रसोई गैस की कीमतों में कमी का तोहफा

केन्द्र की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार की ओर से घरेलू एवं व्यवसायिक गैस सिलेण्डरों की कीमतों में  कमी किये जाने की घोषणा नि:संदेह अत्यधिक महंगाई वाले दौर में जन-साधारण और खास तौर पर ़गरीब एवं मध्य वर्ग के लोगों के लिए शीतल बयार के एक सुखद झोंके और त्योहारी मौसम-पूर्व का उपहार साबित हो सकती है। सरकार ने घरेलू गैस की कीमतों में 200 रुपये प्रति सिलेण्डर और व्यवसायिक गैस की कीमतों में 158 रुपये प्रति सिलेण्डर की कमी की  है हालांकि विपक्ष-निर्देशित कुछ राजनीतिक क्षेत्रों में इस घोषणा को चुनाव-पूर्व का एक प्रपंच भी करार दिया जा रहा है। 
इस वर्ग का यह तर्क है कि चूंकि वर्षांत तक देश के पांच राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम की विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। इन विधानसभा चुनावों के तत्काल बाद अगले वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव भी होने हैं, और बहुत सम्भव है कि भाजपा-नीत केन्द्र की राजग सरकार की ओर से चुनावी लाभ को ध्यान में रख कर ही रसोई गैस की कीमतों को कम किया गया है। इस वर्ग से जुड़े लोगों और खासकर विपक्षी राजनीतिक दलों के समर्थकों का यह भी कथन है कि इस उद्देश्य के लिए मोदी सरकार आगामी निकट भविष्य में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में भी कमी कर सकती है। बेशक यह कमी भी तात्कालिक रूप से चुनावी लाभ वाली मछली की आंख में तीर मारने पर ही केन्द्रित होगी। अक्सर सत्तारूढ़ पक्ष चुनावी लाभ हासिल करने के लिए चुनावों से पूर्व रियायतें एवं सुविधाएं दिये जाने की योजनाएं बनाया करते हैं। ऐसे अवसरों पर पहले प्राय: करों में छूट और राहत दिये जाने की घोषणाएं भी हुआ करती थीं। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए ही इस वर्ग के लोगों का यह कथन अन्यथा भी प्रतीत नहीं होता कि रसोई गैस की कीमतों में यह कमी विशुद्ध रूप से चुनावी उद्देश्यों को प्राप्त करने पर ही केन्द्रित हो सकती है।
गैस और पेट्रोल एवं डीज़ल की कीमतों में अतीत में कई वर्षों से निरन्तर वृद्धि ही की जाती रही है। बहुत पहले सरकार इस हेतु तेल और गैस कम्पनियों के भारी घाटे की व्यवस्था का हवाला देकर यदा-कदा इनके दामों में वृद्धि करती रहती थी। फिर प्रधानमंत्री मोदी सरकार की दूसरी पारी में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों को थोक एवं अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य बाज़ार से जोड़ दिया गया, किन्तु यहां भी सरकारों ने अपना दांव ऊपर रखा और कीमतें बढ़ने पर स्थानीय दाम तो बढ़ा दिये जाते, किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय दाम घटने पर घरेलू मंडी पर कमी कोई असर पड़ते नहीं देखा गया। इस प्रकार एक ओर जहां सरकारों की कर-आय तो निरन्तर बढ़ती गई, वहीं तेल कम्पनियां भी मालामाल होते चली गईं। जनता के गाढ़े खून-पसीने की कमाई इन पदार्थों की मूल्य वृद्धि के खाते में निरन्तर जुड़ती गई। इस अन्तर को इस एक उदाहरण से भी समझा जा सकता है, कि केवल तीन वर्ष पूर्व तक घरेलू गैस सिलेण्डर की कीमत 588 रुपये से बढ़ कर 1103 रुपये तक पहुंच गई थी। तिस पर सितम यह भी, कि रसोई गैस हेतु दी जाने वाली सब्सिडी की राशि भी विगत चार वर्ष में ही 37,200 करोड़ रुपये से घटते हुए मात्र 242 करोड़ रुपये रह गई है। उपभोक्ता के खाते में अब सब्सिडी के तौर पर केवल 20-24 रुपये ही जमा होते हैं। इस प्रकार मोदी सरकार की इस दूसरी पारी में केन्द्र सरकार और प्रदेश सरकारों के साथ-साथ तेल कम्पनियों ने तो दोनों हाथों में लड्डू लिये, किन्तु आम और ़गरीब आदमी की जेब निरन्तर कटते चली गई।
अब केन्द्र सरकार ने चुनावी लाभ की नज़र से ही सही, घरेलू रसोई गैस की कीमतों में 200 रुपये प्रति सिलेण्डर की कमी की है, तो नि:संदेह देश का जन-साधारण इसे उपहार के तौर पर ही लेगा। यह भी बहुत सम्भव है कि चुनावी तिथियों की घोषणा से पूर्व ही, पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में कमी की घोषणा कर दी जाए। नि:संदेह तेल-गैस पदार्थों के मूल्यों में कमी की इस घोषणा का कुछ न कुछ लाभ तो अवश्य भाजपा और राजग के घटक दलों को मिल सकता है। इसीलिए कमी की इस घोषणा का प्रचार भी पिछले कुछ दिनों से किया जाने लगा था।  हम समझते हैं कि बेशक यह फैसला किसी भी दृष्टिकोण से लिया गया है, किन्तु इससे एक ओर जहां आम आदमी के घरेलू बजट को आसरा मिलेगा, वहीं अन्य कई प्रकार की वस्तुओं के दाम स्थिर होने में भी मदद मिलेगी। यह मूल्य-कमी केन्द्र सरकार के विरुद्ध उत्पन्न जन-रोष को कम करने में भी सहायक सिद्ध हो सकती है।। तथापि, सत्तारूढ़ पक्ष और विपक्ष की ओर से चुनावी मौसम में की जाती ऐसी घोषणाएं और वायदे किस सीमा तक फलीभूत हो सकते हैं, यह तो बाद में ही पता चलता है।