बदकिस्मत अ़फगानी

पाकिस्तान की अस्थायी सरकार द्वारा, देश में बिना दस्तावेज़ों से ़गैर-कानूनी तौर पर रहते 17 लाख अ़फगानियों को देश से बाहर निकालने के किए गए फैसले से इन अ़फगानी शरणार्थियों में हलचल पैदा हो गई है। संयुक्त राष्ट्र संघ तथा शरणार्थियों के मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों ने  भी इस पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है। पाकिस्तान की सरकार ने विगत दिवस ़गैर-कानूनी तौर पर रहते अ़फगान शरणार्थियों को 31 अक्तूबर तक पाकिस्तान से चले जाने की चेतावनी दी थी। सरकार द्वारा यह भी कहा गया था कि यह समय-अवधि खत्म होने के बाद देश में रहने वाले ़गैर-कानूनी अ़फगानियों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी। अपनी इस कार्रवाई पर क्रियान्वयन करते हुए सरकार ने देश के अलग-अलग हिस्सों में सैकड़ों अ़फगानियों को गिरफ्तार किया तथा कहा जा रहा है कि उन्हें अस्थायी रूप से बलोचिस्तान तथा ़खैबर प़ख्तूनखवा में ऐसे शरणार्थियों के लिए बनाए गए राहत शिविरों में रखा जाएगा। पाकिस्तान सरकार के कड़े व्यवहार के कारण 60 हज़ार के लगभग अ़फगानी वापिस अ़फगानिस्तान भी चले गए हैं तथा भारी संख्या में बलोचिस्तान तथा ़खैबर पख्तूनखवा की अ़फगानिस्तान के साथ लगती सीमाओं पर एकत्रित हो गए हैं। जहां उन्हें पीने वाले पानी, भोजन तथा अन्य मूलभूत सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है। दूसरी तरफ तालिबान सरकार भी उनकी रजिस्ट्रेशन करके ही उन्हें वापिस ले रही है, इस क्रियान्वयन में भी काफी समय लग रहा है।
अ़फगानिस्तान में पिछले लगभग चार दशक से हो रही गड़बड़ वाली स्थितियों के कारण भारी संख्या में अ़फगान शरणार्थी पाकिस्तान में आकर समय-समय बसते रहे हैं। पहली बार अधिकतर अ़फगान शरणार्थी 1978-79 में पाकिस्तान आए थे, जब सोवियत यूनियन ने अ़फगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया था। उस समय पाकिस्तान, अमरीका तथा अन्य पश्चिमी देशों ने ऐसे शरणार्थियों की आमद को पाकिस्तान में उत्साहित भी किया था। उन्हें सूबा ़खैबर पख्तूनखवा तथा बलोचिस्तान के सूबों में राहत शिविर बना कर रखा गया था तथा पाकिस्तान एवं उसके पश्चिमी भागीदार इन्हें हथियारों का प्रशिक्षण देकर अ़फगानिस्तान में सोवियत यूनियन की समर्थक सरकार के विरुद्ध जेहाद के नाम पर लड़ने के लिए भेजते रहे थे। 2001 में अल-कायदा के प्रमुख ओसामा-बिन-लादेन द्वारा अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सैंटर और कुछ अन्य स्थानों पर विमान का अपहरण करके हमला किए जाने तथा इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप अमरीका द्वारा तालिबान सरकार के विरुद्ध की गई कार्रवाई के दौरान भी कुछ अ़फगान शरणार्थी पाकिस्तान में आ बसे थे। 