भारत की स्काईलार्क गीता दत्त के अनसुने किस्से

पूर्वी बंगाल की पद्मा नदी के किनारे बैठकर बालिका गीता नाविकों के गीतों भटियाली को घंटों तक सुना करती थी। उसे उस समय मालूम नहीं था कि आत्मा तक गहरे उतर जाने वाले ये गीत बाद में उनके टूटे जीवन में प्रासंगिक हो जायेंगे। दशकों बाद जब वह स्वयं स्क्रीन देवियों की आवाज़ बन गईं, हालांकि गीता दत्त स्वयं अजंता की मूर्ति की तरह सांवली व सुंदर थीं, तो उनके सुरों की रेंज भी असीम थी और यही कारण है कि आज भी छेड़खानी भरा ‘बाबूजी धीरे चलना’, रहस्यमय ‘आज सजन मोहे अंग लगा लो’, स्वप्निल ‘ये लो मैं हारी पिया’ ...लोगों की ज़बान पर हैं। दरअसल, गीता दत्त ठंडी हवा व काली घटा का संगम थीं। उनकी आवाज़ में दुर्लभ आकर्षण था। संगीत आलोचकों के अनुसार, यही कारण था कि गीता दत्त एकमात्र गायिका थीं, जिनसे लता मंगेशकर वास्तव में डरती थीं। वह भारतीय संगीत की स्काईलार्क (चातक, अबाबील) थीं।  
हालांकि गीता दत्त प्रोफेशनल शिखर पर अपने पति व फिल्ममेकर गुरुदत्त के साथ पहुंची, लेकिन दुर्भाग्य यह भी है कि उनका व्यक्तिगत पतन भी गुरुदत्त से ही जुड़ा है। इन दोनों के जीवन में जो काले बादलों के साये थे, उन्हें कैफी आज़मी का गीत ‘व़कत ने किया क्या हसीं सितम’ बाखूबी व्यक्त करता है। विरोधाभास देखिये कि ‘कागज़ के फूल’ का यह गीत, गीता दत्त ने गाया था और गुरुदत्त व वहीदा रहमान पर फिल्माया गया था। 1964 में गुरुदत्त ने आत्महत्या कर ली थी, तब वह मात्र 39 वर्ष के थे। अधिक शराब पीने से गीता दत्त का जिगर खराब हो गया और 1972 में मात्र 41 वर्ष की आयु में वह भी दुनिया को अलविदा कह गईं। इन दोनों को गये हुए आधी सदी से अधिक गुज़र गई है, लेकिन इनकी प्रतिभा आज भी प्रेरणा का स्रोत है, यह अलग बात हैं कि इनके दिल टूटने के किस्से पर विराम लगना अब भी शेष है। 
गीता रॉय का जन्म पूर्वी बंगाल के एक जमींदार घराने में 7 जुलाई, 1930 को हुआ था। 1942 में जब वह 12 साल की थीं, तो उनका परिवार दादर (बॉम्बे, अब मुंबई) में आकर रहने लगा। एक दिन संगीतकार हनुमान प्रसाद उनकी बालकनी के नीचे खड़े थे। उन्होंने गीता को गाते हुए सुना। वह उनकी विशिष्ट आवाज़ से इतने प्रभावित हुए कि उनसे फिल्म ‘भक्त प्रलहाद’ (1946) में दो लाइन गाने का आग्रह किया। इस प्रकार गीता का फिल्मी सफर शुरू हुआ और 18 साल की होने तक वह गुलाम हैदर, चित्रगुप्त, खय्याम व सी रामचन्द्र जैसे महान संगीतकारों के लिए गाने रिकॉर्ड कर चुकी थीं। 1948 तक गीता ने विभिन्न भाषाओं में लगभग 900 गाने गा दिए थे। ‘दो भाई’ (1947) के गीत ‘मेरा सुंदर सपना बीत गया’ ने गीता की ख्याति बुलंदियों तक पहुंचा दी। ‘जोगन’ (1950) में उन्होंने मीराबाई के भजन गाकर अपने भक्तिभाव का मिसाली परिचय दिया। ‘बाज़ी’ (1951) में गीता ने ‘तदबीर से बिगड़ी हुई त़कदीर बना ले’ और उनकी मखमली आवाज़ ने गुरुदत्त को स्तब्ध कर दिया। वह अपना दिल ही हार गये। तीन साल तक कोर्टशिप चली और फिर 26 मई 1953 को गीता रॉय गुरुदत्त की गीता दत्त बन गईं। उनके तीन बच्चे हुए- तरुण, अरुण व नीना। 
