5एशियाई खेल प्रशंसनीय रहा पंजाबियों का योगदान

शासकों को अब मान ही लेना चाहिए, पंजाबी युवक निकम्मे, नशेड़ी, गैंगस्टर, आतंकवादी या अलगाववादी नहीं, भारतीय हॉकी तथा अन्य खेलों के सचमुच सरदार हैं। अभी सम्पन्न हुईं एशियाई खेलों में 32 पंजाबी खिलाड़ियों ने 20 मैडल जीत कर भारत मां की झोली भरने में बड़ा योगदान डाला। यह तथ्य स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाने वाला है कि गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी अमृतसर के 16 खिलाड़ियों ने एशियाई खेलों में 13 पदक जीते। क्या भारत की किसी अन्य यूनिवर्सिटी ने खेल क्षेत्र में इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल की है? भारत के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर देश की सीमाओं की रक्षा करने तक पंजाबियों ने बेअंत कुर्बानियां दीं। भूखे भारत का पेट भरते हुए तथा विदेशों में दोहरी शिफ्टें लगा कर कड़ी कमाई करते हुए फॉरन एक्सचेंज से भारत के खज़ाने भरने के साथ अन्य अनेक परोपकार कार्य किए, परन्तु भारतीय शासकों ने पंजाबियों के परोपकार के बदले पंजाब की राजधानी चंडीगढ़, पंजाबी भाषायी क्षेत्र, पंजाब की नदियों के पानी, ज़मीनी पानी, फसलों की लूट, पंजाब की धरती की उपजाऊ शक्ति, वातावरण की शुद्धता व अन्य पता नहीं कितना कुछ पंजाब से छीन लिया? ऊपर से योजना के तहत पंजाबियों को ही बदनाम किया है तथा उनकी आगामी पीढ़ियों को जड़ से उखाड़ने की साजिश की जा रही है।
विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या एशिया में रहती है। ओलम्पिक खेलों के बाद एशियाई खेल सबसे बड़ी खेल मानी जाती है। पहले एशियाई खेल 1951 में नई दिल्ली में आयोजित हुए थे। 19वें एशियाई खेल चीन के शहर हांग ज़ू में आयोजित हुए हैं। 1948 की ओलम्पिक खेलों के समय लंदन में पंजाब के प्रोफैसर गुरु दत्त सोंधी ने फिलपाइन के खेल प्रमोटर जार्ज बी. वारगस के साथ एशियाई खेलों के संबंध में विचार-विमर्श किया जिसके फलस्वरूप एशियन एमेच्योर एथलैटिक फैडरेशन बनी। फैडरेशन की पहली बैठक 12-13 फरवरी 1949 को नई दिल्ली के पटियाला हाऊस में हुई। फिलपाइन, सयाम, इंडोनेशिया, बरमा, सीलोन, नेपाल, अ़फगानिस्तान, पाकिस्तान तथा भारत के प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए। वहां एशियन एथलैटिक फैडरेशन का नाम बदल कर ‘एशियाई खेल फैडरेशन’ रख दिया तथा महाराज यादविन्दर सिंह को फैडरेशन का अध्यक्ष चुन लिया गया। पहली एशियाई  खेल करवाने की ज़िम्मेदारी नई दिल्ली ने ली तथा दूसरी मनीला को सौंपी गई।
