गाज़ा के हाल से बदल रहे हैं कश्मीर में हालात

पहली नज़र में यह काफी आश्चर्यजनक लगता है कि एक जमाने में मोदी सरकार की जबरदस्त आलोचक रहीं शिक्षाविद और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में छात्र संघ की पूर्व उपाध्यक्ष शैहला रशीद ने मोदी सरकार की तारीफ की है। शैहला ने केंद्र की नीतियों को सही ठहराते हुए कश्मीर में मौजूदा शांति के लिए प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की तारीफ की है। एक जमाने में मोदी सरकार और भारतीय सेना पर गंभीर आरोप लगाने वाली शैहला रशीद ने कहा है कि कश्मीर में मानवाधिकार रिकॉर्ड लगातार बेहतर हो रहे हैं और पहले कश्मीरियों की पहचान का जो संकट था, अब वह नहीं रहा। 
शैहला ने राजनीतिक संदर्भ में ही नहीं बल्कि इसके इतर हटकर केंद्र सरकार की ऊर्जा नीति की भी तारीफ की है और कहा है अब कश्मीर की नई पीढ़ी को संघर्ष में बड़ा नहीं होना पड़ेगा। गौरतलब है कि मौजूदा केंद्र सरकार द्वारा जब साल 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया था, तो जिन कई लोगाें ने इस कदम का भारी विरोध किया था, उनमें शेहला रशीद भी शामिल थीं। शेहला ने जम्मू कश्मीर के आईएएस शाह फैसल के साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के इस फैसले के विरूद्ध याचिका भी दायर की थी, लेकिन इसी साल जुलाई माह में शाह फैसल और एक्टिविस्ट शैहला रशीद ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस ले ली थी। लेकिन तब वह इस कदर लाइमलाइट में नहीं आयी थीं, जिस तरह से पिछले दिनों कश्मीर की गाज़ा से तुलना करने के बाद, वह देश विदेश की मीडिया की सुर्खियों में आ गई हैं। 
पिछले दिनों समाचार एजेंसी ए.एन.आई. को इंटरव्यू देते हुए शैहला रशीद ने जहां एक तरफ गाजा की स्थिति के लिए चिंता जतायी, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने इसकी तुलना मौजूदा जम्मू-कश्मीर से की। उन्होंने अपने इंटरव्यू में साफ शब्दों में कहा, ‘कश्मीर गाजा नहीं है, यह बात स्पष्ट हो गई है। क्योंकि कश्मीर सिर्फ विरोध प्रदर्शनों में शामिल था, यहां जो कुछ हुआ वह उग्रवाद और घुसपैठ की छुटपुट घटनाएं थी, जो अब खत्म हो चुकी हैं। मैं इसका श्रेय प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को देना चाहूंगी। जिन्होंने कश्मीर में एक ऐसी राजनीतिक स्थिति सुनिश्चित की है, जिसे रक्तहीन क्रांति कहनी चाहिए।’ मालूम हो कि एक समय शेहला रशीद केंद्र सरकार की नीतियों की धुर विरोधी थीं और उनकी सहानुभूति यहां के आंदोलनकारियों विशेषकर पत्थरबाजों के साथ थी, लेकिन जब इस संबंध में उनसे मौजूदा इंटरव्यू के दौरान सवाल पूछा गया तो इस सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने बिना किसी ना नुकुर के साफ शब्दों में कहा, ‘हां, साल 2010 तक ऐसा था। लेकिन आज जब मैं बदली हुई स्थितियों को देखती हूं तो मैं इन स्थितियों के लिए मौजूदा केंद्र सरकार को धन्यवाद देती हूं।’