इस शादी से एक अफवाह यह फैली कि गुरुदत्त ने आर्थिक लाभ अर्जित करने के लिए गीता से शादी की थी। उस समय गुरुदत्त बतौर एक्टर व निर्देशक अपने पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रहे थे, जबकि गीता स्थापित व रईस गायिका थीं। इस अफवाह से डरे सहमे गुरुदत्त ने रास्ता यह निकाला कि गीता केवल उन्हीं के बैनर के लिए अपनी आवाज़ देंगी, बाहर के बैनर के लिए नहीं गायेंगी। वैसे दोनों ने मिलकर कालजयी गीत दिए- ‘ये लो मैं हारी पिया’ (आर-पार, 1954), ‘जाने कहां मेरा जिगर गया जी’ (मिस्टर एंड मिज़ेस 55, 1955), ‘आज सजन मोहे अंग लगा लो’ (प्यासा, 1959), ‘न जाओ सईयां छुड़ा के बहिंयां’ (साहिब बीबी और गुलाम, 1962)... लेकिन गीता अन्य बैनरों के लिए भी गाना चाहती थीं।
दोनों अति संवेदनशील थे, उनके संबंध में ईगो हस्तक्षेप करने लगी। एक और दुश्मन था- शक। गुरुदत्त जिस भी महिला एक्टर के साथ काम करते, गीता उस पर शक करतीं। वह गुरुदत्त की जासूसी करातीं। दोनों में अक्सर झगड़े होते। वह बच्चों को लेकर अपनी मां के घर चली जातीं। गुरुदत्त उन्हें वापस लाने के लिए मिन्नतें करते। वह गीता से बहुत प्रेम करते थे। गुरुदत्त के भाई देवीदत्त का कहना है, ‘दोनों ही कान के कच्चे थे। एक दूसरे के बारे में अफवाहों पर विश्वास करते थे। वास्तव में गुरुदत्त महिलाओं के दीवाने थे। महिलाएं भी उनके प्रति आकर्षित होती थीं; क्योंकि वह उनके ज़रिये एक्ट्रेस बन सकती थीं। महिलाएं उनके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार थीं।’ लेकिन देवीदत्त का कहना है कि गुरुदत्त व गीता की असफल शादी के लिए वहीदा रहमान पर लगाये गये आरोप बेबुनियाद हैं। दोनों के बीच गुरु व शिष्या का संबंध था, जब लोग साथ काम करते हैं तो दोस्ती भी हो जाती है, लेकिन कुछ गंभीर नहीं था।
गीता का शक डिप्रेशन की हद तक चला गया जिससे उनके कॅरियर पर कुप्रभाव पड़ा। वह रिहर्सल व रिकॉर्डिंग से भागने लगीं और उन्होंने खुद को पहले नींद की गोलियों में और फिर ड्रग्स व शराब में डुबो लिया। हालांकि गुरुदत्त व वहीदा रहमान प्रोफेशनली अलग हो गये और गुरुदत्त व गीता ने 48 पाली हिल के मकान पर काम पूरा होने के बाद साथ नई ज़िंदगी शुरू करना तय भी कर लिया, लेकिन ऐसा हो न सका। 10 अक्तूबर 1964 को गुरुदत्त का निधन हो गया। इसके बाद गीता ने अपना कॅरियर पटरी पर लाने का प्रयास किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।


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