राहुल को परिपक्वता दिखाने की ज़रूरत 

क्या मणिपुर संकट का असर नवगठित विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के पक्ष में हो सकता है? क्या कांग्रेस नेता राहुल गांधी इसका उपयोग उसी तरह कर सकेंगे जैसा कि एक अन्य विपक्षी नेता ममता बनर्जी ने 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत के लिए पश्चिम बंगाल के सिंगूर और नंदीग्राम मामले में किया था? ये महत्वपूर्ण क्षण दुर्लभ और अविस्मरणीय हैं।
राहुल गांधी को उन बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है जो आने वाले महीनों में कांग्रेस और भारत की राजनीतिक स्थिति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती हैं। वह इन चुनौतियों से कैसे निपटते हैं, यह उनके भविष्य और समग्र रूप से भारतीय राजनीति के भविष्य को तय करने में महत्वपूर्ण होगा।
मोदी सरकार के खिलाफ  विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के बहुमत के कारण विफल हो गया। अब राहुल के लिए अपने लिए, अपनी पार्टी और विपक्ष के लिए बदलाव लाने का एक अनूठा मौका है।
2004 और 2014 के बीच राहुल गांधी को डॉ. मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में मंत्री बनने का अवसर मिला, लेकिन उन्होंने यह पद नहीं लिया। 2019 के चुनाव में कांग्रेस प्रमुख के तौर पर वह कांग्रेस को जीत नहीं दिला सके। 
2014 में राष्ट्रीय परिदृश्य पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रवेश के बाद से कांग्रेस बुरी स्थिति में है, जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस एक दशक तक सत्ता से बाहर रही। 2024 में आगामी लोकसभा चुनाव जीतना कांग्रेस के लिए नियंत्रण हासिल करने और उसकी बढ़ती बेचैनी को शांत करने के लिए महत्वपूर्ण है। लोकसभा सदस्य के रूप में राहुल की वापसी से उनका, उनकी पार्टी और विपक्ष का उत्साह बढ़ा है। उन्होंने खुद को मोदी के राजनीतिक प्रतिशोध के शिकार के रूप में पेश किया और जनता की सहानुभूति हासिल की। संसद से उनकी बर्खास्तगी को गरिमापूर्ण तरीके से निपटाने और अंतत: सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण उनकी बहाली ने बड़ी परिपक्वता का प्रदर्शन किया। राहुल को अपनी गलतियों का अहसास है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक 3500 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली उनकी सफल ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने एकता और शांति को बढ़ावा देने के लिए प्रशंसा अर्जित की। अपनी यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने निराश कांग्रेस समर्थकों को एकजुट किया। उन्होंने खुद को एक आत्मविश्वासी नेता के रूप में पेश किया जो आगामी लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने में सक्षम है। इसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा और अन्य क्षेत्रीय नेताओं ने कांग्रेस समर्थकों के अलावा आम जनता के बीच उनकी बढ़ती स्वीकार्यता पर ध्यान दिया। राहुल को इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए परिपक्वता दिखाने और एक नया आख्यान विकसित करने की ज़रूरत है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिज़ोरम सभी चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। आम आदमी के नारे ने 2004 से 2014 तक पार्टी की सफलता और सत्ता बरकरार रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। आम आदमी से संबंधित रोजी-रोटी के मुद्दों को उठाना महत्वपूर्ण है। ये चुनाव जीतना राहुल के राजनीतिक करियर में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
राहुल को शरद पवार (एनसीपी), ममता बनर्जी (टीएमसी), नितीश कुमार (जद-यू), एम.के. स्टालिन (द्रमुक) और अखिलेश यादव (सपा) जैसे वरिष्ठ विपक्षी नेताओं का समर्थन हासिल करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
राहुल की अयोग्यता के बाद विपक्ष ने एकजुटता की दिशा में काम किया और अपने मतभेदों के बावजूद गठबंधन के साथ आगे बढ़ने पर सहमति व्यक्त की, जिसमें कांग्रेस भी शामिल थी। इसने छोटे क्षेत्रीय दलों की ज़रूरतों को समायोजित किया तथा उनके साथ समान व्यवहार किया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के यह कहने के बाद कि कांग्रेस प्रधानमंत्री पद के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं कर रही है, राहुल अब गठबंधन सहयोगियों के लिए अधिक स्वीकार्य हैं। प्रधानमंत्री मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के लक्ष्य के बावजूद कांग्रेस पार्टी ज़ोर पकड़ रही है। पूरे देश में कांग्रेस पार्टी की अखिल राष्ट्रीय प्रकृति के कारण राहुल गांधी की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। यह ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले के बाद राहुल के संसद से निष्कासन और उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के कारण बहाली के बाद और भी अधिक है।
2019 में राहुल ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि वह अभी भी पार्टी के लिए निर्णय लेते हैं। उन्हें ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए और पर्दे के पीछे से काम करने के बजाय खुल कर काम करना चाहिए। मुख्य विपक्षी दल के नेता के रूप में राहुल को ‘इंडिया’ गठबंधन का नेतृत्व करने में प्रमुख भूमिका निभानी चाहिए।
मतदाताओं तक पहुंचने के लिए जीवन यापन की बढ़ती लागत, मुद्रास्फीति और भोजन एवं दूध जैसे ज़रूरी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। जहां राहुल का कांग्रेस की विचारधारा पर ज़ोर देना महत्वपूर्ण है, वहीं लोगों की बुनियादी चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करने वाली एक नई कहानी भी उतनी ही ज़रूरी है।
पार्टी को पुनर्गठित करना और ज़मीनी स्तर पर मज़बूत बूथ समितियां स्थापित करना आवश्यक है। राहुल गांधी को सही व्यक्ति को सही काम सौंपना चाहिए। गठबंधन की ताकत के हिसाब से ‘इंडिया’ गठबंधन से भाजपा के खिलाफ हर सीट पर मज़बूत उम्मीदवार उतारना ज़रूरी है। इस प्रयास के लिए सहयोग और लचीलापन आवश्यक है। राहुल गांधी ने खुद को एक आत्मविश्वासी नेता के रूप में पेश किया है, जो आगामी लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए तैयार हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने घोषणा की है कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का दूसरा भाग शीघ्र ही शुरू किया जायेगा। (संवाद)