कभी सागर किनारे था जहाज़ों का कब्रिस्तान  मोयनाक

अधिक पुरानी बात नहीं है, जब मोयनाक (जिसे मुयनक भी कहते हैं) अपनी शानदार मछलियों के लिए मशहूर शहर था। लेकिन अब वहां कुछ भी ऐसा नहीं है, जो उसके अतीत का संकेत देता हो- सिवाए ‘पानी के जहाजों के कब्रिस्तान’ के। विरोधाभास यह है कि आजकल यही पर्यटकों के लिए सबसे आकर्षक बना हुआ है, जिसमें उन्हें अपने आपको संकट के बीच में रखकर उन बातों की कल्पना करने के अवसर मिलता है जो स्थानीय लोग समुद्र के बारे में सुनाते हैं; मछुआरों और उनके विशिष्ट रीति-रिवाजों के बारे में सुनाते हैं; समुद्र तट पर खेलते बच्चों के बारे में सुनाते हैं और बाज़ार में बिकती विविध प्रकार की मछलियों के बारे में सुनाते हैं।
मोयनाक काराकल्पकस्तान का हिस्सा है, जोकि उज्बेकिस्तान के उत्तर-पश्चिम में उसका स्वायत्त गणराज्य है और नुकूस उसकी राजधानी है। मोयनाक नुकूस से लगभग 200 किमी के फासले पर है। अगर आपको यह देखना है कि मानव निर्मित बर्बादी कैसी होती है तो दुनिया में मोयनाक जैसी कोई दूसरी भयावह मिसाल नहीं है। 1959 में यह तटवर्ती शहर हर साल मछली के लाखों कैनों का उत्पादन करता था। अब यहां अरल सागर के पूर्व बंदरगाह की तलहटी में सिफ4 जंग खाए 13 जहाजों का बेड़ा है। कुछ दशकों पहले तक अरल सागर मोयनाक को स्पर्श करता था, अब समुद्र इस शहर से लगभग 200 किमी के फासले पर हो गया है। आज अगर कोई यहां समुद्र देखना चाहेगा, तो उसे मोयनाक से पांच घंटे की यात्रा करनी पड़ेगी। जब समुद्र मोयनाक से दूर जाने लगा था तो लोग भी इस शहर को छोड़कर जाने लगे थे। अनुमान यह है कि पिछले छह दशकों के दौरान यहां की जनसंख्या आधी रह गई है।
टूटे हुए जहाजों के कब्रिस्तान में स्कूली छात्र फील्ड ट्रिप के लिए आते हैं, जबकि दूर तक फैला वीरान लैंडस्केप फोटोग्राफरों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान बढ़ती पर्यटकों की संख्या की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बेसिक बैकपैकर हॉस्टल्स बड़ी तादाद में बन गये हैं। अरल सागर को समर्पित एक म्यूजियम भी है, जहां लूप पर 15-मिनट का वीडियो चलता है, इकोलॉजिकल आपदा का विवरण देते हुए। विरोधाभास यह है कि आपदा पर्यटन से शेष रह गई स्थानीय जनसंख्या में उम्मीद की किरण जागी है कि आ़िखरकार उन्हें अपना घर नहीं छोड़ना पड़ेगा। पहली शताब्दी के बाद लगभग 1000 वर्षों तक काराकल्पकस्तान ज़बरदस्त कृषि क्षेत्र था, जिसे केंद्रीय एशिया की सबसे बड़ी नदी अमु दरिया सींचती थी। अपनी स्ट्रेटेजिक लोकेशन के कारण यह खोरेज़म साम्राज्य का महत्वपूर्ण क्षेत्र था, जिसमें 11वीं व 12वीं शताब्दियों के दौरान 50 से अधिक किले बनवाये गये, इसकी सुरक्षा के लिए क्योंकि हर किसी की इस क्षेत्र पर नज़र रहती थी।
काराकल्पकस्तान 1873 में रुसी साम्राज्य के पास चला गया। सोवियत शासन में यह रुसी सोवियत गणराज्य का स्वायत्त क्षेत्र था और फिर 1936 में यह उज्बेकिस्तान का हिस्सा हो गया। यह क्षेत्र 1960-70 में सबसे समृद्ध था। लेकिन काराकल्पकस्तान अब अधिकतर हिस्सा रेगिस्तान हो गया है। इसकी अर्थव्यवस्था जो कभी अरल सागर की मछलियों पर निर्भर थी, अब कपास, चावल व तरबूज़ के सहारे चल रही है।
1960 के दशक में सोवियत सरकार अमु दरिया व सीर दरिया का पानी दूसरी तरफ भेजने लगी। इन नदियों का पानी अरल सागर में जाता था, जो पास के रेगिस्तानी क्षेत्र को मोनो कल्चर कृषि के लिए सींचता था, विशेषकर कपास के लिए। अरल सागर में जब पानी जाना बंद हो गया तो वह सूखने लगा, जबकि राह से परे मुड़े पानी को कृषि रसायनों ने भयंकर प्रदूषित कर दिया, जिससे उसका टॉक्सिक स्तर बढ़ गया और अरल सागर के पानी का भी वाष्पीकरण हो गया। इस पर्यावरण आपदा का नतीजा यह हुआ है कि गर्मियों में तापमान 10-डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है और जाड़ों का तापमान इतनी ही डिग्री गिर गया है। समुद्र व समुदायों की अनुपस्थिति में आंखों का स्वागत अब विशाल वीरान लैंडस्केप ही करता है।
मोयनाक के आगे सभ्यता का कोई चिन्ह नहीं है- गैस स्टेशन, दुकान, भोजनालय, घर या लोग कुछ नहीं है। मोबाइल टावर भी नहीं हैं। एक बार जब आप इस शहर को पार कर लेते हैं तो न नेटवर्क है और न ही सभ्यता से कोई संपर्क। मोयनाक पार करने के बाद न पब्लिक ट्रांसपोर्ट है और न सड़कें। युर्ट कैंप केंद्रीय एशिया का एकदम विशिष्ट प्रतीक है। यह ऊंट की खाल से बना पोर्टेबल टेंट है। कज़ाक व क्यग्ज़र् की तरह काराकल्पकों की भी अपनी युर्ट निर्माण परम्परा है। दरअसल, ठहरने का यह एकमात्र विकल्प है, अगर आप अरल सागर को फोलो करने के एडवेंचर पर हैं। चूंकि यहां पर्यटन का सिलसिला हाल ही में आरंभ हुआ है, इसलिए जहां कभी अरल सागर हुआ करता था, वहां केवल दो युर्ट लोकेशन हैं, जिनमें बेस काला युर्ट कैंप अधिक विख्यात है। युर्ट में न अटैच्ड बाथरूम होता है और न बिजली। लेकिन शहर से दूर इसमें एक या दो रात गुज़ारने का अनुभव गज़ब का होता है- रेगिस्तान की ख़ामोशी और सिर पर चमकते सितारों की रौशनी। तब व्यक्ति बिना सेलफोन के जीना भी सीख जाता है, रात में तारे गिनता है, आवारा बिल्लियों व कुत्तों से दोस्ती करता है और उसे एहसास होता है कि मानव ही इस पृथ्वी ग्रह को बर्बाद कर रहा है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर