बंटी की भूल

बंटी हाथी अपने मम्मी पापा के साथ फारेस्टुंबई में एक कालोनी में रहता था। वह बहुत शरारती और घमंडी था। कालोनी के जानवरों को परेशान करने में उसे बहुत मजा आता था।
बंटी के पापा ने एक दिन बंटी को एक बाइक खरीद कर दी। बाइक पाकर उसकी शरारत और बढ़ गई। बाइक पर बैठने के बाद वह किसी को कुछ नहीं समझता था।
बाइक पर बैठकर दिनकर मटरगश्ती करना तथा दूसरों को परेशान करना यही उसका काम था।
एक दिन वह अपनी बाइक से मटरगश्ती कर रहा था, तभी भोली बंदरिया ने उसे रोकते हुए खुशामदी लहजे में कहा, ’बेटा, जरा मेरे मुन्ने को इसके स्कूल तक छोड़ दो आज इसकी स्कूल बस नहीं आई है।‘
बंटी उसे मना करना चाहता था, लेकिन तभी उसे एक शरारत सूझ गई उसने कहा, ’ठीक है आंटी, मैं इसे स्कूल पहुंचा देता हूं।
बंटी ने बच्चे को बाइक पर बैठा लिया और खूब तेजी से बाइक भगाने लगा।
बच्चा डर के मारे जोर-जोर से रोने लगा। बच्चे को रूलाने में उसे बहुत मजा आ रहा था। 
’चुप, अगर रोओगे तो बहुत पीटूंगा‘ वह बच्चे को बीच बीच में डांट भी देता था।
लेकिन बच्चा चुप नहीं हो रहा था।
तभी पुलिस की जीप बंटी की बाइक के पीछे बड़ी तेजी से आई और ओवरटेक करके बंटी को रोक लिया।
जीप से पुलिस इंस्पेक्टर शेरसिंह के साथ-साथ 3-4 सिपाही उतरे। उन्होंने बंटी को घेर लिया।
’तुम इस बच्चे का अपहरण करके ले जा रहे थे न?‘ शेरसिंह ने गरजते हुए बंटी से पूछा।
‘न, न नहीं तो,‘ ंबंटी हकलाता हुआ बोला, ’म...म....मैं तो इसे स्कूल पहुंचाने जा रहा था।‘
’स्कूल पहुंचाने जा रहे थे तो यह बच्चा रो क्यों रहा है?‘ शेरसिंह ने फिर कहा,‘ जरूर तुम इस बच्चे को अपहरण करके ले जा रहे हो।
बंटी की तो सिट्टीपिट्टी गुम हो गई वह किसी तरह बोला, ’आप इस बच्चे से पूछ लीजिए।
शेरसिंह ने बच्चे से पूछा तो उसने जवाब दिया, ’यह मुझे स्कूल पहुंचाने ले जा रहा है।
‘पर तुम रो क्यों रहे थे?’ शेरसिंह ने बच्चे को दुलारते हुए पूछा।
इस पर बच्चे ने कहा, ‘यह बाइक बहुत तेजी से चला रहा था इसलिए मुझे बहुत डर लग रहा था इसलिये मैं डर के मारे रो रहा था‘
बंटी ने सोचा, ’चलो, जान छूटी‘
लेकिन कहां, शेरसिंह उससे फिर सवाल करने लगा, ’तुम इतनी तेजी से बाइक क्यों चला रहे थे? तुमने हेलमेट क्यों नहीं पहना?‘
बंटी को कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। अंत में वह अपनी आंखों में आंसू ला कर बोला, ’मुझसे भूल हो गई मुझे माफ कर दीजिए।
शेरसिंह को उस पर दया आ गई उसने कुछ सोचते हुए कहा, ’ठीक है, आज तो हम तुम्हें छोड़ देते हैं लेकिन फिर कभी ऐसी गलती की तो सीधा अंदर कर दूंगा।‘
’जान बची, लाखों पाए‘ सोचता हुए बंटी बच्चे को स्कूल पहुंचाने चल दिया। उसे स्कूल पहुंचा कर वह सीधा अपने घर चला गया।
शाम को छुट्टी होने पर भोली बंदरिया का बेटा अपने घर पहुंचा। उसने अपनी मां को सारी बात बता दी।
भोली को बंटी पर बहुत गुस्सा आया। वह बंटी के घर जा कर उसे डांटने लगी, ’तुम मेरे बच्चे को बाइक पर बैठा कर तेजी से क्यों चला रहे थे? अगर वह बाइक पर से गिर जाता या बेहोश हो जाता तो?‘
संयोग से बंटी के मम्मी पापा ने भोली की बात नहीं सुनी वरना बंटी को उनसे भी डांट सुननी पड़ती।
’अब मैं कभी इसके बच्चे को बाइक पर नहीं बैठाऊंगा‘ बंटी ने सोच लिया, ’न ही इसका कोई काम करूंगा?’
एक दिन बंटी अपने मम्मी पापा के साथ घर में बैठा टीवी देख रहा था, तभी उसका मोबाइल  फोन बज उठा। वह फोन पर किसी से बात करने लगा। फिर उसने स्विच आफ करके रख दिया।
’किसका फोन था बेटा,‘ उसके पापा ने पूछा।
’भोली आंटी का था,‘ उसने बेपरवाही से कहा।
’क्या कह रही थी?‘ पापा ने जानना चाहा।
’कह रही थी कि उसके बेटे की तबीयत अचानक खराब हो गई है। उसके पापा घर में नहीं हैं, इसलिए मैं ही जा कर किसी डॉक्टर को बुला लांऊ‘।
’तुमने क्या कहा?‘
’कहना क्या है। मैं किसी का नौकर नहीं हूं जो डॉक्टर बुलाने जाऊं‘ बंटी ने बेपरवाही से जवाब दिया।
पापा को बंटी की बात सुनकर बहुत खराब लगा। उन्हें अपने बेटे से ऐसी उम्मीद नहीं थी।
कुछ सोचकर उन्होंने कहा, ’क्या मैं जान सकता हूं बेटे कि तुमने ऐसा क्यों कहा?‘
तब बंटी ने पापा को उस दिन वाली बात बताई। उसकी बात सुनकर पापा ने कहा, ’बेटा, इसमें गलती तुम्हारी है। तुमने उसके बेटे को बाइक पर बैठा कर शरारत क्यों की? तुम्हें डांटकर उन्होंने कोई गलत नहीं किया। तुम्हें उनकी बात का बुरा नहीं मानना चाहिए।‘
पापा की बात सुनकर बंटी कुछ सोचने लगा। उसे अपनी भूल का अहसास हुआ।
’पापा, मैं डॉक्टर को बुलाने जाता हूं,‘ बंटी ने कहा और तुंरत अपनी बाइक निकाल कर डॉक्टर को बुलाने चल दिया।

(उर्वशी)