कटघरे में खड़ी पार्टी

पहले दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ज़मानत देने से इन्कार करना तथा इसके साथ ही प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) द्वारा मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को तलब करने के समाचारों ने आम आदमी पार्टी के लिए बड़ी नमोशी पैदा कर दी है। वैसे तो लगभग एक दशक पूर्व अस्तित्व में आई इस पार्टी के लिए पेश ऐसी नमोशियां कोई नई बात नहीं परन्तु यदि ऐसी घटनाएं प्रतिदिन घटित होने लगे तो लोगों के दिल में पैदा हुए सन्देह तथा आशंकाएं और भी बढ़ जाती हैं। देश भर में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की एक ऐसे व्यक्ति अन्ना हज़ारे ने शुरुआत की थी जिनका बेहद प्रभाव था तथा जिनकी विश्वसनीयता पर कोई किन्तु-परन्तु नहीं किया जाता। इस आन्दोलन को आधार बना कर ही अरविन्द केजरीवाल तथा उसके अन्य अनेक साथी राजनीति की सीढ़ियां चढ़े थे। केजरीवाल द्वारा इस आन्दोलन के बाद ही राजनीतिक पार्टी के गठन की घोषणा की गई थी, जिससे अन्ना हज़ारे ने अपने पांव पीछे खींच लिये थे परन्तु केजरीवाल तथा उसके साथियों ने इस मार्ग पर आगे चलने को प्राथमिकता दी थी।
इस पार्टी को पहले से अन्य राजनीतिक पार्टियों से निराश हो चुके लोगों ने बड़ा समर्थन दिया था, जिस कारण आम आदमी पार्टी दिल्ली प्रदेश में अपनी सरकार बनाने में सफल हो गई थी। आज तक भी वहां आम आदमी पार्टी की सरकार कायम है। केजरीवाल उसके मुख्यमंत्री हैं परन्तु विगत पूरी अवधि में जहां इस पार्टी का प्रभाव कम हो गया है, वहां लगातार यह अनेक विवादों में भी घिरती दिखाई दे रही है। देश सें भ्रष्टाचार को खत्म करने का स्वप्न तथा आदर्श लेकर उस समय जो नेता इस व्यक्ति के साथ जुड़े थे, उनमें से आज ज्यादातर ने संबंध तोड़ लिए हैं तथा वे निराशा के आलम में हैं। उनके स्वप्न चकनाचूर हो चुके हैं। आशा निराशा में बदलती जा रही है। दिल्ली के बाद ऐसा कुछ ही पंजाब में घटित हुआ था। पंजाब के ज्यादातर लोग वर्षों से सक्रिय राजनीतिक पार्टियों से बेउम्मीद तथा निराश हो चुके थे। उन्होंने तीसरे विकल्प के रूप में इस पार्टी को भारी समर्थन दिया था परन्तु इस प्रदेश में भी डेढ़ वर्ष की अवधि में ही पैदा हुई आशा बुरी तरह निराशा में बदल चुकी है।
पंजाब की भगवंत मान सरकार विज्ञापनबाज़ी में अधिक विश्वास रखती है, परन्तु क्रियान्वयन से वंचित दिखाई देती है। प्रदेश में मुफ्त रियायतें देने की घोषणाओं तथा नीतियों ने इसे और भी बुरी तरह ऋण में फंसा दिया है। आगामी समय में एक तरह से यहां आर्थिक आपात्काल लगने की सम्भावनाएं बन गई हैं। भ्रष्टाचार को खत्म करना, नशे को खत्म करना, लोगों को प्राथमिक सुविधाएं देने तथा विकास कार्यों में तेज़ी लाने की घोषणाएं गुम होती जा रही हैं।
सरकार ने अपनी मुख्य प्राथमिकता अपने राजनीतिक विरोधियों से किसी न किसी प्रकार से बदला लेने की बना ली है। आश्चर्यजनक बात यह है कि सरकार ऐसा पुलिस का शासन भ्रष्टाचार को आधार बना कर स्थापित कर रही है, जिसमें वह स्वयं फंसती जा रही है। लोगों को सस्ती रेत-बजरी की सुविधा देने की घोषणा भी पूरी तरह खोखली साबित हो चुकी है। नशों का प्रचलन पहले से भी अधिक फैलता प्रतीत होने लगा है। भ्रष्टाचार पहले की तरह निम्न स्तर से ऊपर तक फैला हुआ है। अब तक इसके मंत्रियों तथा विधायकों के अनेक घोटाले सामने आ चुके हैं, जिनके संबंध में सरकार ने आंखें मूंद रखने में ही अपनी भलाई समझी है।
यदि विरोधी राजनीतिक पार्टियों को डरा-धमका कर तथा लोगों को बयानबाज़ी से भ्रम में डाले रखना ही इसकी नीति का एक बड़ा हिस्सा है तो इसकी थोथी वास्तविकता काफी सीमा तक अब सामने आ चुकी है। क्रियान्वयनों से वंचित बयान ज्यादा समय तक स्थायी नहीं हो सकते। आबकारी की जो नीति दिल्ली की ‘आप’ सरकार ने क्रियान्वयन में लाई थी, जिसका रहस्योद्घाटन अब सर्वोच्च न्यायालय तक ने कर दिया है, वही नीति ‘आप’ की पंजाब सरकार ने भी अपनाई हुई है। इसका बड़ा कारण यह है कि पंजाब सरकार दिल्ली में बैठे इसके नेताओं के ‘रिमोट कंट्रोल’ से ही चलती है। आगामी समय में इसे भी इस नीति का खमियाज़ा भुगतना पड़ सकता है; क्योंकि पंजाब सरकार के इस विभाग से सम्बद्ध कई बड़े अधिकारी तो ई.डी. के पास पहले ही पेशी भुगतने जाने लगे हैं। इस घोटाले ने जहां इस पार्टी को और भी द़ागदार कर दिया है, वहीं इसे कटघरे में भी ला खड़ा किया है, जिससे पार्टी की छवि और धूमिल हुई है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द