घातक प्रदूषण की चादर में लिपटी दिल्ली

दिल्ली का दम घुटने लगा है। प्रदूषण के बढ़ने के पीछे गिरते तापमान को कारण माना जा रहा है, लेकिन इसमें पराली का भी एक बड़ा हिस्सा शामिल है। वही पराली जो धान कटने के बाद निकलती है। धान से निकलने वाली ये पराली दिल्ली-एनसीआर के लोगों का जान निकाल रही है। खासकर दिल्ली का दम तो बेहद घुट रहा है। और भी आसपास के कई इलाके हैं जहां की हवा बहुत ही खराब हो चली है। पराली का धुआं दिल्ली की हवा को जहर बना रहा है। यहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 के आसपास चल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिहाज से यह हवा किसी जहर से कम नहीं। असल में हर साल सर्दियां शुरू होते ही देश की राजधानी दिल्ली लगातार दम घोंटू हवा में जीने को मज़बूर है। सरकार के हजार दावों और कथित प्रयासों के बावजूद दिल्ली वालों के लिए हवा की गुणवत्ता यानी एक्यूआई का गिरता स्तर मुसीबत बना हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार वायु प्रदूषण से मरने वाले लाखों लोगों के आंकड़े जारी करता रहता है लेकिन हमारे नीति-नियंता इस दिशा में गंभीर नज़र नहीं आते।
दिल्ली में वायु गुणवत्ता का अत्यंत खराब श्रेणी में आना नागरिकों की चिंता बढ़ाने वाला है। वायु गुणवत्ता इंडेक्स का तीन सौ पार करना इसका ज्वलंत उदाहरण है जो बताता है कि गाल बजाती राजनीति इस संकट के मूल का उपचार करने में सक्षम नहीं है। ऐसी स्थितियां हर साल आती हैं कभी ठीकरा पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के धान उत्पादक किसानों के सिर फोड़ दिया जाता है। कभी दिवाली के पटाखों को जिम्मेदार कह दिया जाता है। लेकिन हमारी तेज़ी से बदलती और पर्यावरण विरोधी जीवनशैली की कमियों और खामियों पर व्यापक विमर्ष नहीं होता। वास्तव में, हर साल इन दिनों तापमान में गिरावट आने व हवा की रफ्तार कम होने से प्रदूषकों को जमा होने का मौका मिल जाता है। 
दिल्ली-एनसीआर की हवा इतनी जहरीली हो गई है कि लोगों को सांस लेने में भी दिक्कत आ रही है। कई लोगों ने आंखों में जलन और गले में खराश की शिकायत भी है। हालात की गंभीरता को आप इसी से समझ सकते हैं कि दिल्ली-एनसीआर में खराब होती हवा के कारण सांस के मरीजों पर दवाएं बेअसर हो रही है। ऐसे मरीजों की स्थिति गंभीर होने पर आपातकालीन में अस्पताल लाना पड़ रहा है। कई मरीजों की हालत इतनी गंभीर हो जाती है कि उन्हें वेंटिलेटर पर शिफ्ट करना पड़ता है। सांस रोग के विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसे मरीजों की हालत सामान्य रखने के लिए दवाएं चलती है, लेकिन प्रदूषण का स्तर बढ़ने के बाद दवाएं भी बेअसर हो रही हैं। दवा से गंभीर होता रोग कंट्रोल नहीं हो पा रहा। पिछले कुछ दिनों से अस्पतालों के आपातकालीन विभागों में ऐसे मरीजों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है।
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के कारण बढ़ रही समस्याओं का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। हालांकि, अस्पताल में आने वाले मरीजों में इजाफा नहीं देखा जा रहा, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में सुविधा सीमित है। ऐसे में उक्त आंकड़े से अनुमान नहीं लगाया जा सकता। लेकिन सोसायटी में किए गए अध्ययन बताते हैं कि पिछले 25 सालों में इसमें लगातार बढ़त दर्ज की जा रही है। सुबह के समय प्रदूषण का स्तर बढ़ने के कारण बच्चों की परेशानी बढ़ गई है। डाक्टरों के अनुसार, इस तरह की जहरीली हवा के लम्बे समय तक संपर्क में रहने से श्वसन संबंधी समस्याओं के अलावा गंभीर कई समस्याएं हो सकती हैं। वहीं पर्यावरण प्रदूषकों के संपर्क में आने से गर्भावस्था के प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं। 
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अनुसार हर वर्ष पराली जलाने के सबसे अधिक मामलों के लिए जिम्मेदार पंजाब में 2022 में पराली जलाने की 49,922 घटनाएं, 2021 में 71,304 घटनाएं एवं 2020 में 83,002 घटनाएं हुईं थीं। हरियाणा में 2022 में पराली जलाने की 3,661 घटनाएं दर्ज की गईं जो 2021 में 6,987 और 2020 में 4,202 ऐसी घटनाएं हुई थीं। प्रतिकूल मौसम संबंधी स्थितियां और प्रदूषण के स्थानीय स्रोतों के अलावा, पटाखों और धान की पराली जलाने से होने वाले उत्सर्जन के चलते, सर्दियों के दौरान दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर में पहुंच जाती है। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री के अनुसार पड़ोसी राज्यों में अब तक दर्ज की गई पराली जलाने की घटनाएं पिछले साल की तुलना में कम हैं और शहर के वायु प्रदूषण में इन घटनाओं से उठे धुएं का समग्र योगदान कम होने की उम्मीद है।
हर बार जब संकट सिर पर आ जाता है और सुप्रीम कोर्ट लगातार फटकार लगाता है कि दिल्ली गैस चौंबर में तब्दील हो गया, तब दिल्ली सरकार सक्रियता दिखाती है। दरअसल, जो कार्रवाई होती भी है वह प्रतीकात्मक होती है। मीडिया के जरिये ये दिखाने का प्रयास होता है कि सरकार भाग-दौड़ कर समस्या का समाधान करने को तत्पर है। लेकिन जैसे ही बारिश होने या हवा के रुख में बदलाव से स्थिति में सुधार होता है, सरकार भी शिथिल हो जाती है। दरअसल, मूल बात यह है कि बेहद तेज़ी से हुए बहुमंजिला इमारतों के निर्माण से हवा के मूल प्रवाह मार्ग में अवरोध पैदा हो गया है। यह प्रदूषण सिर्फ पराली का नहीं है। बदले लाइफ स्टाइल के चलते हर घर में कई-कई कारें रखने से भी प्रदूषण में इजाफा हुआ है। हमारे पॉलिसी मेकर्स का सबसे बड़े दोष यह है कि वे सार्वजनिक यातायात व्यवस्था को इतना सहज-सरल ढंग से उपलब्ध नहीं करा पाये कि लोग कार सड़कों पर उतारने के बजाय सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें। सरकारों को सूक्ष्म कणों पीएम 2.5 के संकट के समाधान के लिये निर्णायक अभियान चलाना होगा। साथ ही आम लोगों व किसानों को जागरूक करके इस संकट में सहयोग का आग्रह किया जाना चाहिए।