यह इस मायने में एक महत्वपूर्ण बात है कि पिछले कुछ सालों में जम्मू-कश्मीर का एक बड़ा वर्ग, जिसमें विशेष तौर पर युवा शामिल हैं, वह पारंपरिक अलगाववाद के विरोधी हैं और जम्मू-कश्मीर को भी देश के अन्य हिस्सों की तरह मुख्यधारा में शामिल होते हुए देखना चाहते हैं। साथ ही चाहते हैं कि उनका भविष्य भी देश के मुंबई, बेंग्लुरु, हैदराबाद और पुणे जैसे महानगरों में देश के दूसरे युवाओं की तरह चमकदार उम्मीदों वाला हो। जब से कश्मीर से धारा 370 हटायी गई है, शुरु में तो इसका बहुत बड़े स्तर पर विरोध हुआ था, लेकिन हर गुजरते दिन के साथ यह विरोध भी कमजोर हुआ है और अगर यहां शांति के वातावरण को तुलनात्मक ढंग से देखें तो वह 2019 के पहले के मुकाबले आज लगातार बेहतर हो रहा है। हो सकता है इसमें एक बड़ी कोशिश मशीनी रही हो, लेकिन उस मशीनी कोशिश ने जो वातावरण पैदा किया है, वह अब लगातार जमीनी वातावरण में तब्दील हो रहा है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि कश्मीर की इस समय लगातार फिलिस्तीन और गाज़ा से बिना कहे भी कश्मीर का एक बड़ा तबका मन ही मन तुलना कर रहा है। सिर्फ कश्मीर की ही क्यों कहें, सच तो यह बात है कि गाज़ा में जो भयानक हालात पैदा हो गये हैं, जिस तरह वहां इजरायल इस समय अपनी मन की मानी कर रहा है, उसको देखते हुए कश्मीर के अलगाववादियों के ही नहीं उनके प्रति सहानुभूति रखने वाले दुनिया के दूसरे हिस्सों में रह रहे मुसलमानों की भी यह तुलनात्मक राय बनी है कि फिलिस्तीन या गाजा को देखते हुए कश्मीर की स्थिति बहुत अच्छी है। शायद इसलिए भी आज सरहद पार के आतंकवादियों को कश्मीर में रंगरूट नहीं मिल रहे। यह भी बात सच है कि हाल के सालों में कश्मीर में भारतीय सेनाएं पिछले सालों के मुकाबले कहीं ज्यादा चौंकन्ना रही हैं और उन्हें इस चौंकन्नेपन के फायदे भी मिले हैं। मसलन साल 2010 से 2019 तक कश्मीर में आतंकवाद का जो स्तर था, आतंकवाद से होने वाली मौतों का जो आंकड़ा था, उसका ग्राफ अब काफी नीचे चला गया है। 2019 से जून 2023 तक कश्मीर में होने वाली आतंकवादी घटनाओं में पहले के मुकाबले 40 से 45 प्रतिशत तक की कमी आयी है और आतंकवादियों द्वारा मारे जाने वाले लोगों के औसत आंकड़े में भी 60 प्रतिशत से ज्यादा का फर्क आया है। जबकि इस दौरान सीमा पार से घुसपैठ की कोशिश करने वाले आतंकियों की मौत का आंकड़ा औसत में पहले से ज्यादा बढ़ा है। अब 10 में से 9 घुसपैठ की कोशिशों को कोशिशों के दौरान ही नाकाम कर दिया जाता है और अगर किसी एकाध कोशिश में आतंकी घुसपैठ करने में कामयाब रहते भी हैं, तो वे जल्द से जल्द फौज की गोलियों का शिकार हो जाते हैं। शेहला रशीद या शाह फैसल जैसे गिने चुने और जाने माने एक्टिविस्ट ही नहीं बल्कि पिछले चार सालों में कई हजार ऐसे घोषित अघोषित एक्टिविस्टों ने अपना मन बदला है, वे कश्मीर को लेकर पारंपरिक रवैय्या छोड़कर यहां विकसित हो रही शांति में सुकून महसूस किया हैं और इस सुकून के पक्ष में अपनी सहमति भी जता रहे हैं। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर