मिलावट के युग में जी रहे हम

 

वास्तविकता यही है कि आज हम मिलावट के युग में जी रहे हैं। किसी भी चीज में देखो कुछ न कुछ मिला होता है।  लोगों को कोई भी खाद्य पदार्थ शुद्ध रूप में नहीं मिल पाता। हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे जीवन के साथ मिलावट का खेल चल रहा है। प्राय: टीवी और समाचार पत्रों मिलावट के समाचार आते ही रहते हैं। यूरिया आदि मिलाकर सिन्थेटिक दूध बनाना, मिलावटी मावा व पनीर बिकना, फलों और सब्ज़ियों पर आर्टिफिशल रंग करना व उनको आकार में बढ़ा करने के लिए अथवा मिठास के लिए इन्जेकशन लगाना, काली मिर्च में पपीते के बीज डालना, चीनी में हड्डियों का चूरा, बहुत से खाद्य तेलों में जानवरों की चर्बी मिलना आदि आम बात हो गई है।
बड़े दुख से कहना पड़ता है कि घर में सब्ज़ियों को धोते समय उन पर लगा अप्राकृतिक रंग निकलने लगता है। हैरानी की बात है कि फल खाने लगें तो एक ही फल का कुछ हिस्सा मीठा होता है और कुछ फीका। महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सौन्दर्य प्रसाधनों में की गई मिलावट त्वचा को हानि पहुंचा रही है।  खेती में पैदावार बढ़ाने के लिए प्रयोग किए जाने वाले कीटनाशक आदि भी मानव शरीर के लिए हानिकारक हैं। और तो और जल को फैक्टरियों का केमिकल युक्त वेस्ट और सीवर की गन्दगी दूषित कर रही है। पेड़ काटने और गाड़ियों, एसी, फैक्टरियों के धुंए से वायु प्रदूषित हो रही है। साथ ही प्रकृति से की जा रही छेड़छाड़ हमारे स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हो रही है। ईश्वर ने हमें हर पदार्थ शुद्ध रूप में दिया, परन्तु मुट्ठी भर स्वार्थी लोग अपने तुच्छ स्वार्थ के कारण देश के करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसा कुकृत्य करते समय न उनका ज़मीर उन्हें कचोटता है और न ही उनके हाथ कांपते हैं।
आज स्थिति यह हो गई है कि न हमें शुद्ध वायु मिलती है और न ही जल। फल-सब्जियां तथा खाद्यान्न भी हमें पुष्ट नहीं करते। समझ नहीं आता कि हम बच्चों को क्या खिला रहे हैं? हमारे बच्चे ऐसे मिलावटी पदार्थों को खाकर कैसे स्वस्थ रहेंगे। इन मिलावटी खाद्य पदार्थों का सेवन करके हम स्वयं ही अनेकानेक बीमारियों को न्यौता दे हैं।  देश में अनेक टैस्टिंग लेब हैं जहां खाद्य पदार्थों के सैम्पल चैक किए जाते हैं। अब समस्या यह है कि यदि इन समाज विरोधियों को सज़ा मिल सके तो शायद इस समस्या से किसी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है। केवल सरकार के आधे-अधूरे प्रयासों से कुछ नहीं होने वाला। यदि समय रहते लोग जागरूक न हुए तो पता नहीं सबके स्वास्थ्य का कितना नुकसान हो जाएगा। इसके ज़िम्मेदार हम खुद ही होंगे। यह सभी के लिए खतरे की घण्टी है। यदि शीघ्र ही कोई ठोस कदम न उठाया गया तो जनसाधारण के स्वास्थ्य की रक्षा किसी तरह नहीं की जा सकेगी। (अदिति)