इंडिया गेट के समक्ष नैशनल स्टेडियम का निर्माण किया गया, जिसके ट्रैक के आस पास साइकिल पट्टी बिछाई गई। तैराकी के लिए स्वीमिंग पूल तथा अन्य खेल भवन तैयार करने के साथ निकट लगतीं सैनिक बैरकों को ‘ओलम्पिक गांव’ बना दिया गया। निर्धारित दिन एशियाई देशों के रंग-बिरंगे ध्वज नैशनल स्टेडियम की दीवारों पर लहराने लगे। भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एशिया के खिलाड़ियों को नारा दिया : ‘खेल को खेल भावना के साथ खेलें। फिर खेलों के माटो ‘एवर आनवर्ड’ पर क्रियान्वयन करने के लिए एशिया के खिलाड़ी खेल मैदानों में जूझने लगे।
एशियाई खेल 4 मार्च, 1951 को आरम्भ हुए। लाल किले में खेलों की मशाल जलाई गई। ओलम्पियन ब्रिगेडियर दिलीप सिंह ने मशाल लेकर स्टेडियम का चक्कर लगाया तथा एशियाई खेलों की ज्योति प्रज्वलित की। स्टेडियम में 11 देशों के 489 खिलाड़ी खड़े थे। भारतीय दल के ध्वजावाहक बलदेव सिंह ने समूह खिलाड़ियों की ओर से शपथ ग्रहण की। राष्ट्रपति डा. राजिन्द्र प्रसाद ने खेल शुरू करने की घोषणा की। खेलों में भाग लेने वाले देश अ़फगानिस्तान, बरमा, सीलोन, इंडोनेशिया, ईरान, जापान, नेपाल, फिलपाइन, मलाइया, थाइलैंड तथा भारत थे। चीन तथा पाकिस्तान ने पहली एशियाई खेलों में भाग नहीं लिया। खेलें 4 से 11 मार्च तक चलीं। एथलैटिक्स, बास्केटबाल, फुटबाल, साइकिल दौड़, भारोत्तोलन तथा तैराकी के मुकाबले हुए। भारत के सचिन नाग ने तैराकी में एशियाई खेलों का पहला स्वर्ण पदक जीता। भारतीय टीम वाटर पोलो का स्वर्ण पदक भी जीत गई। फुटबाल की खेल में भी भारत को स्वर्ण पदक मिला।
एथलैटिक्स में भारत के लिए अधिक पदक पंजाबी एथलीटों ने जीते, जिनके नाम हैं : रणजीत सिंह, निक्का सिंह, छोटा सिंह, महावीर प्रसाद, बख्तावर सिंह, मदन लाल, मक्खन सिंह, ए.एस. बख्शी, बलदेव सिंह, गोविंद सिंह, कुलवंत सिंह, प्रीतम सिंह, गुरबचन सिंह, सोमनाथ, तेजा सिंह, अजीत सिंह, बलवेत सिंह, कर्ण सिंह, केसर सिंह तथा परसा सिंह। इनमें से अधिकतर खिलाड़ी पटियाला पुलिस तथा सेना के थे। जापान 23 स्वर्ण, 20 रजत, 15 कांस्य पदकों के साथ प्रथम रहा। भारत ने 15 स्वर्ण, 16 रजत, 19 कांस्य पदक जीत कर दूसरा स्थान हासिल किया। ईरान 8 स्वर्ण, 6 रजत व 2 कांस्य पदकों के साथ तीसरे स्थान पर रहा। अब तक की एशियाई खेलों का आंकलन करें तो पंजाबी खिलाड़ियों ने व्यक्तिगत तथा टीम इवैंटों में  60 स्वर्ण पदक जीते हैं। जिनमें हॉकी में 4 स्वर्ण पदक तथा एथलैटिक्स के 43 स्वर्ण पदक हैं। पंजाबी खिलाड़ियों ने अन्य खेलों में भी 13 स्वर्ण पदक जीते। यह सिलसिला लगातार जारी है।
हांग ज़ू की एशियाई खेलों में जिन पंजाबी खिलाड़ियों ने 20 पदक जीते उनके नाम हैं : सिफत कौर समरा, हरमनप्रीत कौर, कनिका आहूजा, तेजिन्दर सिंह तूर, अर्जुन सिंह चीमा, ज़ोरावर सिंह संधू, परनीत कौर, हरमनप्रीत सिंह, हार्दिक सिंह, मनप्रीत सिंह, मनदीप सिंह, वरुण कुमार, गुरजंट सिंह, शमशेर सिंह, कृष्ण बहादुर पाठक, सुखजीत सिंह, जर्मनजीत सिंह बल्ल, अकाशदीप सिंह, प्रभसिमरन सिंह, हरमिलन बैंस, जसविन्दर सिंह, ध्रुव कपिला, राजेश्वरी कुमारी, विजय वीर सिंह संधू, सतनाम सिंह, सुखमीत सिंह, चरणजीत सिंह, मंजू रानी तथा सिमरनजीत सिंह।
1966 की एशियाई खेलों में भारत ने पहली बार हॉकी में स्वर्ण पदक जीता तथा भारतीय टीम में 12 खिलाड़ी पंजाब के थे। उनके नाम हैं : प्रिथीपाल सिंह, धर्म सिंह, कर्नल बलबीर सिंह, बलबीर सिंह पुलिस, बलबीर सिंह रेलवे, हरमीक सिंह, जगजीत सिंह, जगदीप सिंह, हरीपाल कौशिक, हरबिन्दर सिंह, तरसेम सिंह तथा इंद्र सिंह। अब जिस भारतीय हॉकी टीम ने हांग ज़ू में स्वर्ण पदक जीते, उस टीम का कप्तान पंजाब का हरमनप्रीत सिंह था तथा उप-कप्तान हार्दिक सिंह। उस टीम में 10 पंजाबी खिलाड़ी थे, जिन्होंने हॉकी मैचों में 43 गोल किए। यह वर्णनीय है कि हांग ज़ू की एशियाई खेलों के लिए चुने गए पंजाब के 48 खिलाड़ियों को 8-8 लाख रुपये ओलम्पिक खेलों की तैयारी के लिए दिए गए थे, पदक जीतने में सफल रहे। अब विजेता खिलाड़ियों को करोड़ों के पुरस्कार भी मिल रहे हैं। 
हॉकी का खेल अब तक 24 बार ओलम्पिक खेलों में खेला गया है जिसमें 8 बार इंडिया जीता, 4 बार जर्मनी, 3 बार पाकिस्तान, 3 बार ग्रेट ब्रिटेन, 2 बार नीदरलैंड तथा 1-1 बार आस्ट्रेलिया, बैलजियम, न्यूज़ीलैंड एवं अर्जेन्टीना। हॉकी का विश्व कप 4 बार पाकिस्तान, 3 बार नीदरलैंड, 3 बार आस्ट्रेलिया, 3 बार जर्मनी, 1 बार इंडिया तथा 1 बार बैल्जियम जीते हैं। एशियाई खेलों में हॉकी में स्वर्ण पदक 8 बार पाकिस्तान, 4 बार भारत, 4 बार दक्षिण कोरिया तथा 1 बार जापान ने जीता है।
अनेक पंजाबी खिलाड़ी हैं जो भारत, पाकिस्तान, कीनिया, यूगांडा, तनज़ानिया, मलेशिया, हांगकांग, सिंगापुर, इंग्लैंड तथा कनाडा की हॉकी टीमों में ओलम्पिक खेल, एशियाई खेल तथा विश्व कप खेल चुके हैं। हॉकी को भारत, विशेष रूप से पंजाबियों की राष्ट्रीय खेल कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। एक बार कीनिया के 11 खिलाड़ी जूड़ों वाले सरदार थे। 1966 में पहली बार एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम में 11 में से 10 खिलाड़ियों के केस पर रुमाल थे। म्यूनिख की ओलम्पिक खेलों में पाकिस्तान, भारत, कीनिया, यूगांडा तथा मलेशिया की हॉकी टीमों में 40 खिलाड़ी पंजाबी मूल के थे। म्यूनिख ओलम्पिक्स में 2 सितम्बर, 1972 को जो मैच भारत एवं कीनिया के मध्य खेला गया था उसमें 15 खिलाड़ियों के केसों पर रुमाल सुशोभित थे। मास्को की ओलम्पिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम के सैंटर फारवर्ड सुरिन्दर सिंह सोढी ने सबसे अधिक 15 गोल किए थे। परगट सिंह दो बार भारतीय हॉकी ओलम्पिक टीमों के कप्तान बने। हरमीक सिंह ने एशियन ऑल स्टाज़र् टीम का नेतृत्व किया। पंजाबी मूल के हॉकी खिलाड़ी 8 देशों की टीमों में अन्तर्राष्ट्रीय मैच खेल चुके हैं।
