नेताजी की केचुली

भगवान जाने नेताओं को वह किस मिट्टी से तैयार करता है! कि वह इतने अजब गजब तैयार होते हैं। कभी शेर जैसे दहाड़ कर दमदार होते हैं, तो कभी गधे के जैसे ढेचू-ढेचू करते रहते और लाचार होते हैं। जाने किस-किस प्राणियों से इनके गुण-दोष, ग्रह नक्षत्र मिलते रहते हैं। यह खुद भी नहीं जानते हैं वह तो मौके बेमौके उजागर होता है। तब इन्हें अपनी खुद की शक्ति का पता लगता है और जनता को ज्ञात होता है। कभी गिरगिट से तो एक भी लोमड़ी से तो कभी सांप से और भी खतरनाक प्राणियों से उनके हावभाव बात व्यवहार मिलते जुलते रहते हैं। लेकिन हम यहां पर सांप की बात करेंगे सांप और नेताओं में यूं तो बहुत सी बाते एक समान एक जैसी है। लेकिन कुछ निम्न बातें गौर करने योग्य है :-
कभी-कभी तो यह समझ में नहीं आता कि सांप नेता से शिक्षा ग्रहण करता है या नेता सांपों से शिक्षा ग्रहण करके आते हैं। सांप अपना जहर अपने बुरे समय के लिए बचा कर रखता है उसका इस्तेमाल यदा-कदा करता है। नेता भी अपने तरकस के सारे तीक्ष्ण तीर बचा कर रखते हैं अपने विपक्षी पार्टी को पटखनी देने के लिए और घात लगाकर वक्त पर इस्तेमाल करते हैं।
सबसे कॉमन बात है दोनों का ही केचुंली उतारना... सांप जब तब अपनी पुरानी केचुली उतारकर हर बार अपने को नया कर लेता है। और वह ऐसा थोड़ा बढ़ने पर ही करता है। नेता भी हर चुनाव में एक नई केचुली पहन लेते हैं। जनता को दिखाने के लिए... अपने को पाक साफ बताने के लिए, सबको विश्वास दिलाने के लिए। नेता भी अपनी केचुंली बहुत धीरे-धीरे उतारते हैं जैसे सांप धीरे-धीरे आराम से अपनी केचुंली उतारते है। अच्छा है सांप कोई चुनाव नहीं लड़ता है।
सांप और नेता दोनों ही बहरे होते हैं इन्हें सामान्य तौर पर कोई भी आवाज़ सुनाई नहीं देती है। सांप हवा में पैदा होने वाली ध्वनि तरंगों को अपने त्वचा से महसूस करके प्रतिक्रिया करता है और नेता हवा में उठने वाली अपने खिलाफ तरंगों को अपनी अद्भुत क्षमता के द्वारा पहचान कर प्रतिक्रिया देते हैं। और उसका निस्तारण करते हैं। उसके अलावा अन्य समय पर शांत और चुपचाप शांति बनाए रखते हैं। चाहे आप उनके सामने ढोल बजाइए या नगाड़ा बजाइए कोई अंतर नहीं पड़ेगा। सांप अपने से तीन गुना बड़े शिकार को भी आसानी से निगल जाता है। नेता भी अपनी आवश्यकता से सौ गुना अधिक माल बिना डकार लिए पचा जाते हैं। एसिडिटी भी नहीं होती और किसी को भनक भी नहीं लगने पाता है। ऐसे ही थोड़ी ना अपने देश में बड़े-बड़े घोटाले हो जाते हैं और जनता को हवा भी नहीं लग पाता है कि वह लूट चुका है। जनता को पता तो तब लगता है जब खेल खत्म पैसा सारा कुछ हजम हो चुका रहता है। जनता के पास हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं रहता।
दोनों में और भी बहुत सारी बातें कॉमन है दोनों की रीढ बहुत ही लचकदार होती है। जिससे इन दोनों का ही जीना आसान हो जाता है। कभी-कभी तो नेता अपनी रीढ ही निकाल कर फेंक देते हैं। ताकि मुड़ने तुडने में उन्हें कभी कोई असुविधा ना हो। बाकी आप सब भी बहुत समझदार हैं कुछ कयास आप भी लगा लीजिए...।

बलिया (यूपी)