2021 में जब अ़फगानिस्तान पर पुन: तालिबान काबिज़ हो गए तो डर तथा दहशत के कारण अधिकतर अ़फगान नागरिक विदेशों में भाग गए। इनमें से भारी संख्या में पाकिस्तान आए थे। संयुक्त राष्ट्र संघ के शरणार्थियों के अधिकारों संबंधी आयोग के अनुमान अनुसार इस समय अ़फगानिस्तान के कुल 37 लाख शरणार्थी पाकिस्तान में रहते हैं। इनमें 13 लाख रजिस्टर्ड शरणार्थी हैं। आठ लाख, 40 हज़ार ऐसे अ़फगानी हैं, जिनके पास अ़फगानिस्तान की नागरिकता संबंधी पहचान-पत्र हैं तथा 7 लाख, 75 हज़ार ऐसे हैं, जिनके पास कोई भी दस्तावेज़ नहीं है। इनमें 6 लाख ऐसे हैं जोकि अ़फगानिस्तान में तालिबान की पुन:सरकार बनने के समय 2021 में आए थे परन्तु पाकिस्तान सरकार का दावा है कि इस समय पाकिस्तान में कुल 40 लाख अ़फगान शरणार्थी रहते हैं, जिनमें 17 लाख ऐसे हैं जिनके पास कोई दस्तावेज़ नहीं है। पाकिस्तान सरकार ऐसे ़गैर-कानूनी अ़फगान शरणार्थियों को वापिस भेजने के लिए बज़िद है।
पाकिस्तान की सरकार द्वारा यह फैसला पाकिस्तान में बढ़ रहे आत्मघाती हमलों के दृष्टिगत लिया गया है। सरकार का आरोप है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान तथा इस्लामिक स्टेट (आई.एस.आई.एस.) जैसे कट्टरपंथी संगठन जोकि पाकिस्तान में आत्मघाती हमले करवा रहे हैं, इस उद्देश्य के लिए इन ़गैर-कानूनी अ़फगानी नागरिकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। सरकार का दावा है कि पिछले समय में पाकिस्तान में जो 24 आत्मघाती हमले हुए हैं उनमें 14 हमलों में  अ़फगान नागरिकों का हाथ था। पाकिस्तान सरकार 8 फरवरी को होने वाले आम चुनावों के दृष्टिगत भी देश में सुरक्षा की स्थिति को मज़बूत करने हेतु इन ़गैर-कानूनी विदेशी नागरिकों को वापिस भेजना चाहती है।
परन्तु पाकिस्तान सरकार के इस कड़े फैसले से पाकिस्तान तथा अ़फगानिस्तान के मध्य संबंधों में तनाव पैदा हो गया है। अ़फगानिस्तान के उप-विदेश मंत्री शेर मोहम्मद आबास सटानिकज़ाई ने एक बयान में कहा है कि यदि पाकिस्तान अपने इस फैसले को वापिस नहीं लेता तो अ़फगानिस्तान भी पाकिस्तान के विरुद्ध कड़े कदम उठाने के लिए विवश होगा। संयुक्त राष्ट्र संघ तथा शरणार्थियों के लिए काम करने वाली अन्य बहुत-सी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने भी पाकिस्तान के इस फैसले की आलोचना की है।
हम समझते हैं कि इतनी जल्दबाज़ी से लाखों की संख्या में पाकिस्तान में ़गैर कानूनी रूप से रहते अ़फगान नागरिकों को वापिस भेजने का पाकिस्तान सरकार का फैसला उचित नहीं है। उसे मानवीय आधार पर अपने इस फैसले पर पुन: विचार करना चाहिए तथा इस संबंध में अ़फगानिस्तान की सरकार के साथ विचार-विमर्श करने के बाद ही कोई उचित नीति बनानी चाहिए। नि:संदेह अ़फगानिस्तान में पिछले लम्बे समय से रहे गड़बड़ वाले हालात के कारण ही ये बदकिस्मत अ़फगानी नागरिक पाकिस्तान में आकर बसने के लिए विवश हुए थे। दूसरे अर्थ में ये लोग अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महा-शक्तियों के हुए आपसी विवाद का शिकार हुए हैं। इन लोगों की मानवीय आधार पर सहायता करना पाकिस्तान, अ़फगानिस्तान तथा समूचे अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय का फज़र् है।