भारत में पंजाबी नि:संदेह दो अढ़ाई प्रतिशत ही हैं, परन्तु भारतीय हॉकी टीमों में पंजाबी खिलाड़ियों का शुरू से ही बोलबाला रहा है। 1928 की ओलम्पिक खेलों में इंडिया की जिस टीम ने स्वर्ण पदक जीता उसमें 5 खिलाड़ी पंजाबी थे। 1932 में पुन: ओलम्पिक चैम्पियन बनी तो पंजाबी खिलाड़ियों की संख्या 7 हो गई। टीम के कप्तान पंजाब के लाल शाह बुखारी बने। बीस से अधिक पंजाबी खिलाड़ी भारतीय हॉकी टीमों का नेतृत्व कर चुके हैं, जिनमें बलबीर सिंह सीनियर, उधम सिंह, गुरदेव सिंह, चरणजीत सिंह, प्रिथीपाल सिंह, गुरबख्श सिंह, हरमीक सिंह, हरबिन्दर सिंह, अजीतपाल सिंह, सुरिन्दर सिंह सोढी, सुरजीत सिंह, परगट सिंह, रमनदीप सिंह, गगन अजीत सिंह, राजपाल सिंह, बलजीत सिंह, सरदारा सिंह, मनप्रीत सिंह तथा हरमनप्रीत सिंह आदि गिनाये जा सकते हैं। हॉकी के खेल में पंजाब के 100 से अधिक ओलम्पियन हैं। ज्यादातर ने ओलम्पिक खेलों में 2-2 एवं 3-3 स्वर्ण पदक जीते हैं। उधम सिंह ने चार ओलम्पिक्स में  एक रजत तथा तीन स्वर्ण पदक हासिल किए, जो अब तक का रिकार्ड है।
1947 में पाकिस्तान के बनने से पंजाब के देशों में विभाजन हो गया। फिर एशियाई खेलों तथा ओलम्पिक खेलों में हॉकी के फाइनल मैच आम तौर पर पाकिस्तान तथा भारतीय टीमों के मध्य खेले जाने लगे, ऐसा कह लें कि पूर्वी पंजाब तथा पश्चिमी पंजाब के मध्य होने लगे।
मैच चाहे मैलबोर्न में खेला जाता हो, चाहे रोम, टोक्यो, बैंकाक, तहरान या कुआलालम्पुर, एक तरफ पूर्वी पंजाबी तथा दूसरी ओर पश्चिमी पंजाबी होते । बाईस में से पन्द्रह सोलो खिलाड़ी पंजाबी होने के कारण खेल मैदान की भाषा पंजाबी होती है और ‘लईं नशररिया, देईं बीरिया’ हुई जाती!
हांग ज़ू की 19वीं एशियाई खेलों में भारत के 660 खिलाड़ियों ने भाग लिया, जिनमें 249 खिलाड़ियों ने 28 स्वर्ण, 28 रजत, 41 कांस्य, कुल 107 पदक जीतने में योगदान डाला। यह पहली बार हुआ है कि भारत ने 100 पदकों का आंकड़ा पार किया। जर्काता की 18वीं एशियाई खेलों में भारत ने 16 स्वर्ण, 23 रजत, 31 कांस्य, कुल 70 पदकों पर जीत हासिल की। चीन ने सबसे अधिक पदकों पर जीत हासिल की जिनकी कुल संख्या 383 है। उनमें 201 स्वर्ण, 111 रजत, 71 कांस्य पदक हैं। दूसरे स्थान पर जापान है, जिसने 52, 67, 69 कुल 188 पदक प्राप्त किए हैं। तीसरे स्थान पर रहते हुए दक्षिण कोरिया ने 42, 59, 89 कुल 190 पदकों पर जीत हासिल की। चौथे स्थान पर भारत है तथा पांचवें स्थान पर उज्बेकिस्तान है, जिसने 22, 18, 31 कुल 71 पदकों पर जीत हासिल की। आश्चर्यजनक बात यह है कि इंडिया से अलग हुए हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान तथा बंगलादेश एक भी स्वर्ण पदक जीत न सके। पूर्वी पंजाब के 32 खिलाड़ियों ने 20 मैडल जीते हैं, जबकि पश्चिमी पंजाब वाला पाकिस्तान 1 रजत तथा 2 कांस्य पदकों पर ही जीत  हासिल कर सका।
