विदेशी कम्पनियों के लिए एक आकर्षक विकल्प बनता भारत

अमरीका की व्यापार प्रतिनिधि कैथरीनची ताई शायद इस बात से पूरी तरह से अवगत नहीं हैं कि भारत में निर्यात किये जाने वाले वैश्विक अमरीकी ब्रांडों के तहत लैपटॉप, टैबलेट और पर्सनल कंप्यूटर जैसे अधिकांश हाई-टेक मास मार्केट इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट अमरीका में निर्मित नहीं होते हैं। इनका निर्माण अमरीकी बहु-राष्ट्रीय निगमों (एमएनसी) द्वारा चीन में किया जाता है और भारत को निर्यात किया जाता है। ऐसा लगता है कि वह भारत की नई लाइसेंसिंग व्यवस्था के बारे में अनावश्यक रूप से चिंतित हैं, जो एप्पल और डैल जैसी कम्पनियों के भारत में शिपमेंट को प्रभावित कर सकती हैं और कम्पनियों को भारत में उत्पाद बनाने के लिए मजबूर कर सकती है। नये नियम नवम्बर से लागू होंगे।
कैथरीनची ताई हाल ही में जी-20 व्यापार मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए भारत में आई थीं। हालांकि अमरीकी कंपनियां स्वयं कम चिंतित हैं। उन्हें लगता है कि भारत में उनके ब्रांडों का बाज़ार अब अच्छा है और तेज़ी से बढ़ रहा है। भारत के लाभांश भुगतान और रॉयल्टी नियम चीन की तुलना में कहीं अधिक आकर्षक और खुले हैं। न्यायनिर्णयन प्रणाली अच्छी और विश्वसनीय है। एप्पल पहले से ही ताइवानी अनुबंध निर्माता फॉक्सकॉन के साथ आईफोन बनाने के लिए यहां मौजूद है। हो सकता है आने वाले समय में आईपैड, मैक, ऐप्पल वॉच, ऐप्पल टीवी और एयरपॉड्स जैसे अधिक एप्पल उत्पाद भी स्थानीय बाज़ार और निर्यात के लिए भारत में निर्मित किये जायेंगे। एप्पल के वैश्विक प्रतिस्पर्धियों के पीछे रहने की संभावना नहीं है।
एक ताइवानी आप्रवासी की बेटी कैथरीनची ताई को शायद इस बात की जानकारी नहीं होगी कि दुनिया भर में लगभग 30 कारखानों का दावा करने वाली 10 अरब अमरीकी डॉलर की ताइवानी अनुबंध निर्माता फॉक्सकॉन सोचती है कि आपूर्तिकर्ता पारिस्थितिकी तंत्र जिसे चीन में बनाने में 30 साल से अधिक का समय लगा, उनकी इच्छा है कि भारत में बहुत तेज़ी से उभरें। ऐप्पल और फाक्सकॉन पहले से ही यहां हैं। यह समय की बात है कि अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स दिग्गज भारत को अपना विनिर्माण आधार बनायें। फाक्सकॉन के अध्यक्ष सह सीईओयंगलियू ने कथित तौर पर कहा था कि कंपनी भारत में अपने परिचालन का विस्तार करेगी क्योंकि व्यवसाय उच्च उपभोक्ता अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए बढ़ेगा।
रिपोर्टों के अनुसार चीन विदेशी मुद्रा नियंत्रण की सख्त व्यवस्था रखता है। युआन की विनिमय दर को मजबूती से बनाये रखा गया है। एक बहु-राष्ट्रीय कम्पनी की चीन स्थित इकाई कई शर्तों के अधीन विदेशी प्रोमोटरों को सीधे लाभांश का भुगतान कर सकती है। कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन से नकदी भेजने के लिए अंतर-कंपनी भुगतान, जैसे सेवा शुल्क या रॉयल्टी का उपयोग करती हैं। कुछ लोग किसी विदेशी संबंधित कंपनी, जिसके साथ उसका इक्विटी गठजोड़ है, को ऋण देकर अवितरित लाभ भेजते हैं। चीन में बहु-राष्ट्रीय कम्पनियां ‘कैशट्रैप’ नामक घटना का शिकार होती हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा चीन में अपने परिचालन के संबंध में ऐसा माना जाता है। 
नकदी जाल का मतलब है किए जबकि चीन में एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी के सहयोगी या सहायक परिचालन लाभदायक हो सकते हैं, उन मुनाफे का प्रतिनिधित्व करने वाली कुछ नकदी को बाहर निकालने का कोई कानूनी और प्रभावी साधन नहीं है ताकि एक तरह से मुनाफे का एक हिस्सा (नकद) प्रभावी रूप से देश में ही फंसा हुआ है। 
इसके विपरीत विदेशी कम्पनियों के लिए भारत के प्रत्यावर्तन नियम कम जटिल प्रतीत होंगे। भारत स्वयं पारम्परिक रूप से प्रौद्योगिकी और उच्च स्तरीय सेवाओं का शुद्ध आयातक रहा है। परिणामस्वरूप भारतीय बहु-राष्ट्रीय कम्पनियां अक्सर प्रौद्योगिकियों के उपयोग और तकनीकी सेवाओं (एफटीएस) के लिए शुल्क के लिए संबंधित और असंबंधित विदेशी संस्थाओं को पर्याप्त रॉयल्टी का भुगतान करती हैं। भारत विदेशी बौद्धिक सम्पदा का आयात और उपयोग जारी रखता है। हाल ही में भारत के लाइसेंस शुल्क भुगतान में तेज़ी से वृद्धि हुई है। 2021 में इस तरह के भुगतान की राशि ़8.63 अरब थी जो 2015 में भुगतान की गई फीस से 72 प्रतिशत अधिक है। एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि एस एंड पी 500 कंपनियों के बाजार मूल्य में आईपी का योगदान 1975 में 17 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में 90 प्रतिशत हो गया है। केवल अल्पकालिक वित्तीय प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करना अदूरदर्शी हो सकता है और आईपी के रणनीतिक और दीर्घकालिक मूल्य को पहचानने में विफल हो सकता है।
कई वैश्विक आईटी हार्डवेयर कम्पनियों को भारत में विनिर्माण आधार स्थापित करने में अधिक समय लग सकता है। वे जिन समस्याओं का हवाला देते हैं उनमें भारत में घटकों के पारिस्थितिकी तंत्र की कमी, खराब आपूर्ति श्रृंखला और महंगी लॉजिस्टिक्स शामिल हैं। लेकिन स्थिति तेज़ी से बदल रही है। हालांकि इसे ठीक करने में थोड़ा समय लग सकता है लेकिन सरकार चाहती है कि विदेशी बहु-राष्ट्रीय कम्पनियां शुरुआत करें, जिससे मुद्दों को सुलझाने में मदद मिलेगी। कुछ वर्षों में जब घटक विनिर्माण शुरू हो जायेगा और आपूर्ति श्रृंखला के मुद्दों को सुलझा लिया जायेगाए तो यह सभी हितधारकों के लिए एक जीत की स्थिति होगी। (संवाद)