‘इंडिया’ को सावधानी से करनी होगी सीटों की साझेदारी

नवगठित विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ने मुम्बई में एक ठोस गठबंधन को मज़बूत करने की दिशा में पिछले दिनों एक सकारात्मक कदम उठाया था। यह निर्णय उनकी तीसरी बैठक के दौरान लिया गया। पहली दो बैठकें पटना और बेंगलुरु में हुई थीं। गठबंधन का लक्ष्य लक्ष्य1977 या 2004 के परिदृश्य को दोहराना है जब कमज़ोर विपक्ष ने सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ जीत हासिल की थी। मुम्बई में आयोजित दो दिवसीय बैठक में 28 राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि एकत्र हुए थे। उपस्थित 63 लोगों ने साझा अभियान रणनीति और राजग का मुकाबला करने के तरीकों पर चर्चा की। बैठक के बाद गठबंधन ने घोषणा की कि वे ‘अपनी सर्वोत्तम क्षमता के साथ मिलकर’ चुनाव में भाग लेंगे। वे ‘समझौते की सहयोगी भावना’ का इस्तेमाल करते हुए तुरंत राज्य सीट-बंटवारे की व्यवस्था का आयोजन शुरू कर देंगे। इसके अतिरिक्त उनका लक्ष्य जल्द से जल्द देश भर में सार्वजनिक रैलियां आयोजित करना है। 
फिर भी विपक्षी नेताओं को अहसास है कि आंतरिक और बाहरी दोनों तरह की कई बाधाओं से पार पाना शेष है। गठबंधन को क्षेत्रीय दलों के साथ सीट बंटवारे पर बातचीत करने में चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। ‘इंडिया’ को गठबंधन सहयोगियों के बीच अंतर्निहित विरोधाभासों पर काबू पाने की कठिन चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है। उन्हें निर्बाध सीट आवंटन के लिए लेन-देन की नीति पर सहमत होना होगा और ज़मीनी स्तर पर सहयोग करना होगा।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे स्वीकार किया। उदाहरण के लिए दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस और ‘आप’ राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं जबकि तृणमूल कांग्रेस, वामपंथी दल और कांग्रेस की पश्चिम बंगाल में अपनी-अपनी राजनीतिक स्थिति है। केरल में वामपंथी और कांग्रेस की भी बड़ी हिस्सेदारी है। ममता बनर्जी ने 2 अक्तूबर तक ‘इंडिया’ गठबंधन का घोषणा-पत्र जारी करने का सुझाव दिया जबकि अरविंद केजरीवाल ने अगले महीने के अंत तक लोकसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे को अंतिम रूप देने का प्रस्ताव रखा।
मुख्य बात अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना है जो भाजपा के नौ साल के कार्यकाल से प्रभावित हुआ है। कई लोग अगले पांच साल तक राजनीतिक जंगल में रहने को तैयार नहीं हैं। इसलिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार चुनना और विशिष्ट सीटों पर आम सहमति बनाना महत्वपूर्ण है। लेन-देन की नीति इस संबंध में मदद कर सकती है। अपने उम्मीदवार की जीत और ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ताओं सहित उनके समूह के सभी लोगों की प्रतिबद्धता सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है। ये कार्यकर्ता इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि जिस पार्टी के खिलाफ  वे कल तक लड़ते रहे हैं, उसका समर्थन कैसे करें।
अन्य मुद्दे भी हैं जिन पर निर्णय होना बाकी है। गठबंधन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने और एक नयी कहानी विकसित करने के लिए एक व्यवहार्य उम्मीदवार की पहचान करनी चाहिए। संयोजक या प्रधानमंत्री पद के चेहरे पर अभी तक सहमति नहीं बन पायी है। इन सभी में कांग्रेस ही इंडिया ब्लॉक में सच्चे अर्थों में मुख्य अखिल-राष्ट्रीय पार्टी बनी हुई है।
