कन्या-पूजन से पहले बेटियों के प्रति दृष्टिकोण बदलना होगा

नवरात्र देवी मां की आराधना का पर्व। हर साल पूरे देश में यह आयोजन श्रद्धा व उत्साह से मनाया जाता है। घरों में कन्या पूजन की भी पूरी तैयारी हो रही है। प्रतिदिन देवी मां की पूजा अर्चना की जाती है। कुल मिलाकर सारी दुनिया जानती है कि अपने देश में मातृवत् परदारेषु की संस्कृति है। मां प्रथम गुरु है, मां प्रथम आचार्य है और बेटी को लक्ष्मी के रूप में ही स्वीकार किया जाता है। यह हमारे देश की संस्कृति का सुखद व  गौरवशाली पक्ष है, पर आज जिन विकृतियों का शिकार हमारे देश का सामाजिक जीवन हो गया है, वह अत्यंत ही पीड़ादायक है।
 दुनिया भर के लोग भारत में पर्यटन के लिए आते हैं। वे यह भी जानते हैं कि भारत में बेटियों का विशेष सम्मान है, परन्तु जब यह समाचार मिलता है कि विदेशी महिला के साथ दुराचार या दुष्कर्म हो गया तो यह एक व्यक्ति का अपराध नहीं रहता, पूरे देश को बदनाम करने वाला विषय हो जाता है। देश के समाचार पत्रों में, टीवी चैनलों की खबरों के बुलेटिन के साथ एक दिन भी ऐसा नहीं जाता जब देश के किसी न किसी भाग में बालिग अथवा नाबालिग के साथ दुराचार का समाचार न मिले। समाचार मिलता है कि एक युवती का अपहरण हुआ और कार में ही उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म के बाद सड़क पर फेंक गए। इन समाचारों के अधिक उदाहरण देना आवश्यक नहीं, क्योंकि दुर्भाग्य से हमें प्रतिदिन यही सुनना और देखना पड़ता है।
यहां कहना यही है कि अपराधियों से क्या शिकायत की जाए, देश के कानून के मुताबिक उन्हें दंड मिलेगा। कुछ दिन पुलिस दौड़ेगी, अपराधी पकड़े जाएंगे, कानूनी प्रक्रिया और बहुत से केसों में सिफारिशी प्रक्रिया भी चलेगी और जेल की सलाखों के पीछे अपराधी पहुंच जाएंगे। सवाल यह है कि किसी घटना विशेष के बाद सख्त कानून बनाने की घोषणा, दुख प्रकट करने का वक्तव्य या सदा चिंता करने वाले नेताओं की चिंताओं से भरे समाचार कब तक सुनते रहेंगे। हर प्रबुद्ध नागरिक के समक्ष प्रश्न यह है कि आखिर देश का वातावरण इतना वासनामय कैसे हो गया कि प्रतिवर्ष हज़ारों बालिकाएं और युवतियां घिनौने अपराध का शिकार हो रही हैं। क्या पुरुष मानसिकता विकृत हो गई है? 
दुखद समाचार यह भी सुनने को मिलता है कि अधेड़ आयु की महिला का अपहरण कर सामूहिक दुष्कर्म किया गया, हत्या कर दी गई। इस सारे लज्जाजनक और दुखद कांड में शराब का दोष ज्यादा है और शराब पिलाने वालों का तो है ही। सरकार की नाक तले विज्ञापनों द्वारा समाज का वातावरण इतना वासनामय और विलासितापूर्ण हो चुका है कि अबोध मन और छोटी उम्र के लड़के-लड़कियां जब सब देखते हैं तो उनकी भी सुप्त इच्छाएं जागती हैं। प्रत्यक्ष जीवन में जो वर्जित है, अपराध है, वह सब खुले रूप से  चैनलों और समाचार पत्रों के माध्यम से दिखाया जाता है। शरीर का भद्दा प्रदर्शन करके नोट कमाने वाले तो सुरक्षित घरों में पहुंच जाते हैं, परन्तु यह सब देखकर भटका हुआ वर्ग अपनी अनियंत्रित वासनाओं को पूरा करने के लिए किसी को भी अपनी हवस का शिकार बना लेता और फिर पुलिस थाने, अदालत और अंत में जेल तक जा पहुंचता है। 
अभी भी देश के लाखों बच्चे स्कूल कालेजों में नहीं जा पा रहे, परन्तु जो पहुंच भी गए हैं, उन्हें नैतिक शिक्षा देने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा। धर्म-निरपेक्षता के ठेकेदार गिरते हुए सामाजिक स्तर को नहीं देखते, लेकिन नैतिक शिक्षा में उन्हें साम्प्रदायिकता की बू आने लगती है। अगर स्कूलों कालेजों में शिक्षा के साथ सामाजिक नैतिकता को नहीं जोड़ा गया तो वर्तमान पीढ़ी कहां तक पहुंच जाएगी, इसका अनुमान भी भयावह है। 
देश में न जाने किस समाज ने युवक-युवतियों के विवाह पूर्व संबंधों को सहजीवन कहकर मान्यता दे दी और कानून भी उनके संरक्षण के लिए आ गया। क्या यह भारत का जीवन मूल्य है? पाठ-पूजा, दान-पुण्य, तीर्थ स्नान करके स्वर्ग प्राप्ति का रास्ता दिखाने वाले इस देश के लाखों धर्म गुरु भी उन बेचारियों को नर्क से छुड़ाने के लिए कुछ नहीं करते जिनका शरीर कुछ सिक्कों से खरीदने के लिए हर धर्म और मज़हब का व्यक्ति पहुंच जाता है जिसमें उसे कोई अपराधबोध नहीं होता। अब तो कड़वे करेले पर नीम चढ़ गई। देश के कानून ने विवाहेत्तर संबंधों को अपराध न मानने की बात कह दी है। घर गृहस्थी भी उजड़ेगी और बच्चे भी गुमराह होंगे। 
शराब के पैसे से सरकारें चलती हैं, सरकारों में कुछ लोग ऐसे भी बैठे हैं जो शराब को नशा ही नहीं मानते। यह भूल जाते हैं कि महिलाओं के विरुद्ध जितने भी अपराध होते हैं तथा बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाता है, उसका कारण शराब ही है। नैतिकता का पाठ केवल भाषणों से नहीं पढ़ाया जा सकता। सरकारों, समाज और धर्म गुरुओं को यह मान लेना चाहिए कि शराब पिलाने वाला देश या समाज सामाजिक नैतिकता स्थापित कर ही नहीं सकता। महिलाएं तो क्या, हमारे बच्चे भी सुरक्षित नहीं रह सकते। नशे में अंधे लोग तो परिवारों में भी अपराध और हत्याएं तक करने के दोषी पाए गए हैं। इसलिए कन्या पूजन का महत्व बहुत थोड़ा रह जाता है।
आज जब सभी देशवासी भारत की संस्कृति का गौरवमय त्यौहार कन्या पूजन करने की तैयारी में हैं तो उनसे यह निवेदन और प्रश्न भी है कि आखिर जहां कन्या की सम्मानजनक स्थिति बने रहे, ऐसा समाज बनाने के लिए क्यों कुछ नहीं करते? केवल पुलिस के डंडों से नैतिकता नहीं संवरती, उसके लिए नैतिक प्रयास भी करने होंगे।
इसके साथ ही आरक्षण द्वारा कुछ महिलाओं को पंचायत, निगमों या भविष्य में संसद या विधानसभाओं में भेजने पर भी महिलाएं तब तक सशक्त नहीं हो सकतीं, जब तक समाज में स्वस्थ वातावरण नहीं होगा।