विषैले मांस वाला बाज़ चोंच कछुआ

बाज चोंच कछुआ दुनिया का दूसरा सबसे छोटा समुद्री कछुआ है जिसे हॉक्स बिल कछुआ कहते हैं। इसे प्रशांत महासागर के तटों पर उत्तर में मैक्सिको से लेकर दक्षिण में पेरू तथा अटलांटिक महासागर में भी देखा जाता है। बाज चोंच कछुआ भारत और मेडागास्कर के सागर तटों पर भी बहुत बड़ी संख्या में पाया जाता है। 
यह एक छोटा कछुआ है जिसके ऊपरी आवरण की लम्बाई 60 सेंमी, और 45 किलोग्राम के आसपास होती है। ऊपर के आवरण का रंग कत्थई और आगे की ओर गहरे रंग के धब्बे होते हैं तथा नीचे का आवरण पीला होता है। इसका थूथन बाज की चोंच की तरह हुक जैसा होता है, यही वजह है कि इसे बाज चोंच कछुआ कहा जाता है। इसकी आंखों के दोनों रेटिना में हजारों छोटी-छोटी कुछ रंगीन और पारदर्शक तेल की बूंदें होती हैं। अपनी सुस्त और धीमी गति से यह दूसरे अन्य समुद्री कछुओं की तरह सागर में लंबी यात्राएं नहीं करता।
बाज चोंच कछुए को मूंगे की दीवारों के पास भोजन करते हुए देखा जा सकता है। यह एक ही जगह पर रहकर भोजन करने वाला कछुआ है। लेकिन इसकी कुछ उपजातियों के कछुए भोजन के लिए लंबी-लंबी यात्राएं भी करते हैं। यह मुख्य रूप से मांसाहारी है। किंतु कभी-कभी समुद्री पौधे भी खा लेता है। सागर में पायी जाने वाली जैली फिश, केकड़ों, घोंघो तथा प्लेकटन के जीवों का शिकार करना अधिक पसंद करता है। इस कछुए का हुक जैसा थूथन बेहद मजबूत और शक्तिशाली होता है। यही वजह है कि यह केकड़ों तथा अन्य कठोर आवरणधारी जीवों के आवरण को तोड़कर उनका मांस खा जाता है। इसका मांस खाने के लिहाज से अच्छा नहीं माना जाता। कहते हैं बहुत गरीब लोग ही इसे खाते हैं। कभी-कभी बाज चोंच कछुए का मांस विषैला हो जाता है, इसे खाने से अनेक लोगों की मौत भी हो चुकी है, जिसकी वजह यह है कि यह कई जहरीले जीवों का शिकार करता है और उन्हें खाता है जिससे इसका मांस भी विषैला हो जाता है। 
बाज चोंच कछुआ अत्यंत घातक होता है। बाज चोंच कछुए को मछुआरे जब पकड़ लेते हैं तो इसके मांस की जांच करने के लिए कहीं यह विषैला तो नहीं है, इसे काटकर इसका यकृत निकालकर उसे कौआें के आगे डाल देते हैं यदि यह विषैला होता है इसे कव्वे नहीं खाते। इस तरह मछुआरों को विषैले मांस और विषहीन वाले बाज चोंच कछुए की पहचान हो जाती है। 
यह मादा कछुआ प्राय: प्रजनन के लिए हमेशा एक स्थान निर्धारित कर लेती है, जहां वह हर बार प्रजनन के लिए आती है। बाज चोंच कछुए का कोई निश्चित समागम और प्रजनन काल नहीं होता। मादा बाज चोंच कछुआ प्राय: पूरे साल अंडा देती है। भारत, श्रीलंका, मलाया, फ्लोरिडा तथा क्रेब्रियन द्वीपों पर यह प्रजनन के लिए आते हैं। साल के कुछ महीनों में मादा काफी ज्यादा अंडे देती है। मई, जून के महीने में लाखों की संख्या में मादाएं अंडे देती हैं। हिंद महासागर के द्वीपों पर सितम्बर से नवम्बर तक बहुत बड़ी संख्या में बाज चोंच कुछआ मादाएं आती हैं और अंडे देती हैं। 
इसके बाद मादा सागर तट की ओर आकर जमीन पर प्रजनन स्थल पर घोंसला बनाने के लिए रेत को सूंघकर किसी सही जगह की खोज करती है। यह अपने शरीर के बराबर एक गड्ढा तैयार करती है और उसमें बैठ जाती है। पूंछ के आधार के नीचे एक और गड्ढा तैयार करके उसी गड्ढे में झुंड में अंडे देती है। हर झुंड में 100 से 200 तक अंडे होते हैं। अंडा देने के बाद मादा दोनों गड्ढों को रेत से भर देती है ताकि शत्रु इन तक पहुंच न सके। सूर्य की गर्मी से परिपक्वहोकर 50 दिन में इन अंडों से बच्चे निकल आते हैं, बच्चे जन्म लेते ही इन घोंसलों से सागर की ओर भागते हैं। घोंसलों से सागर तट तक पहुंचने के दौरान कई मांसाहारी मछलियां इनका शिकार करती हैं। इनमें जो बच्चे बच जाते हैं, वह गहरे सागर में जाकर लंबे समय तक दोबारा तटों पर नहीं आते।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर