सुरक्षा बलों में बढ़ता टकराव गहन चिंता का विषय    

  

मणिपुर गत सौ दिनों से भी अधिक समय से हिंसा की आग में झुलस रहा है। हिंसक वारदातों के इस लंबे दौर में हत्याएं, बलात्कार, महिलाओं की नग्न परेड, घर व बस्तियां जलाने, बड़ी संख्या में धर्मस्थलों को जलाने जैसी तमाम दुर्भाग्यपूर्ण अपराधिक घटनायें हो चुकी हैं। परन्तु इन सबसे भयावह वारदात है मणिपुर में उन पुलिस व सुरक्षाबलों का विभाजित हो जाना व उनपर पक्षपाती होने का आरोप लगना, जिन पर राज्य में हिंसा को रोकने का ज़िम्मा है। माना जा रहा है कि यदि सुरक्षा बालों में धार्मिक व जातीय आधार पर विभाजन न हुआ होता, तो राज्य में इतना खून खराबा न हुआ होता और न ही इतनी हिंसक वारदातें हुई होतीं। 
मणिपुर से इस तरह की खबरें हिंसा भड़कने के पहले दौर से ही आनी शुरू हो गयी थीं कि मैतेयी व कुकी समुदाय से संबंध रखने वाले राज्य पुलिस के सुरक्षा कर्मियों द्वारा अपने-अपने समुदाय के लोगों को सरकारी हथियार बांटे गये। तो कहीं शह पाये हुए इन्हीं उपद्रवियों द्वारा थानों व शस्त्रागारों से हथियार लूट लिये गये। ज़ाहिर है जब उपद्रवियों के हाथों में संगीन सरकारी शस्त्र हों और स्वजातीय पुलिस कर्मियों का भी खुला साथ हो तो हिंसा के तांडव को भला राज्य की कौन से मशीनरी रोक सकती है। 
परन्तु जब देश के किसी भी राज्य में किसी भी कारणवश हिंसा अत्यधिक बड़ जाती है या इसकी संभावना होती है और हालात राज्य की पुलिस के नियंत्रण से बाहर प्रतीत होते हैं, तो ऐसे में सरकार वहां शांति बहाली के लिये अर्ध सैनिक बल यानी पैरा मिलिट्री फोर्स की टुकड़ियां आवश्यकतानुसार तैनात करती है। यह विश्वास किया जाता है कि अर्ध सैनिक बल निष्पक्ष रूप से कार्य करते हुये अपना कर्तव्यों का पालन करेंगे। अर्ध सैनिक बलों की टुकड़ियां किसी भी राज्य की पुलिस से अधिक प्रशिक्षित व आधुनिक शस्त्रों से लैस होती है। यदि कहीं यह स्थिति अर्ध सैनिक बलों से भी नियंत्रित होती दिखाई नहीं देती, तब वहां या तो सेना तैनात की जाती है या फिर राज्य पुलिस व अर्ध सैनिक बलों को शांति स्थापना के प्रयासों में सेना सहयोग करती है। हमारे देश में केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधीन संचालित होने वाले अर्ध सैनिक बल है। 
सीमा सुरक्षा बल, जोकि पाकिस्तान व बांग्लादेश से लगनी वाली सीमाओं पर तैनात रहती है। जबकि केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल यानी सी.आई.एस.एफ. का काम उद्योग एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम की सुरक्षा करना होता है। इसी प्रकार केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल अर्थात सी.आर.पी.एफ. की तैनाती उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में या आम चुनाव में की जाती है। इसी प्रकार भारत-तिब्बत सीमा पुलिस आई टी.बी.पी. को तिब्बत व चीन की सीमा पर लगाया जाता है। जबकि राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड अर्थात एन.एस.जी. को आतंकवाद के विरुद्ध होने वाले ऑप्रेशंस में इस्तेमाल किया जाता है। इसी तरह सशस्त्र सीमा बल को देश की नेपाल व भूटान से लगी सीमा पर तैनात किया जाता है। अर्धसैनिक बालों की इसी श्रेणी में आने वाले एक प्रमुख सुरक्षा बल का नाम है ‘असम राइफल्स’। लगभग 64 हजार जवानों पर आधारित ‘असम राइफल्स’ का प्रशासनिक कार्य केन्द्रीय गृह मंत्रालय देखता है जबकि इसका परिचालन रक्षा मंत्रालय द्वारा किया जाता है। ‘असम राइफल्स’ के प्रशिक्षण के अनुरूप इसे पूर्वोत्तर भारत के कई राज्यों तथा भारत-म्यामार सीमा पर तैनात किया गया है। पूर्वोत्तर में पूर्व में भी होने वाली हिंसा या उथल पुथल को नियंत्रित करने में ‘असम राइफल्स’ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसे देश के सबसे अच्छे सैन्य सुरक्षा संगठनों में एक माना जाता है।
यही असम राइ़फल्स पूर्वोत्तर के अशांत राज्य मणिपुर में भी विगत कई वर्षों से तैनात है। गौरतलब है कि मणिपुर की कुल आबादी में मैतेई लोगों की तादाद लगभग 53 प्रतिशत है। और राजनैतिक व आर्थिक रूप से भी मैतेई समुदाय काफी सुदृढ़ स्थिति में है। ये गैर-जनजातीय समुदाय है। इनमें अधिकांशत: हिंदू समुदाय के हैं। जबकि कुकी और नागा समुदाय की कुल आबादी 40 प्रतिशत के करीब है। राज्य के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय के ही हैं। स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह भी मैतेई समुदाय के हैं।
पिछले दिनों मणिपुर के मैतेई समुदाय से संबंधित 31 विधायकों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखकर मणिपुर से असम राइफल्स की 9वीं, 22वीं और 37वीं बटालियन को हटाने की मांग की। मणिपुर राज्य की भारतीय जनता पार्टी इकाई ने भी गत 7 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन भेजकर कहा कि ‘राज्य में शांति बनाए रखने में असम राइफल्स की भूमिका की काफी आलोचना हो रही है और सार्वजनिक आक्रोश देखने को मिल रहा है’। भाजपा द्वारा इस ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि ‘असम राइफल्स निष्पक्षता बनाये रखने में असफल रही और जनता ये आरोप लगा रही है कि उनकी भूमिका पक्षपातपूर्ण है जिसमें वो एक समुदाय का समर्थन कर रहे हैं’। दरअसल चूंकि असम राइ़फल्स की तैनाती लंबे समय से प्राय: पहाड़ी और सीमा से लगते इलाके में है और यही कुकी बाहुल्य वाले इलाके भी हैं। इसी आधार पर कुकी और असम राइफल्स के बीच घनिष्ठता का आरोप मैतेई समुदाय द्वारा लगाया जा रहा है। 
ठीक इसके विपरीत कुकी समुदाय के भी दस विधायकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मणिपुर से असम राइ़फल्स को न हटाने की अपील की है। कुकी विधायकों ने कहा है की यदि असम राइफल्स को यहां से हटाया गया तो राज्य में कुकी व अन्य आदिवासी समुदाय की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। असम राइफल्स को मणिपुर से हटाने की भाजपाइयों की मांग के बीच अब यह भी सुनाई देने लगा है कि मणिपुर हिंसा कथित रूप से सीमा पार यानी म्यामार से प्रायोजित है। इस तरह की खबरें असम राइफल्स की दक्षता पर भी सवाल उठाने की तरफ से दुष्प्रचारित की गयी प्रतीत होती हैं। मणिपुर में शांति के प्रयासों के मध्य सुरक्षा बलों के प्रति बढ़ता अविश्वास देश के संघीय ढांचे तथा पुलिस व सुरक्षा बलों के मनोबल के लिहाज़ से चिंतनीय भी है और यह शुभ संकेत भी नहीं है।
    
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