पिछले दशक में ताकत में गिरावट का अनुभव करने के बावजूद कांग्रेस पार्टी राष्ट्रव्यापी अपील वाली एकमात्र राजनीतिक इकाई है। 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस ने 52 सीटें जीतीं और 209 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही। उन्हें 12 करोड़ से अधिक वोट मिले जबकि संयुक्त विपक्षी गुट को कम वोट मिले। उनकी किस्मत में कोई भी बदलाव देश की राजनीति पर काफी असर डाल सकता है।
कांग्रेस और भाजपा में लोकसभा की एक तिहाई सीटों पर सीधी हैं। कांग्रेस अभी भी पंजाब, असम, कर्नाटक, केरल, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, गोवा, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम और नागालैंड में महत्वपूर्ण प्रभाव रखती है, जहां कुल मिलाकर 155 लोकसभा सीटें हैं।एक महत्वपूर्ण चिंता यह है कि अगला चुनाव कब होगा। भाजपा को अपने पिछले अनुभव के कारण समय से पहले आम चुनाव कराने में झिझक हो सकती है। 2004 में भाजपा जीतने की उम्मीद कर रही थी, लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग ने आश्चर्यजनक रूप से उन्हें हरा दिया। भाजपा की हिंदी पट्टी में मजबूत उपस्थिति है, लेकिन दक्षिण में अभी भी पयाप्त प्रगति नहीं हुई है, जहां 129 सीटों पर कब्जा करना शेष है।
हालांकि कुछ विपक्षी मुख्यमंत्री, जैसे नितीश कुमार, ममता बनर्जी, एम. के. स्टालिन और अरविंद केजरीवाल का अनुमान है कि 2024 के लोकसभा चुनाव जल्द हो सकते हैं। ये मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिज़ोरम और तेलंगाना में आगामी विधानसभा चुनावों के साथ हो सकते हैं। लोकसभा चुनाव समय से पहले होंगे या नहीं, इस पर अभी कोई पक्की खबर नहीं है। न ही भाजपा और न ही चुनाव आयोग ने कोई संकेत दिया है। अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री मोदी पर निर्भर है जो अप्रत्याशित विकल्प चुनने के लिए जाने जाते हैं। भाजपा मोदी को अपना भाग्यशाली शुभंकर मानती है। पार्टी दस राज्यों में शासन कर रही है और चार राज्यों में राजग के नेतृत्व वाले गठबंधन के साथ शासन में है। लोकसभा में 55 प्रतिशत से अधिक सीटों उसके पास है।
मोदी का लक्ष्य विपक्ष की अराजकता का फायदा उठाकर तीसरा कार्यकाल जीतना है। भाजपा ने हर संभावित स्थिति के लिए पूरी तैयारी की है। इसने करीब सभी 543 संसदीय क्षेत्रों में 1,00,000 बूथों को कवर करने के लिए 40,000 बूथ कार्यकर्ताओं को जुटाया है। सत्तारूढ़ भाजपा अपनी योजनाओं को गुप्त रखती है और अपनी ताकत को बरकरार रखते हुए विपक्ष के प्रभाव को कम करना चाहती है। इसमें बीजेडी, वाईएसआरसीपी,  और बीआरएस जैसी पार्टियों के साथ तटस्थता शामिल है। पार्टी नेतृत्व का अंतिम उद्देश्य भाजपा के लिए अधिक धन प्राप्त करते हुए धन को विरोधी पक्ष में जाने से रोकना है।
अगले कुछ महीनों में दोनों खेमों में उग्र गतिविधियां देखने को मिलेंगी। मोदी की लोकप्रियता, भाजपा के वित्तीय संसाधन और मजबूत संगठन अभी भी सत्तारूढ़ पार्टी को बढ़त दिला सकते हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम में विधानसभा चुनाव आने वाले समय की झलक हो सकते हैं।

(संवाद)