों का आनन्द उठाता हुआ पैदल ही लगभग पौन घंटे में मंदिर की दूरी तय कर सकता है। ज्वालामुखी तीर्थ से कांगड़ा लगभग दो घंटे का रास्ता है। कांगड़ा से मलां केवल डेढ़ घंटे में पहुंचा जा सकता है। पठानकोट से धर्मशाला होकर भी सीधी बसें चामुण्डा देवी जाती है।
मां चामुण्डा का प्राचीन वृतांत दुर्गा सप्तशती के सातवें अध्याय में स्पष्ट हुआ है। उसके अनुसार अम्बिका की भृकुटि से उत्पन्न कालिका ने चण्ड मुण्ड नाम के राक्षसों का यहां वध किया था। वध करने के पश्चात माता कालिका ने चण्ड और मुण्ड के सिर को उपहार स्वरूप माता अम्बिका को भेंट किया था।
माता अम्बा ने तब कालिका को प्रसन्न होकर यह वर दिया कि तुमने चंड-मुंड का वध किया है, इस कारण से संसार में तुम चामुण्डी के नाम से विश्वविख्यात हो जाओगी। मंदिर की प्राचीन परंपरा तथा भौगोलिक स्थिति इस बात को प्रकट करती है कि पौराणिक आख्यान चण्ड और मुण्ड के वध का ही यह स्थान है।
मंदिर का जो मुख्य द्वार है उस पर भगवान गणेश की मूर्ति अवस्थित है तथा बायीं ओर काली माता की। मुख्य द्वार में प्रविष्ट करने के पश्चात संगमरमर की पेड़ियों रेलिंग सहित आरंभ होती हैं। भक्तों को नियंत्रित करने के लिए रेलिंग बनायी हुई है। 
मुख्य प्रवेशद्वार के दोनाें ओर जंगलात हैं। चामुण्डा माता के मंदिर के ठीक सामने यज्ञशाला बनी हुई है जहां दो सुनहरे शेर अवस्थित हैं। माता का सभा मण्डप बहुत लम्बा-चौड़ा है। मंदिर के बायीं ओर संगमरमर में आरती खुदी हुई है। सभा मण्डप व परिक्र मा गैलरी के चारों तरफ दुर्गा के विविध रूपमय दर्शन अवस्थित है।
मुख्य गर्भगृह के द्वार पर चांदी का बहुत ही उत्कृष्ट कार्य किया गया है। चांदी में कई मूर्तिनुमा आकृतियां उत्कीर्ण हैं। सभा मण्डप चारों तरफ से खुला है। सभा मण्डप में लिखी हुई आरतियाें के नीचे दायीं-बायीं ओर आलेनुमा मंदिर है। हनुमान जी की विशाल मूर्ति सभा मण्डप के बाहर खड़ी अवस्था में परिसर की शोभा में श्रीवृद्धि करती है। 
चामुण्डा माता का चेहरा सिंदूरी है। सिर पर मुकुट स्थित है। नाक में नथ, माथे पर बोरीयां, उसके ऊपर दुपट्टा है, गले में हार है। यह संपूर्ण शोभा सोने की चौखट में विराजमान है। परिक्रमा गैलरी में मंदिर की दीवारों पर चांदी की परत चढ़ाई हुई है। प्रतिदिन सैकड़ाें तीर्थ यात्री यहां दर्शनार्थ आते हैं। जलपान की उचित व्यवस्था के बीच यहां ठहरने का भी उचित प्रबंध है। मां चामुण्डा के दर्शनों के पश्चात यात्री पास में ही स्थित नंदीकेश्वर महादेव के दर्शन करते है। महादेव जी का यह मंदिर पौराणिक शिवलिंग के रूप में विख्यात है। यह धर्म स्थान दर्शनों के उपरांत यात्री को सुखद अनुभूति कराता है। निकट ही संजय घाट स्थित है जहां बाण गंगा प्रवाहित है। बाण गंगा में यात्री स्नान कर अपना मनोरथ सिद्ध कर सकता है। संजय घाट पर प्रवाहित बाण गंगा को लघु झील सा रूप दिया हुआ है जहां नौकायन की भी व्यवस्था है। (उर्वशी)