इज़रायल-हमास युद्ध को हल्के से न लें

कुछ दिन पहले हमास ने इज़रायल पर पूरी तैयारी के साथ हमला कर दिया और लगभग 200 नागरिकों को बंधक बना लिया। जवाबी कार्रवाई करते हुए इज़रायल ने गाजा पट्टी पर ज़ोरदार हमले किये, जिससे भारी नुकसान हुआ। नागरिकों को गाजा पट्टी छोड़ कर जाने को कहा गया। उन्होंने पलायन भी किया परन्तु ‘जाएं तो जाएं कहां?’ की समस्या विकट बनी रही। यह युद्ध अब हफ्तों तक चल चुका है और अभी तक इसका छोर नज़र नहीं आ रहा, क्योंकि इज़रायल अब एक निर्णायक लड़ाई ठान चुका है। इस युद्ध ने पश्चिम एशिया की भू-राजनीति में उथल-पुथल ला दी है। गाजा में पानी, बिजली और जरूरी वस्तुओं की सप्लाई बंद करके इज़रायल ने उस पर सैन्य धावा बोला है, क्योंकि अमरीका और यूरोपियन यूनियन ने इज़रायल का भरपूर पक्ष लिया है। सो अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में व्यापक हलचल देखने में आ रही है। हालांकि इज़रायल से अपनी प्रतिक्रिया के तीखेपन को थोड़ा धीमा रखने को कहा गया है, परन्तु वह सबक सीखाने के मूड में है। अब चीन और रूस अरब जगत को कुछ स्पोर्ट देने के मूड में हैं जिससे फिलिस्तीन समस्या पर पूरा फोकस हो। पिछले हफ्ते व्लादीमिर पुतिन ने चीन जाकर शी जिनपिंग से भेंट की। बीजिंग पहुंच कर  रूस-चीन की घोषणा हुई कि उनकी मित्रता अटूट है। पहले जब फरवरी 2022 में वह बीजिंग गये थे, लौटकर कुछ ही दिनों में रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया था। तब से लेकर अब तक रूस-चीन संबंध पुख्ता ही हुए हैं। आज रूस चीन को प्रतिदिन 20 लाख बैरल तेल बेच रहा है जोकि उसके कुल तेल निर्यात का एक तिहाई से भी अधिक है। पुतिन की चीन यात्रा से पूर्व रूसी विदेश मंत्री और चीनी समकक्ष की बीजिंग में मुलाकात हुई। तब अन्य दूसरे मसलों पर बातचीत के अलावा इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भी बात चली। चीन की तरफ से यह स्पष्ट किया गया कि चीन सिविलियंस के विरुद्ध हर कार्यवाही की निंदा करता है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि यू.एन. सुरक्षा परिषद् को इस मामले पर कार्रवाई करते हुए दोनों पक्षों के बीच वार्ता करानी चाहिए।
अमरीका का नज़रिया भी साफ है। अमरीकी राष्ट्रपति इज़रायल का दौरा कर चुके हैं। अपने हथियार भी इज़रायल को भेज चुके हैं। उसके विदेश मंत्री एंटनी बिलंकन मध्य पूर्व में काफी सक्रिय नज़र आते हैं। 12 अक्तूबर से 17 अक्तूबर के बीच उन्होंने इज़रायल, जार्डन, कतर, बहरीन, सऊदी अरब, मिस्र और यू.ए.ई. की अनेक यात्राएं की हैं, लेकिन ज्यादा सफल नहीं हुए। हमास से अपनी रक्षा करने के मामले में उन्हें अरब देशों से कोई ज्यादा तवज्जो नहीं मिली। यहां तक कि नाटो के सहयोगी देशों ने इज़रायल के समर्थन में युद्धपोत भेजने के अमरीकी फैसले को ज्यादा मुनासिब नहीं माना। 
चीन, रूस और अरब देशों से पश्चिम के मतभेद बिल्कुल स्पष्ट हो चुके हैं। अमरीका ने इस क्षेत्र में चीनी और रूसी कूटनीति को बैलेंस करने के लिए इज़रायल, भारत, यू.ए.ई. से संबंध बेहतर करने के लिए काफी काम किया है और इंडिया मिडिल ईस्ट यूरोप इकोनामिक कारीडोर समूह भी गठित किया गया है। अमरीका, इज़रायल और सऊदी अरब के बीच ऐतिहासिक डील कराने के काफी निकट भी आ गया था लेकिन इस युद्ध ने हालात एक बार वैसे ही नहीं रहने दिये।
इस समय युद्ध के बादल बरस रहे हैं। गाजा पट्टी पर लगातार तबाही हो रहा है। मासूम लोग अपनी हिफाजत नहीं कर पा रहे। पलायन कर रहे हैं लेकिन भाग कर जाएंगे कहां? हर तरफ तबाही का मंजर है।