विपक्षी पार्टियों से मनोवैज्ञानिक खेल खेल रहे  हैं नरेन्द्र मोदी  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ देश के मतदाताओं के साथ भी माइंड गेम खेल रहे हैं। वह बार-बार दावा कर रहे हैं कि अगले लोकसभा चुनाव का नतीजा पहले से तय है। विपक्षी पार्टियां कुछ भी कर लें, वे भाजपा और मोदी को नहीं हरा पाएंगी। प्रधानमंत्री ने यह बात सबसे पहले स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किला से कही थी। उन्होंने यह नहीं कहा कि यह उनके दूसरे कार्यकाल का आखिरी मौका है जब वह लाल किला से राष्ट्रीय झंडा फहरा रहे हैं। उन्होंने पूरे ‘आत्मविश्वास’ के साथ कहा था कि वह अगले साल भी लाल किला से झंडा फहराएंगे। यह एक मनोवैज्ञानिक दांव था, जिसका असर मतदाताओं और विपक्षी पार्टियों के नेताओं व कार्यकर्ताओं के दिल-दिमाग पर हुआ होगा। उसके बाद कई सरकारी और राजनीतिक कार्यक्रमों में भी मोदी ने अपने फिर से प्रधानमंत्री बनने का दावा दोहराया। 
हालांकि बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था में चुनाव नतीजे आने तक कोई भी पार्टी या नेता पूरे भरोसे से नहीं कह सकता है कि क्या नतीजा आने वाला है, लेकिन मोदी अगले साल भी लाल किला से झंडा फहराने और एक साल बाद योजनाओं की समीक्षा करने का दावा ऐसे कर रहे हैं जैसे उन्हें नतीजे का पता हो। याद करें कि कैसे 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में मोदी ने तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ में लाल किला की प्रतिकृति वाले मंचों से भाषण दिया था। तब विपक्षी पार्टियां ने उनका मज़ाक उड़ाया था लेकिन चार महीने बाद ही मोदी लाल किला से झंडा फहरा रहे थे।
कांशीराम के प्रति कांग्रेस का प्रेम
आगामी लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का कांशीराम के प्रति प्रेम उमड़ रहा है। हालांकि अभी तक बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती कांग्रेस के साथ तालमेल के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने दो टूक अंदाज़ में कहा है कि उनकी पार्टी अगले चुनाव में किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं होगी और अकेले चुनाव लड़ेगी। इसके बावजूद कांग्रेस नेताओं ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। पहले प्रदेश कांग्रेस के दलित अध्यक्ष बृजलाल खाबरी को हटा कर अगड़ी जाति के अजय राय को अध्यक्ष बनाया गया। यह कदम मायावती को खुश करने के लिए था, क्योंकि खाबरी उनकी पार्टी से कांग्रेस में आए हैं। अब कांग्रेस पार्टी ‘दलित गौरव संवाद’ शुरू करने जा रही है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने बताया है कि नौ अक्तूबर को बसपा के संस्थापक कांशीराम के स्मृति दिवस के मौके पर कांग्रेस ‘दलित गौरव संवाद’ शुरू करेगी। कांशीराम की जय-जयकार के लिए कांग्रेस ने यह अभियान शुरू किया है। ऐसा नहीं है कि इससे बसपा का वोट टूट कर कांग्रेस की ओर आ जाएगा। कांग्रेस का यह मकसद भी नहीं है। उसे सिर्फ मायावती को खुश करना है। असल में कांग्रेस इस कोशिश में है कि मायावती के साथ उसका तालमेल हो जाए और उसमें जयंत चौधरी की पार्टी भी शामिल हो जाए। इसका फायदा कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में भी देख रही है, जहां अभी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
क्या 2011 में जनगणना हुई थी?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी बार-बार दावा कर रहे हैं कि संप्रग सरकार ने जनगणना कराई थी और केंद्र सरकार को इसके आंकड़ जारी करने चाहिए। सवाल है कि क्या वाकई 2011 में मनमोहन सिंह की सरकार ने जनगणना कराई थी? सवाल यह भी है कि जब 2011 की जनगणना में जातियां गिनी गई थीं तो कांग्रेस की सरकार ने उसके आंकड़े क्यों नहीं जारी किए थे? मई 2014 में सत्ता से बाहर होने से पहले कांग्रेस की सरकार ने 2011 की जनगणना के आंकड़े जारी कर दिए थे फिर उसी सरकार ने जाति के आंकड़े क्यों नहीं जारी किए? क्या इसके लिए भी राहुल गांधी वैसे ही खेद व्यक्त करेंगे, जैसे उन्होंने महिला आरक्षण विधेयक में ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था नहीं करने के लिए खेद जताया है? बहरहाल, असलियत यह है कि 2011 की जनगणना में जातियों की गिनती नहीं हुई थी। जनगणना के फॉर्म में कुल 29 सवाल पूछे गए थे और उन सवालों की सूची अब भी उपलब्ध है। उसमें जाति को लेकर कोई सवाल नहीं पूछा गया था। इसका मतलब है कि जातियों की संख्या हर 10 साल पर होने वाली जनगणना का हिस्सा नहीं है। जब जनगणना में जाति नहीं गिनने के लिए संप्रग सरकार की आलोचना हुई तो एक आर्थिक व सामाजिक सर्वेक्षण उसके साथ ही अलग से कराया गया था। राहुल गांधी असल में उसी सर्वेक्षण के आंकड़ों को जारी करने की बात कर रहे हैं। वे आंकड़े ज़रूर सरकार के पास हैं। मीडिया में भी सूत्रों के हवाले से उनकी जानकारी बाहर आई है, जिसके मुताबिक हिंदू पिछड़ी जातियों की आबादी 45 फीसदी के करीब है।
संजय सिंह के बाद अब किसकी बारी?
मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और अब सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी के बाकी बड़े नेता डरे हुए हैं। सबको गिरफ्तारी की आशंका सता रही है। संजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद भाजपा ने आम आदमी पार्टी के कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया और नारा लगाया कि केजरीवाल के लिए भी हथकड़ी पहुंचने वाली है। असल में कथित शराब घोटाले में पार्टी के कई नेताओं के नाम आ रहे हैं या लाए जा रहे हैं। वाईएसआर कांग्रेस के एक सांसद के रिश्तेदार के साथ-साथ एक कारोबारी दिनेश अरोड़ा सरकारी गवाह बन गए हैं। संजय सिंह की गिरफ्तारी का एक कारण यह बताया जा रहा है कि उन्होंने दिनेश अरोड़ा को अरविंद केजरीवाल से मिलवाया था और पार्टी के लिए 82 लाख रुपये का चंदा वसूला था। जब मिलवाने वाले व्यक्ति को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया तो सोचा जा सकता है कि मिलने वाले यानी केजरीवाल के लिए कितनी मुश्किल हो सकती है। हालांकि यह सबको पता है कि उन्होंने किसी फाइल पर दस्तखत नहीं किए होंगे, लेकिन अगर शराब नीति में बदलाव करने के बदले पार्टी को पैसे मिलने का कोई सबूत मिलता है तो निश्चित रूप से पार्टी के सर्वोच्च नेता के नाते केजरीवाल मुश्किल में आ जाएंगे। ईडी के एक आरोप-पत्र में आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा का भी नाम है। हालांकि वह आरोपी नहीं बनाए गए हैं लेकिन एजेंसियों को किसी को आरोपी बनाने में कितना समय लगता है! इसीलिए आम आदमी पार्टी में चिंता बढ़ी है। 
राजस्थान में भाजपा की मुश्किलें 
भाजपा ने मध्य प्रदेश में अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा शुरू कर दी है। उसने उम्मीदवारों की तीन सूची जारी की है जिसमें 79 नाम हैं। इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी 21 नामों की घोषणा हो गई है। मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है तो छत्तीसगढ़ में वह विपक्षी पार्टी है। सवाल है कि राजस्थान में क्या पेंच है जो पार्टी वहां उम्मीदवारों की घोषणा नहीं कर रही है? अगर भाजपा ने रणनीति के तहत चुनाव की घोषणा से पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा शुरू कर दी है तो उसी रणनीति के तहत राजस्थान में घोषणा क्यों नहीं हो रही है? मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने हारी हुई और कमज़ोर सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं। ऐसी ही सीटों पर राजस्थान और तेलंगाना में भी उम्मीदवार की घोषणा हो सकती थी, लेकिन नहीं हुई है। राजस्थान के बारे में सूत्रों का कहना है कि पार्टी के अंदर बहुत ज्यादा खींचतान है। पार्टी में अलग-अलग खेमों के नेता एक-एक सीट को लेकर इतने सतर्क हैं कि पिछले दिनों कई रिटायर सरकारी अधिकारी भाजपा में शामिल हुए तो तुरंत इसका विरोध शुरू हो गया कि किसी रिटायर अधिकारी को टिकट नहीं दिया जाना चाहिए। हालांकि पार्टी की ओर से सफाई दी जा रही है कि राजस्थान में भाजपा मज़बूत स्थिति में है। इसलिए पहले उम्मीदवार घोषित करके किसी तरह का विवाद खड़ा करना नहीं चाहती। अगर वाकई ऐसा है तो जाहिर है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा अपनी स्थिति कमज़ोर मान रही है।