विकास दर उत्साहजनक, चुनौतियां भी बरकरार 

इसमें कोई दो राय नहीं कि विपरीत हालातों के बावजूद देश की आर्थिक विकास दर के आंकड़े लगातार उत्साहजनक सामने आ रहे हैं। खास बात यह है कि चालू वित्तीय वर्ष के पहली तिमाही के आंकड़े आशा से अधिक बेहतर रहने के साथ ही पिछले वित्तीय वर्ष की चार तिमाही से अधिक रहे हैं। यह तब है जब दुनिया के देश अभी आर्थिक संकट के दौर से ही गुज़र रहे हैं। पड़ोसी पाकिस्तान के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। दरअसल भारत में कृषि क्षेत्र बड़ा सहारा बन कर आता रहा है। हालांकि आने वाली तिमाही कृषि क्षेत्र के लिए अनुकूल इसलिए नहीं मानी जा सकती क्योंकि देश के अधिकांश हिस्सों में बारिश और बाढ़ ने काफी नुकसान किया है। यह सर्वविदित है कि खरीफ  की फसल लगभग पूरी तरह मानसून पर निर्भर करती है और मानसून ने जिस तरह से अगस्त माह में बेरुखी दिखाई है उससे कृषि जगत में निराशा पैदा हुई है। मौसम विज्ञानियों की माने तो सितम्बर माह में भी मानसून के संकेत निराशाजनक ही लग रहे हैं। किसानों की ललाट पर चिंता की रेखा साफ दिखाई दे रही है। अब तो मानसून की बेरुखी से सरकार भी चिंता में है। दरअसल कृषि क्षेत्र इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाता है कि देश में सर्वाधिक रोज़गार के अवसर कृषि क्षेत्र में ही हैं। इसलिए कृषि क्षेत्र ने भारतीय अर्थ व्यवस्था को बड़ा सहारा दिया है। कोरोना काल में कृषि क्षेत्र ने अर्थ व्यवस्था को ही नहीं बल्कि देश गरीब लोगों को भी जो राहत प्रदान की थी, वह अतुलनीय रही थी।
चालू वित वर्ष की पहली तिमाही के जो आंकड़े राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने जारी किए हैं, वे उत्साहवर्द्धक है। जारी आंकड़ों के अनुसार जून 23 तिमाही में कृषि क्षेत्र में मूल्य सवंर्द्धन 3.5 फीसदी रहा है जो एक साल पहले की इसी अवधि के 2.4 प्रतिशत से कहीं अधिक है। यह परिणाम समग्र प्रयासों से ही संभव हो सका है। समग्र रूप से देखा जाए तो अप्रेल-जून तिमाही जीडीपी में वृद्धि दर 7.7 प्रतिशत रही है हालांकि आरंभिक अनुमान 8 प्रतिशत से नीचे रहने के बावजूद अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत हैं। 
देखा जाए तो इस दौरान रियल एस्टेट, फाइनांस और सर्विस सेक्टर में भी अच्छी विकास दर रही है। अब देश में त्यौहारी सीज़न आरंभ हो जाने से यह माना जा रहा है कि दिसम्बर तक देश की अर्थ व्यवस्था कुलाचें भरने की स्थिति में रहेगी। बाज़ार में मांग बढ़ेगी तो इससे उत्पादन और वितरण दोनों ही क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था में उछाल आएगा। कारोबारियों की माने तो त्यौहारी सीज़न में बाज़ार और अधिक गुलज़ार रहेगा तथा अर्थव्यवस्था को पंख लगेंगे। हालांकि मौसम की बेरुखी का असर भी देखने को मिल सकता है। ऐसे हालातों में कृषि से इतर अन्य सेक्टरों को बेहतर परिणाम देने होंगे ताकि आर्थिक विकास की दर बनी रहे। थोड़ा चिंता इसलिए अवश्य है कि पहली तिमाही में निर्यात और विनिर्माण क्षेत्र में सुस्ती दिखाई ही है। ऐसे में चुनौतियां और अधिक हो जाती है।
हालांकि माना यह जा रहा है कि मानसून की बेरुखी के बावजूद अर्थ व्यवस्था पर इसलिए ज्यादा असर नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि सरकार ने कृषि-किसानी के लिए योजनावद्ध प्रयास किए हैं। इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि अर्थव्यवस्था को मानसून प्रभावित अवश्य करता है। बस उस प्रभाव को कम करने के प््रायास होने ज़रूरी होते हैं। वैश्विक खाद्य संकट का असर दुनिया के दशों में साफ  दिखाई दे रहा है। हमारे यहां से भी गेहूं और चावल के निर्यात को हतोत्साहित किया गया है। पिछले दिनों टमाटर के दाम की नई उंचाइयों को देशवासी देख चुके हैं। टमाटर दो सौ के पार तो अदरक को चार सौ का आंकड़ा छूते देखा गया है। लगभग सभी खाद्य पदार्थों के मूल्य में तेज़ी देखने को मिल रही है। रोजमर्रा के खर्च खासतौर से रसोई के खर्च में बढ़ोतरी चिंता का सबब बनती जा रही है। 
भले ही हमारी आर्थिक विकास दर संभली हुई ही नहीं अपितु बढ़़ रही है, परन्तु चिंता के कारण यथावत है। जो हालात अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखने को मिल रहे हैं, उससे अधिक आशा किया जाना बेमानी ही होगा। अपित अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में जो सकारात्मक परिणाम आ रहे हैं, उने सकारात्मक ही माना जाएगा क्योंकि विश्व के हालात जस के तस हैं। देश में जहां चुनावों की तैयारी चल रही हैं, वहीं ‘एक देश, एक चुनाव’ से नई परिस्थितियां उत्पन्न होने वाली हैं। चुनावों के बाद सामान्यत: महंगाई बढ़ती ही देखी गई है तो दूसरी ओर विदेशों के हालात देखे तो रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्ति के दूर-दूर तक कोई आसार नहीं दिखाई दे रहे हैं। चीन की बोखलाहट सामने हैं तो अमरीका और यूरोपीय देशों के आर्थिक व राजनीतिक हालात कोई आशाजनक नहीं दिखाई दे रहे। इन सबके बीच प्राकृतिक आपदाओं और आतंकवादी गतिविधियों का दौर जारी है। ऐसे में आने वाले समय में विश्व को कोई राहत मिलती दिखाई नहीं दे रही। 
चालू वर्ष की पहली तिमाही में बेहतर विकास दर के बाद अब चुनाव, त्यौहार और अन्य कारणों से आने वाला समय में अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। ऐसे में अभी से संभल कर चलना होगा ताकि विकास दर के स्तर को बनाये रखा जा सके। यह सरकार और अर्थशास्त्रियों के सामने बड़ी और गंभीर चुनौती होगी। 

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