भारत अनेक संस्कृतियों, धर्मों, जातियों, नस्लों, भाषाओं, पहाड़ों, रेगिस्तानों, जंगलों तथा मैदानी क्षेत्रों वाला बहुरंगीय देश है। इस पर एक रंग रंगने की राजनीति नहीं होनी चाहिए। ऐसे ही नहीं कहा जाता : सौ फूल खिलने दो। जहां हर फूल के खिलने और महकने के अवसर मिलेंगे वहीं से पदक हासिल किए जा सकेंगे। भारत के विभिन्न राज्यों के खिलाड़ियों द्वारा एशियाई खेलों में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों की संख्या इस प्रकार है :
हरियाणा के 44 खिलाड़ी हैं, पंजाब के 32, महाराष्ट्र 31, उत्तर प्रदेश, 21, तमिलनाडू 17, वेस्ट बंगाल 13, राजस्थान 13, केरल 11, मध्य प्रदेश 10, मणिपुर 9, आंध्र प्रदेश 9, हिमाचल 7, नई दिल्ली 7, कर्नाटक 6, झारखंड 4, उड़ीसा 3, असम 2, उत्तराखंड 2 तथा मिज़ोरम का 1 खिलाड़ी। भारत के कुल 660 खिलाड़ियों में से 249 खिलाड़ियों ने 107 पदक जीतने में योगदान डाला। 29 पदक एथलीटों ने जीते, 22 शूटरों ने, 9 तीरांदाज़ों ने, 6 पहलवानों, 5 स्कवैश के खिलाड़ियों ने, 5 रोइंग के, 5 वेटलिफ्टरों ने, 3 सेलिंग के, 2 क्रिकेट टीमों के, 2 कबड्डी टीमों के, 2 हॉकी टीमों के, 3 बैटमिंटन के, रोलिंग स्पोर्ट्स, 1 ब्रिज, 1 गोल्फ, 1 वशू, 1 कोइंग, 1 सेपक टकरा तथा 1 टेबल टैनिस का। भारत में अब इतनी खेलों का ढांचा खड़ा हो गया है कि भविष्य में भारतीय खिलाड़ियों से अभी पदक जीतने की उम्मीद की जा सकती है। अगले वर्ष पैरिस में ओलम्पिक खेल होंगे। भारत लक्ष्य चाहे 20 पदकों का रखे, परन्तु 10 का आंकड़ा तो हर स्थिति में पार होना चाहिए।
हांग ज़ू के एशियाई खेलों के उद्घाटनी समारोह के दौरान भारतीय दल का नेतृत्व भारतीय हॉकी टीम के कप्तान हरमनप्रीत सिंह ने किया जिसका साथ मुक्केबाज़ लवलीना ने दिया। समाप्ति समारोह की रस्म ओलम्पिक कौंसिल ऑफ एशिया के कार्यकारिणी अध्यक्ष राजा रणधी सिंह ने निभाई। 2026 के 20वें एशियाई खेल जापान के शहर नगोआ में, 2030 के 21वें खेल कतर की राजधानी दोहा में तथा 2034 के 22वें एशियाई खेल अरब की राजधानी रियाद में होंगे। दिल्ली की पहली एशियाई खेलों में 11 देशों के 500 से कम खिलाड़ी  पहुंचे थे, जबकि हांग ज़ू के 19वें एशियाई खेलों में 45 देशों के 12 हज़ार से अधिक खिलाड़ियों ने भाग लिया। मुकाबले   में 6 स्पोर्ट्स से अधिक हुए 46 स्पोर्ट्स तक के इवैंट 57 से 465 तक पहुंच गए। चीन ने अब तक इस बार ओलम्पिक खेल तथा तीन बार एशियाई खेलों का आयोजन किया है। अब चैलेंज है कि महान भारत भी न सिर्फ तीसरी बार एशियाई खेल ही करवाए, अपितु पहली बार ओलम्पिक खेल करवाने के लिए भी मैदान में उतरे। ऐसा करने से भारत को खेलों में और अधिक पदक जीतने का अवसर मिलेगा।
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