चीन को ले डूबेगा बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजैक्ट

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) प्रोजेक्ट में चीन ने अरबों डॉलर का निवेश किया है, यूरोप के साथ रेलवे कनेक्शन को पुन: मज़बूत किया है, एशिया के बंदरगाहों में बहुत पैसा लगाया है और अफ्रीका में इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास किया है, लेकिन बीआरआई की दसवीं वर्षगांठ आते आते इस सफेद हाथी ने उसके लिए कई चिंताजनक सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेषकर इस बात से संबंधित कि चीन के भागीदार भारी कज़र् के नीचे दबते चले जा रहे हैं। 17 अक्तूबर, 2023 को बीआरआई ने अपने दस साल पूरे कर लिए हैं। 
गौरतलब है कि पुराने सिल्क रूट से प्रेरित होकर बीआरआई की महत्वकांक्षी योजना बनायी गई थी। चीन ने अपने साथ आने वाले देशों को भारी व्यापारिक व आर्थिक लाभ के सपने दिखाये थे, लेकिन अब दस बरस बाद सफेद हाथी रूपी बीआरआई दोराहे पर खड़ा है और उसे मालूम नहीं कि किधर जाना है। साथ ही श्रीलंका से लेकर ज़ाम्बिया तक उसके अनेक भागीदार ऋण के बोझ तले पिसते जा रहे हैं। चिंताजनक प्रश्नों को मद्देनज़र रखते हुए चीन की सरकार ने 10 अक्तूबर को बीआरआई के अतीत, वर्तमान व भविष्य पर श्वेत पत्र जारी किया, जिसमें वायदा किया गया है कि यह योजना ‘खुले, ग्रीन व साफ सहयोग के विचार के प्रति समर्पित है... इसमें भ्रष्टाचार के लिए शून्य बर्दाश्त है और नियमित व उच्च-गुणवत्ता विकास को प्रोत्साहित करती है।’
गौरतलब है कि जिनपिंग ने अपने कार्यकाल के पहले वर्ष (2013) में बीआरआई को लांच किया था, दो हिस्सों के साथ भूमि आधारित सिल्क रोड इकनोमिक बेल्ट, जिसका उद्घाटन कजाखस्तान में किया गया और फोकस ऊर्जा, इन्फ्रास्ट्रक्चर व यूरेशिया में कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स पर किया गया। समुद्री सिल्क रोड की घोषणा इण्डोनेशिया में की गई। इस प्रोजेक्ट को पहले ‘वन बेल्ट, वन रोड’ नाम दिया गया था, लेकिन जल्द ही इसका नाम बीआरआई कर दिया गया ताकि यह सन्देश दिया जा सके कि यह अधिक खुला व समावेशी प्रोजेक्ट है न कि कोई चीनी एजेंडा। बहरहाल, चीनी भाषा में इस प्रोजेक्ट का नाम आज भी ‘यी दाई, यी लू’ (वन बेल्ट, वन रोड) ही है। लैंड बेल्ट में छह गलियारों की कल्पना की गई थी वे हैं चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी), न्यूयूरेशियन लैंड ब्रिज इकनोमिक कॉरिडोर, चीन-इंडोचीन पेनिन्सुला इकनोमिक कॉरिडोर, चीन-मंगोलिया-रूस आर्थिक गलियारा, चीन-केंद्रीय एशिया-पश्चिम एशिया आर्थिक गलियारा और बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारा (बीसीआईएम)।
साल 2013 में योजना को लांच करते हुए चीन ने केंद्रीय एशिया, दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के अपने अधिकतर पड़ोसियों को अपने साथ मिला लिया। भारत ने सीपीईसी का विरोध करते हुए बीआरआई में शामिल होने से इन्कार कर दिया, क्योंकि यह पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर से होकर गुज़रता है। चूंकि भारत शामिल नहीं हुआ, इसलिए बीसीआईएम गलियारा भी रुक गया और बाद में इसकी जगह चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा लांच किया गया। बीआरआई के बारे में आज दस साल बाद भी इसके मोनोलिथ होने की धारणा बनी हुई है। विरोधाभास यह है कि इस धारणा को दोनों प्रायोजकों व आलोचकों ने प्रोत्साहित किया है। बीजिंग के लिए बीआरआई की सबसे बड़ी सफलता दुनिया को चीन की प्रगति व महत्वकांक्षा का संदेश देने में रही है। एक विचार के रूप में बीआरआई ने विशेषरूप से एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमरीका के उन देशों को प्रभावित किया है, जिनमें इन्फ्रास्ट्रक्चर का अभाव है। बीआरआई आवश्यक रूप से उन द्विपक्षीय प्रोजेक्ट्स को एक छाते के नीचे लाया है, जो 2013 से पहले के होने के बावजूद पूरे नहीं हो पा रहे थे। उन पर अब बीआरआई की मुहर लगा दी गई है। बीआरआई को ग्लोबल, इंटरकनेक्टेड मास्टर प्लान के रूप में फ्रेम किया गया है, जबकि वास्तविकता यह है कि निवेश का बहुत बड़ा हिस्सा पार्टनर देशों के एकल एनर्जी या इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में लगाया गया है। बीआरआई में ऐसा बहुत कम है जिसे बहुपक्षीय कहा जाये। मसलन, चीन के नेतृत्व एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (जिसमें भारत भी सदस्य और दूसरा सबसे बड़ा शेयर होल्डर है) की तरह बीआरआई में कोई प्रशासनिक संरचना नहीं है। इसलिए यह बहुपक्षीय पहल नहीं है जैसा कि आमतौर से समझा जाता है, बल्कि विविध द्विभाषीयों का जमावड़ा है। इसका अर्थ यह नहीं है कि बीआरआई का चीन की डिप्लोमेसी व ट्रेड पर नुमायां प्रभाव नहीं पड़ा है।
जो देश बीआरआई में शामिल हुए हैं, उनका चीन के साथ निवेश व व्यापार में इज़ाफा हुआ है और नीति में उन्हें प्राथमिकता दी गई है, लेकिन यह सब भी द्विपक्षीय समझौतों के ज़रिये ही हुआ है। स्वेत पत्र के अनुसार 2013 व 2022 के बीच बीआरआई भागीदारों के साथ व्यापार में 6.4 प्रतिशत की सालाना वृद्धि हुई है जबकि इस दौरान कुल निवेश 380 बिलियन डॉलर तक का हुआ है। दूसरी ओर बीआरआई के आलोचकों का मानना है कि यह भागीदारों को फंसाने के लिए विशाल ‘कज़र् जाल’ है। बहरहाल, ह़क़ीकत यह है कि बीआरआई कोई महान मास्टर प्लान नहीं है बल्कि जटिल जंगल है, जिसमें अनियोजित मनमज़र्ी के अतिरिक्त कुछ नहीं है। मसलन, इसके वित्तीय पक्ष को ही देखें। कोई एक लेंडर नहीं है बल्कि अनेक फण्डर्स का गोलमाल है जो चीन के अनेक सरकारी बैंकों से जुड़े हुए हैं। बीआरआई के पहले वर्ष में फंड्स का वितरण आर्थिक नहीं बल्कि राजनीतिक कारणों से किया गया। शंघाई की एक यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के अनुसार 2023 में 26 बीआरआई भागीदारों के साथ बीआरआई समझौतों में 100 प्रतिशत की कमी आयी। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2023 में चीन से जो दूसरे देशों में निवेश किया गया है, उसमें अधिकांश शेयर राज्य का नहीं बल्कि प्राइवेट सेक्टर का है।

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