एलएसी पर तनाव खत्म करने हेतु बनी सहमति अच्छा संकेत

जैसा कि अनुमान था कि ब्रिक्स सम्मेलन से अलग भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच पूर्वी लदाख में वास्तविक नियन्त्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देशों के बीच जो ‘अनसुलझा’ मुद्दा है, उसे लेकर वार्ता हुई। अपनी इस बातचीत के दौरान मोदी ने इस बात पर बल दिया कि भारत-चीन संबंधों को सामान्य करने के लिए आवश्यक है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन-शांति बनाये रखी जाये और एलएसी का पालन व सम्मान किया जाये। फलस्वरूप दोनों नेता इस बात पर सहमत हो गये कि वे अपने-अपने संबंधित अधिकारियों को निर्देश देंगे कि डिसइंगेजमेंट (सैन्य कार्यवाही पर विराम लगाना) और डी-एस्केलेशन (तनाव की तीव्रता को कम करना) के प्रयासों में तेज़ी लायी जाये। गौरतलब है कि भारत का चीन के साथ मई 2020 से एलएसी पर सैन्य गतिरोध बना हुआ है। जोहानिसबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) में 22-24 अगस्त को हुए 15वें ब्रिक्स सम्मेलन से पहले भारत-चीन कोर कमांडर स्तर के 19वें चक्र की बैठक हुई थी जिसके बाद संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया था, जिससे जोहानिसबर्ग में मोदी-जिनपिंग के बीच संभावित वार्ता के संदर्भ में सकारात्मक संकेत मिलने लगे थे और यही हुआ कि दोनों नेताओं ने एलएसी पर स्थिति (जहां दोनों तरफ  के लगभग 1,00,000 सैनिक तैनात हैं) को सामान्य करने के लिए महत्वपूर्ण पहल करने का वायदा किया। 
बहरहाल जोहानिसबर्ग का ब्रिक्स सम्मेलन इस लिहाज़ से अधिक अहम रहा कि यह पश्चिम के विभिन्न संगठनों के विकल्प के रूप में उभर रहा है। यही वजह है कि 2009 में गठित ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन व दक्षिण अफ्रीका) में एक जनवरी, 2024 से छह अन्य देश (अर्जेंटीना, मिस्र, इथोपिया, ईरान, सऊदी अरब व संयुक्त अरब अमीरात) भी शामिल हो जायेंगे। इन देशों के समूह के पास कुल वैश्विक जीडीपी का 26 प्रतिशत हिस्सा है। हालांकि ब्रिक्स के अधिकतर नये सदस्यों के चीन से करीबी संबंध है और इसलिए चीन ब्रिक्स का तेज़ी से विस्तार करने का इच्छुक था, लेकिन इथोपिया को छोड़कर शेष पांच नये सदस्य भारत के भी रणनीतिक भागीदार हैं। ध्यान रहे कि मोदी ने ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी से 18 अगस्त, 2023 को टेलीफोन पर वार्ता करके ‘ब्रिक्स विस्तार’ पर सहयोग करने के लिए कहा था। इसलिए इस विस्तार का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि इससे मल्टीपोलर वर्ल्ड आर्डर में अन्य देशों का विश्वास मज़बूत होगा।
इसके बावजूद भारत के समक्ष बड़ी चुनौती यह है कि ब्रिक्स को चीन के प्रभाव वाली कूटनीतिक दुकान न बनने दिया जाये। भारत के लिए यह काम कठिन अवश्य है, लेकिन असंभव नहीं। काफी समय से चीन व रूस ब्रिक्स में नये सदस्य शामिल करने पर बल दे रहे थे जबकि भारत विस्तार योजना को लेकर सावधान था कि कहीं ब्रिक्स पर चीन का ‘कब्ज़ा’ न हो जाये। आखिरकार भारत विस्तार के लिए मान गया, लेकिन सदस्यता के तरीके को अंतिम रूप देने के बाद। यह अच्छी शर्त थी क्योंकि चीन पाकिस्तान को भी सदस्य बनाना चाहता था। दरअसल चीन व रूस ब्रिक्स को अमरीका के नेतृत्व वाले मल्टीलेटरल सिस्टम के मुकाबले में खड़ा करना चाहते हैं, क्योंकि इन दोनों देशों को पश्चिमी पाबंदियों व दबावों का सामना करना पड़ रहा है। विस्तृत ब्रिक्स के ज़रिये उन्हें उम्मीद है कि वे अपने लिए नई कूटनीतिक व रणनीतिक जगह बना लेंगे। 
तानाशाह शासकों के विरुद्ध जो नया पश्चिमी नैरेटिव है उससे चीन व रूस को रास्ता मिल गया है ग्लोबल दक्षिण के कुछ खास देशों को अपने साथ मिलाने का, लेकिन ब्रिक्स के जो मूल पांच देश हैं, उनके आपसी राजनीतिक व आर्थिक विरोधाभास बरकरार हैं, जिनका समाधान अभी हुआ नहीं है और अतिरिक्त उलझाव का अनुमान अधिक है। हालांकि चीन ने सऊदी अरब व ईरान के बीच संबंध बेहतर कराने में काफी सफलता हासिल की है, लेकिन मध्य-पूर्व के इन दोनों ‘बाहुबलियों’ में शक अभी बरकरार है। इसी तरह पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद को लेकर भारत व चीन की सेनाएं अब भी आमने-सामने हैं। जोहानिसबर्ग में मोदी ने लचीली सप्लाई कड़ियों पर विस्तार से बात की, जोकि चीन से अलग विविधता लाने के लिए कोड है, लेकिन चीन के वाणिज्य मंत्री ने ब्रिक्स के मंच का इस्तेमाल अमरीका को टारगेट करने के लिए किया। 
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तो जोहानिसबर्ग की यात्रा भी नहीं कर सके क्योंकि उनके विरुद्ध इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (आईसीसी) ने वारंट जारी किया हुआ है, जिसे आईसीसी का सदस्य होने के कारण दक्षिण अफ्रीका अनदेखा नहीं कर सकता था। इसलिए आपसी सहमति से पुतिन ने ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया। उनके स्थान पर रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव जोहानिसबर्ग में थे, जबकि पुतिन वीडियो कांफ्रैंस से जुड़े। इन मुद्दों को मद्देनज़र रखते हुए भारत के हित में यही है कि वह विस्तृत ब्रिक्स में संतुलक की भूमिका अदा करे और इसे चीन के दबदबे वाला फोरम बनने से रोके। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस प्रयास से कुछ हासिल नहीं होने जा रहा है, लेकिन कूटनीति में बाहर बैठने की तुलना में अक्सर भीतर रहना बेहतर होता है। इसलिए भारत ने ब्रिक्स सम्मेलन में इस बात पर बल दिया कि सभी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को बदलते समय व हालात के अनुसार खुद को ढालना चाहिए। 
भारत के इस बयान को इस संदर्भ में देखना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार लाने में निरन्तर देरी की जा रही है। भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह ब्रिक्स के विस्तार के विरोध में नहीं था बल्कि विस्तार के लिए तरीके, मानक, प्रक्रिया और दिशा-निर्देश सिद्धांतों पर सहमति चाहता था। अब जब विस्तार के लिए नियम तय हो गये हैं तो यह पहल उन वैश्विक संस्थाओं में सुधार के लिए उदहारण होना चाहिए जो 20वीं शताब्दी में स्थापित हुई थीं। ब्रिक्स में जो छह नये सदस्य शामिल हुए हैं, उनमें से इथोपिया को छोड़कर भारत के सभी से अच्छे व गहरे रिश्ते हैं। 
’ -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर