‘ब्रिक्स’ का क्रियात्मक महत्त्व

 आज विश्व में दर्जनों ही ऐसी संधियां हैं, जिनमें भिन्न-भिन्न देश जुड़े हुए हैं। ये संधियां क्षेत्रों पर भी आधारित हैं, राजनीति पर भी, आर्थिकता पर भी आधारित हैं तथा आपसी सुरक्षा के मुद्दे पर भी स्थापित हुई हैं। चाहे आधार कोई भी हो परन्तु यह बात सुनिश्चित है कि इनका किसी न किसी रूप में समझौता संबंधित देशों को शक्ति भी प्रदान करता है तथा उनके हौसले में भी वृद्धि करता है। इनमें ज्यादातर समझौते समय के अनुकूल न रह कर निरर्थक भी हो जाते हैं, परन्तु दूसरी ओर उत्पन्न हुई नई परिस्थितियां, नये संगठनों को जन्म भी देती हैं। ऐसी ही भावना में पांच देशों के समूह जिनमें भारत, रूस, चीन, ब्राज़ील तथा दक्षिणी अफ्रीका शामिल हैं, ने जन्म लिया था। ऐसा विचार गोल्डमैन सैचस के प्रसिद्ध अर्थ-शास्त्री जिम ओनिल ने वर्ष 2001 में प्रकट किया था। उन्होंने इसमें ब्राज़ील, रूस, भारत तथा चीन का ज़िक्र किया था तथा कहा था कि ये देश आगामी पचास वर्षों में विश्व की सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में शामिल हो जाएंगे। उसके बाद वर्ष 2010 में दक्षिणी अफ्रीका को इसमें शामिल कर लिया गया तथा इसका नाम ‘ब्रिक्स’ (क्चक्त्रढ्ढष्टस्) अभिप्राय ब्राज़ील, रूस, इंडिया, चाइना तथा साऊथ अफ्रीका के नामों पर रखा गया।
विगत अवधि में इस संगठन ने क्रियात्मक रूप में कितनी ठोस उपलब्धियां प्राप्त की हैं, इसका निरीक्षण किये जाने की ज़रूरत है परन्तु ठोस हकीकत यह है कि ‘ब्रिक्स’ के पांच देशों की जनसंख्या विश्व की 42 प्रतिशत है तथा इनका संयुक्त घरेलू उत्पाद विश्व का चौथायी हिस्सा है। इनकी विश्व व्यापार में 18 प्रतिशत भागीदारी है। इन देशों की सांझ अर्थपूर्ण है इसीलिए अब दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में इस संगठन का 15वां सम्मेलन हो रहा है, जिसमें रूस के अलावा अन्य चारों देशों के प्रमुखों ने भाग लिया है। चाहे पुतिन ने युद्ध में उलझे होने के कारण अपना संदेश भेजा है तथा उनके रक्षा मंत्री ने इसमें भाग लिया है। इसका महत्त्व इससे भी आंका जा सकता है कि सऊदी अरब, इथोपिया, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र तथा अर्जन्टीना ने भी इस समूह में शामिल होने के लिए अपनी दावेदारी पेश की थी, जिसे अब स्वीकार कर लिया गया है। इस संगठन के उद्देश्यों में पर्यावरण परिवर्तन, आपसी वित्तीय संस्थाओं के मध्य सहयोग तथा विदेशी व्यापार की बात के साथ-साथ विश्व व्यापार संगठन की कार्य-प्रणाली में सुधार करना भी शामिल है।
इस संगठन का ज्यादातर ज़ोर आर्थिक पहलुओं पर ही रहा है।  इस सम्मेलन में भी अपनी-अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं का उपयोग अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में करने पर विचार किया गया है। एक-दूसरे के सामान का आदान-प्रदान तथा आपसी अदायगी के लिए कारगर तरीके ढूंढने संबंधी भी चर्चा हुई है। आगामी समय में इसे और अर्थपूर्ण बनाने के यत्नों में भी तेज़ी लाने की योजनाएं बनाई गई हैं। आज विश्व के लगातार बदल रहे परिदृश्य को देखते हुए भविष्य में यह संगठन कितना अर्थपूर्ण तथा सार्थक हो सकेगा, इसका मौजूदा समय में अनुमान लगा पाना कठिन है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द