विद्यार्थियों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति चिंताजनक

राजस्थान की शिक्षा नगरी कोटा से फिर दिल दहलाने वाली खबर आयी। पिछले दिनों कोचिंग संस्थान के दो विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या करने से समाचार से समूचे शिक्षा तंत्र पर सवाल खड़े हो रहे हैं। आखिर संस्थान में अध्ययन के लिए जा रहे विद्यार्थी आत्महत्या करने को क्यों मजबूर हो रहे हैं? दोष शिक्षा व्यवस्था में है या अधिक पाने की अंधी दौड़ में छात्रों को पैसे कमाने की मशीन बनाने को आतुर अभिभावकाें का। आत्महत्या के कारण कुछ भी रहे हों, यह जांच का विषय हो सकता है, लेकिन विद्यार्थियों द्वारा इस प्रकार निरन्तर की जा रही आत्महत्या वर्तमान शिक्षा व्यवस्था सहित शिक्षक व अभिभावकों की भूमिका पर भी संदेह पैदा करती है। आखिर एक विद्यार्थी को क्यों अपनी जान देने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। 
केवल कोटा शहर में पिछले करीब आठ माह में दो दर्जन से अधिक विद्यार्थी आत्महत्या कर चुके हैं। यह घटना भी प्रश्न उत्पन्न करती है कि जब प्रशासन की ओर से जारी दिशा-निर्देशों में स्पष्ट किया गया है कि रविवार को बच्चों को अवकाश देने और टैस्ट नहीं लेने के निर्देश हैं तो इसके बावजूद दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हुए रविवार को टैस्ट लिया गया बताया जा रहा है। जांच से ही पता चल सकेगा कि इस घटना का कारण क्या है।
विद्याथियों की आत्महत्या का यह कोई एक मामला नहीं है। देश भर में अनेक शहर हैं जहां रह कर विद्यार्थी अपनी पढ़ाई करते हैं, कितने विद्यार्थी साल भर में मौत को गले लगाते हैं और कितने विद्यार्थी तनाव सहित अनेक मानसिक परेशानियों से गुज़र रहे हैं। यह सोचने का विषय है। उससे भी ज्यादा चिंताजनक है मां-बाप का नाजायज़ दबाब और कोचिंग कक्षाओं का दबाव हो सकता है, जहां विद्यार्थी पिसता रहा है और अन्दर तक टूट जाता है। आखिर कब तक हमारे मेधावी अपनी जीवन लीला यूं समाप्त करते रहेंगे? जब कोई बच्चा माता-पिता की इच्छा के अनुसार पढ़ाई नहीं कर सकता तो जबरदस्ती कोचिंग करवाकर उसके जीवन को संकट में क्यों डाला जाए?
एक शोध के अनुसार देश भर में छात्रों द्वारा आत्महत्या करने के आंकड़े चैकाने वाले हैं। सिक्किम में सबसे अधिक विद्यार्थी (37.5 प्रतिशत) आत्महत्या करते हैं, वहीं छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में 27 प्रतिशत से ज्यादा विद्यार्थी आत्महत्या करते हैं। तमिलनाडु, केरल व त्रिपुरा इस मामले में क्रमश: चैथे, पांचवें व छठे स्थान पर आते हैं। राजस्थान में भी आत्महत्या मामले बढ़ रहे हैं। देश में 15 से 30 वर्ष की आयु के युवा सबसे अधिक आत्महत्या करते हैं। इनमें करीब 55 प्रतिशत विद्यार्थी होते हैं। वर्तमान में आत्महत्या के कारण और निदान को मनोवैज्ञानिक तरीके से समझने की ज़रूरत है और विद्यार्थियों को यह समझाना भी ज़रूरी है कि एक असफलता जीवन में सब कुछ नहीं होती। इसके अलावा विद्यार्थी और अभिभावकों के साथ काउंसिलिंग कर उनमें सजगता पैदा करने से आत्महत्या की बढ़ती इन घटनाओं को रोका जा सकता है। मनोवैज्ञानिक चिंतन के अनुसार एक विद्यार्थी पर अभिभावकों द्वारा जबरन करियर की पसंद थोपने के कारण एवं उसमें फेल होने के भय से विद्यार्थी गहरे मानसिक तनाव में चला जाता है और इस उन्माद में वह आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठा लेता है।
कोटा के प्रो. दिनेश शर्मा ने अपनी शोध स्टडी में पाया कि जब विद्यार्थी बार-बार खुद को कोस रहा हो। मरने जैसी बातें कर रहा हो। यह कहता हो कि वह किसी काम का नहीं है। दुनिया से परेशान हो चुका है। किसी व्यक्ति, परिवार या संस्था से परेशान हो चुका हो। जीने की इच्छा खत्म होने की बात करता हो। ऐसी बातों को गंभीरता से लेने की जरूरत है। इसे मज़ाक में लेकर बिल्कुल दृष्टिविगत नहीं किया जाना चाहिए। इसी प्रकार विद्यार्थी इशारों में अपने नकारात्मक विचार जाहिर करता है, जैसे सोशल मीडिया पर कोई निगेटिव पोस्ट डालता है।