नुकसान की पूर्ति ज़रूरी

 

जुलाई के माह से लगातार हो रही बारिश के कारण आई बाढ़ ने हिमाचल प्रदेश के अलावा पंजाब का भी बड़ा नुकसान किया है। नदियों की मार ने हज़ारों एकड़ ज़मीन को बुरी तरह से बर्बाद कर दिया है। बहुत से स्थानों, गांवों और अन्य इलाकों में पानी भर जाने के कारण लोगों को अपने घर छोड़ने के लिए भी मज़बूर होना पड़ा है। इस नुकसान के पूर्ति के लिए सरकारी और गैर-सरकारी यत्न भी बहुत अधूरे लगने लगे हैं। लोगों की मुश्किलों में वृद्धि हो रही है।
ऐसी गम्भीर स्थिति में हर तरफ से बड़े यत्नों की ज़रूरत महसूस होती रही है। इस बर्बादी की पूर्ति के लिए समय की सरकार से बड़ी अपेक्षा रखी जाती है, लेकिन इसकी बजाय यदि यह प्रभाव बनता रहे कि कुछ स्थानों पर जाकर मुख्यमंत्री महज़ खानापूर्ति ही करते रहे हैं और समस्या के रूबरू निराधार बयान ही देते रहे हैं, तो ये बातें ढाढस देने वाली नहीं होतीं, बल्कि लोगों की बेचैनी और नाराज़गी बढ़ाने वाली साबित होती हैं। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इस समस्या के रूबरू बहुत बड़े और गम्भीर यत्न किये हैं। इस हेतु उन्होंने सभी पार्टियों के नेताओं के साथ बातचीत की और सभी को सहयोग देने के लिए प्रेरित किया। इसके साथ-साथ लगातार केन्द्र सरकार के साथ सम्पर्क बनाए रखा और उससे अधिकाधिक सहायता प्राप्त करने का भी यत्न किया। उनके गम्भीर यत्न चाहे इतनी बड़ी समस्या का पूरा हल तो नहीं माने जा सकते परन्तु यह दिलों को ढाढस देने वाले अवश्य साबित हुये हैं।
पंजाब में लोगों के दिल में सरकार की गम्भीरता के प्रति बड़े संदेह पैदा हो गए हैं। मुख्यमंत्री द्वारा अन्य पार्टियों के नेताओं के साथ इस संबंध में सम्पर्क बनाने का कोई यत्न नहीं किया गया तथा न ही उनके साथ बैठ कर इस संबंध में कोई  विचार-विमश किया गया है। इस बात को भी दृष्टिविगत नहीं किया जा सकता कि इस हुए बड़े नुकसान के लिए जिस तरह मुख्यमंत्री को केन्द्र सरकार के साथ मिल कर आई इस आपदा के लिए सहायता लेनी चाहिए थी, वे यत्न दिखाई नहीं दिए। उत्पन्न हुए ऐसे हालात ने स्थिति को और गम्भीर बना दिया है। अब ज़िला संगरूर के लौंगोवाल में जो घटनाक्रम घटित हुआ है, उससे माहौल और भी जटिलतापूर्ण बन गया है। जिस तरह चंडीगढ़ में प्रदर्शन करने वाले किसान संगठनों के नेताओं को हिरासत में लिया गया तथा उन्हें जाने से जब्री रोका गया, उससे और भी अफरा-तफरी मचने की सम्भावना पैदा हो गई है। ऐसे टकराव वाली स्थिति को बढ़ने से रोका जाना बेहद ज़रूरी है। मुख्यमंत्री ने विगत दिवस मुआवज़ा देने के लिए बड़े-बड़े बयान दिए थे। लोग उनसे अब उम्मीद करने लगे हैं कि मुख्यमंत्री अपने दिए हुए बयानों को पूरा करेंगे, क्योंकि उन्होंने बार-बार यह भी कहा था कि मुआवज़े के लिए सरकार के पास फंड मौजूद हैं तथा हुये इस बड़े नुकसान की सरकार शीघ्रातिशीघ्र पूर्ति करेगी। इस समय मुख्यमंत्री को अपने दिए बयानों को पूरा करने की ज़रूरत है ताकि हालात और खराब होकर उनके लिए बड़ी चुनौती न बन जाएं।
इस सन्दर्भ में जहां किसान संगठनों ने किसान नेताओं की  गिरफ्तारियों की कड़ी आलोचना की है, वहां विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने भी प्रशासन द्वारा की जा रही ऐसी कार्रवाई को तानाशाहीपूर्ण करार दिया है तथा पैदा हुये इन हालात के लिए पंजाब सरकार को पूरी तरह ज़िम्मेदार ठहराया है। 33 वर्ष पूर्व 1988 में भी बाढ़ ने बड़ा नुकसान किया था। इसके बाद 1993 में भी बाढ़ ने अपना भयावह रूप दिखाया था, जिसकी लम्बी अवधि तक पूर्ति नहीं हो सकी। अब हुए इस व्यापक नुकसान की पूर्ति के लिए हर तरफ से बहुत बड़े यत्नों की ज़रूरत है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द