बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है इज़रायल-हमास का युद्ध

पश्चिम एशिया में इज़रायल तथा हमास के मध्य छिड़े युद्ध ने एक बार फिर विश्व भर को चिन्ता में डाल दिया है। विगत लम्बी अवधि से रूस तथा यूक्रेन के बीच युद्ध से जहां भारी विनाश हो रहा है, वहां इसका प्रभाव भी व्यापक स्तर पर देखा जा सकता है। वर्ष 1948 तक इज़रायल का अस्तित्व नहीं था। फिलिस्तीन क्षेत्र पर ब्रिटिश शासन था, जहां विश्व भर के यहूदियों को बसाने की अमरीका तथा पश्चिमी देशों द्वारा योजना बनाई गई थी। वहीं ज्यादातर फिलिस्तीनियों को चले जाने के लिए विवश होना पड़ा था। वे साथ लगते गाज़ा पट्टी, लेबनान तथा अन्य अरब देशों में शरणार्थियों के रूप में जीवन व्यतीत करते रहे हैं। इज़रायल के अस्तित्व में आने के दौरान मिस्र और सीरिया सहित कुछ अन्य अरब देशों ने इस पर हमला कर दिया था, जो सफल नहीं हो सका था। समय के व्यतीत होने से जहां इज़रायल ने अपने अस्तित्व को मज़बूत कर लिया, वहीं फिलिस्तीनियों को अभी तक अपना देश नसीब नहीं हुआ। अकेले गाज़ा पट्टी में ही लगभग 23 लाख फिलिस्तीनी रहते हैं।
पी.एल.ओ. के बाद हमास इन फिलिस्तीनियों से उभरा एक ऐसा संगठन है, जो हर तरह से इज़रायल के अस्तित्व के लिए ़खतरा बना हुआ है। जहां मिस्र और कुछ अन्य अरब देशों ने इज़रायल के साथ शांति समझौते कर लिए हैं, वहीं अब अरब का बेहद महत्त्वपूर्ण देश सऊदी अरब भी अमरीका की सहायता से इज़रायल के नज़दीक आ रहा है, परन्तु ईरान तथा सऊदी अरब के मध्य इस क्षेत्र में पुरानी दुश्मनी चली आ रही है। ईरान की सहायता से ही लेबनान में हिज़बुल्ला संगठन भी इज़रायल के विरोध में स्वयं को मज़बूत करता आ रहा है। इस युद्ध में हिज़बुल्ला आतंकवादी संगठन भी शामिल है। पिछले दशकों में जहां इज़रायल अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता हुआ स्वयं को मज़बूत करता रहा है, वहीं ज्यादातर अरब देशों से घिरे इस छोटे-से देश को इन देशों द्वारा भी अक्सर चुनौती मिलती रही है। अब फिलिस्तीनी संगठन हमास ने इज़रायल पर जो हमला किया है, वह बेहद योजनाबद्ध ढंग तथा पूरी तैयारी के साथ किया गया है। यह इज़रायल के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती मानी जा रही है। जहां अमरीका तथा ज्यादातर यूरोपियन देश हमेशा की भांति अब भी इज़रायल के साथ आ खड़े हुए हैं, वहीं रूस तथा चीन का हमेशा यह पक्ष रहा है कि फिलिस्तीनियों को अपना अलग आज़ाद देश मिलना चाहिए। चाहे संयुक्त राष्ट्र ने इज़रायल के अस्तित्व को शुरू से ही मान लिया था तथा बाद में भारत सहित अन्य बहुत-से देशों ने भी इसे मान्यता दे दी थी परन्तु हमास तथा कुछ अन्य मुस्लिम आतंकवादी संगठनों ने हमेशा इज़रायल के विरुद्ध अपने संघर्ष को जारी रखा है।
अब जहां इज़रायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने हमास के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी है, वहीं उन्होंने अपने पड़ोसी गाज़ा से हमास को नेस्तोनाबूद कर देने की भी घोषणा की है, जिस कारण आगामी दिनों में यह युद्ध बेहद भीषण रूप धारण कर सकता है। भारत सहित विश्व भर पर इसका व्यापक प्रभाव देखा जाएगा, खास तौर पर तेल की कीमतों में भी भारी वृद्धि हो सकती है। इसके साथ ही जिस तरह अमरीका तथा यूरोप के ज्यादातर देश इज़रायल के साथ आ खड़े हुए हैं, उसके दृष्टिगत इस युद्ध में और देशों के भी शामिल होने की सम्भावनाएं बनती जा रही हैं। इस रक्त-पात को रोकने के लिए जहां संयुक्त राष्ट्र संघ को शीघ्र अपना योगदान डालने की ज़रूरत है, वहीं अमरीका, चीन तथा भारत को भी इस युद्ध को खत्म करवाने के लिए आगे आना चाहिए।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द