मिलावट-खोरी देश के लिये एक बड़ा कलंक

वैसे तो जब भी भारत में मनाये जाने वाले प्रमुख त्यौहार करीब आते हैं उस समय खाद्य सामग्री विशेषकर दूध, घी, पनीर में व इनसे बनी मिठाइयों में मिलावट की खबरें सुर्खियां बटौरने लगती हैं। परन्तु सच पूछिये तो यह पूरे देश का दुर्भाग्य है कि वह पूरे वर्ष मिलावटी खाद्य सामग्री का शिकार बना रहता है। खेतों में उगाई जाने वाली सब्ज़ियों से लेकर फल तक सभी में रासायनिक तत्वों की भरमार रहती है। अनेक महानगरों व औद्योगिक नगरों में तो खेतों में सब्ज़ियों की सिंचाई के लिये औद्योगिक कचरे व रसायन से युक्त ज़हरीला पानी तक इस्तेमाल किया जाता है। दूध के नाम पर तो 70 प्रतिशत से भी अधिक लोग ज़हर पी रहे हैं। यदि इन पर तुरंत नियंत्रण नहीं किया गया तो एक अनुमान के अनुसार 2025 तक देश की लगभग 87 प्रतिशत आबादी कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी की गिरफ्त में होगी। ज़रा सोचिये कि जिस देश में दूध के उत्पादन से लगभग चार गुना ज्यादा प्रतिदिन दूध की खपत होती हो वहां शुद्ध दूध का प्रश्न ही कहां रह जाता है। 
होली दिवाली जैसे महत्वपूर्ण त्योहारों के दौरान स्वास्थ्य व खाद्य विभाग की टीमें थोड़ी बहुत मुस्तैदी दिखाती हैं जिसके चलते कुछ नाममात्र लोग नकली दूध,खोया, घी, मक्खन, दही या मिठाइयां आदि बनाते हुए पकड़े जाते हैं। कोई नहीं जानता कि ज़हर बेचने वाले इन दुष्ट मिलावटखोरों का ज़हर खा पी कर कितने लोग जानलेवा बीमारियां खरीद बैठे और कितने मौत की आगोश में समा बैठे।
विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का सपना, विश्वगुरु बनने की ललक, देश में धर्म व अध्यात्म के नाम का हिलोरें मारता हुआ समुद्र, पूरे देश में प्रवचन कर्ताओं की भीड़, बुलेट ट्रेन दौड़ने की तैयारी जैसी तमाम बातें उस समय नाचते हुये मोर द्वारा अपना पैर देख लेने के समान हो जाती हैं जब इसी विकासशील भारत में हम मिलावट का बाज़ार सिर चढ़ कर बोलता हुआ देखते हैं। मिलावट खोर केवल दूध घी में ही मिलावट नहीं करते बल्कि यह आटा, बेसन, मसाले, तेल, पनीर, मावा आदि सभी खाद्य सामग्री में मिलावट करते हैं। कैमरा मोबाईल के इस दौर में अब न तो यह सब केवल आशंकाएं रह गयी हैं न ही अंदाज़े। बल्कि इसी मिलावटखोर नेटवर्क में ही काम करने वाला कोई शख्स जब इस भ्रष्ट व मिलावटखोर व्यवस्था से किन्हीं भी कारणों से स्वयं को अलग करता है वही व्यक्ति काम छोड़ने से पहले चुपके से इस मिलावटखोरी प्रकरण की पूरी वीडियो तैयार करता है और खुद ही उसे सोशल मीडिया पर अपलोड कर देता है। फिर चाहे वह सब्ज़ियों में ज़हरीले इंजेक्शन लगाकर रातोंरात सब्जी का आकर व वज़न बढ़ाना हो या रासायनिक अथवा डिटर्जेंट दूध तैयार करना हो। नकली व जहरीली मिठाइयां बनाना हो। घोर गंदगी के वातावरण में खाने-पीने का सामान तैयार करना हो या खाद्य सामग्री तैयार करते समय उसमें सड़ी गली चीज़ों का प्रयोग हो। सब कुछ देश की जनता देखती रहती है। हद तो यह कि बाज़ारों में सरे आम चांदी और सोने का वर्क लगी मिठाईयां बेची जा रही हैं जिनमें न ही सोना है न ही चांदी बल्कि एल्युमीनियम जैसी घातक धातुओं को चांदी और सोने के वर्क के नाम पर पूरे देश में धड़ल्ले से बेचा जा रहा है।
मिलावटखोरी रोकने वाले विभाग वैसे तो वर्ष भर निरंतर जांच पड़ताल करने व नमूने इकट्ठे करने के लिये गठित किये गए हैं। परन्तु इन में मिलावटी मिठाइयों व खाद्य सामग्रियों की जांच पड़ताल में तेज़ी या विभागीय सक्रियता त्यौहारों से कुछ दिन पहले ही नज़र आती है। यही वजह है कि मिलावटखोरों के हौसले बुलंद रहते हैं और साल भर मिलावटी खाद्य सामग्री बेचने वाले लोगों के त्यौहारों के दौरान भी यह बाज नहीं आते। और इन्हीं त्योहारों के दिनों में वह मोटे नोट कमाते हैं। इस दौरान यदि खाद्य व स्वास्थ्य विभाग की टीम छापा मार कर कार्रवाई करती भी है और मिठाइयों या अन्य खाद्य सामग्रियों के सैंपल लेती भी है तो यह कार्रवाई एक लम्बी कानूनी प्रक्रिया से गुज़रती है। अगर मामला ले देकर रफा-दफा नहीं भी हुआ तो सेम्पल की लैब रिपोर्ट आने तक इंतज़ार करना पड़ता है। जब तक रिपोर्ट नेगेटिव नहीं आती तब तक दुकानदार अपना संदिग्ध सामान बेच सकता है। गोया फिलहाल तो इस तरह की छापामार कार्रवाई केवल खानापूर्ति ही साबित होगी। और यदि सेम्पल फेल हो जाता है और मिलावटखोरी साबित भी हो जाती है तो प्राय: इन पर 20 या 25 हजार रुपए जुर्माना हो जाता है। इस जुर्माने को मिलावटखोर आसानी से भरकर किसी कड़ी सजा से बच जाता है। 
दरअसल पकड़े जाने के बावजूद आरोपियों का लेदेकर या जुर्माना भरकर बच निकलना ही पूरे देश में मिलावटखोरी के दिनोंदिन बढ़ते जा रहे नेटवर्क को प्रोत्साहित करने का सबसे बड़ा कारण है। इन्हीं की वजह से अस्पतालों में भीड़ बढ़ती जा रही है। समय पूर्व लोगों की जान जा रही है। ऊंचे रुसूख रखने वाले स्वामियों की बड़ी से बड़ी नामी ग्रामी कंपनियां जिनके सैम्पल फेल होने की बार-बार खबरें आती रहती हैं मुफ्तखोरी करने वाले ऐसे लोग केवल लोगों की जान से ही खिलवाड़ नहीं करते बल्कि इनकी वजह से पूरी दुनिया में भारत की बदनामी भी होती है। सीधे शब्दों में मिलावटखोरी देश के लिये एक कलंक साबित हो रही है।