वैश्विक उच्च शिक्षा केन्द्र के रूप में भारत का अभूतपूर्व विकास उदय

भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में हाल के वर्षों में अभूतपूर्व परिवर्तन आया है और वैश्विक स्तर पर इसमें सुधार हुआ है। इस वृद्धि की विशेषता, गुणवत्ता और पहुंच सभी में उल्लेखनीय वृद्धि है। भारत ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काफी प्रगति की है लेकिन यह तो सिर्फ  शुरुआत है। देश में शिक्षा प्रणाली को बेहतरीन बनाने के लिए मोदी सरकार विशेष रूप से ध्यान दे रही है।  हाल के वर्षों में कई सुधारात्मक पहल की गईं, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय उच्च शैक्षणिक संस्थान (एचईआई) तेजी से बदलते हुए वैश्विक शैक्षिक परिदृश्य में एक अमिट छाप छोड़ रहे हैं। भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली की सराहनीय वृद्धि विश्व की शीर्ष रैंकिंग में शामिल होने वाले भारतीय विश्वविद्यालयों की लगातार बढ़ती संख्या से स्पष्ट है, जो विश्वविद्यालयों की स्थिति और शिक्षा मानक का एक महत्वपूर्ण बैरोमीटर है। ज़ाहिर है, हमारी शिक्षा प्रणाली वैश्विक मानकों से मेल खाती है। भारत को वैश्विक ज्ञान केंद्र बनाने का प्रधानमंत्री मोदी का सपना साकार होने के मार्ग पर चल पड़ा है। 
क्वाक्वेरेली साइमंड्स (क्यूएस) एशिया यूनिवर्सिटी रैंकिंग के नवीनतम संस्करण में विभिन्न देशों के कुल 857 संस्थानों को स्थान दिया गया, जिनमें से 148 भारतीय हैं, जो रैंकिंग की पिछली बार से 33 प्रतिशत अधिक है। इस बार सात भारतीय विश्वविद्यालयों ने एशिया में शीर्ष 100 में रैंकिंग हासिल की है। भारतीय सांख्यिकी संस्थान ने क्यूएस एशिया में उल्लेखनीय शुरुआत करते हुए 220वीं रैंकिंग हासिल की है। आईआईटी बॉम्बे सर्वोच्च रैंकिंग वाला भारतीय संस्थान है, जो समग्र रैंकिंग में 40वां स्थान रखता है।
क्यूएस एशिया 2024 में भारत में सबसे अधिक रैंक वाले विश्वविद्यालय हैं, जिससे  इस संदर्भ में नंबर-1 देश बन गया है। इस वर्ष यह चीन को पछाड़ कर सर्वोच्च रैंकिंग वाले विश्वविद्यालयों वाला देश बन गया। क्यूएस एशिया 2024 में कुल 149 नए प्रवेशकों में से 37 भारत से हैं, जबकि चीन से केवल 7 नए प्रवेशकर्ता हैं। इस साल जून में जारी क्वाक्वेरेली साइमंड्स (क्यूएस) वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग के 20वें संस्करण ने भी भारत की एक मजबूत तस्वीर पेश की, क्योंकि इसमें देश के रिकॉर्ड 45 विश्वविद्यालयों को शामिल किया गया था, जो कि क्यूएस डब्ल्यूयूआर 2023 में शामिल 41 विश्वविद्यालयों और क्यूएस में शामिल 35 भारतीय विश्वविद्यालयों से अधिक था।
निश्चित रूप से भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली ने हाल के वर्षों में बहुत कुछ हासिल किया है, जिसे इस तथ्य से समझा जा सकता है कि क्यूएस डब्ल्यूयूआर 2014 में देश के केवल 12 विश्वविद्यालय शामिल थे और उस समय कोई भी भारतीय विश्वविद्यालय दुनिया के शीर्ष 200 में शामिल नहीं था।
प्रमुख सुधारों के इस एजेंडे का मूल तत्व भारत को एक वैश्विक शैक्षिक केंद्र और सस्ती गुणवत्ता वाली शिक्षा के लिए एक गंतव्य बनाना है, जो प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति के मूल में रहा है। जबकि भारतीय उच्च शिक्षा जो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी उच्च शिक्षा प्रणाली है, एक अभूतपूर्व पथ पर है। इसका परिवर्तन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान सरकार के राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी-2020) को लागू करने के ऐतिहासिक निर्णय द्वारा उत्प्रेरित किया गया था। इस कदम ने 34 वर्षों के अंतराल के बाद देश के शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार का मार्ग प्रशस्त किया और इससे भारत में शिक्षा के मानकों में सुधार हुआ। प्रधानमंत्री मोदी का दृष्टिकोण अकादमिक बैंक ऑफ  क्रेडिट (एबीसी) की शुरुआत के साथ प्रणाली में महान लचीलापन लाना था जो छात्रों को अपने पाठ्यक्रम और शिक्षाविदों को चुनने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। एनईपी के कार्यान्वयन के बाद मोदी सरकार ने शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) में सुधार करने और देश में 100 प्रतिशत युवा और वयस्क साक्षरता हासिल करने पर ध्यान केंद्रित किया। एनईपी 2020 का लक्ष्य 2030 तक प्री-स्कूल से माध्यमिक स्तर तक 100 प्रतिशत जीईआर हासिल करना है। इसका लक्ष्य व्यावसायिक शिक्षा सहित उच्च शिक्षा में जीईआर को 26.3 प्रतिशत (2018) से बढ़ाकर 2035 तक 50 प्रतिशत करना है।विविध पाठ्यक्रमों और कार्यक्रमों की पेशकश करने वाले शैक्षणिक संस्थानों का पर्याप्त विस्तार हुआ है। सरकार हाल के वर्षों में उच्च शिक्षा में सीखने के अंत:विषय और बहु-विषयक दृष्टिकोण पर जोर दे रही है।
साल 2014-15 में भारत में 760 विश्वविद्यालय, 38498 कॉलेज और 12276 स्टैंड अलोन संस्थान थे। हालांकि पिछले साल विश्वविद्यालयों की संख्या 1100 का आंकड़ा पार कर गई थी और 2022 में 43,796 कॉलेज और 11,296 स्टैंड अलोन संस्थान थे। साल 2014-15 में भारत में उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) 24.3 प्रतिशत था, जिसकी गणना 18.23 वर्ष आयु वर्ग के लिए की गई थी। उच्च शिक्षा के लिए जीईआर 2020-21 में बढ़ कर 27.3 प्रतिशत हो गया है। इसके अलावा उच्च शिक्षा में महिलाओं का जीईआर 2014-15 में 45.5 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 में लगभग 49 प्रतिशत हो गया है।
साल 2014-15 में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में छात्र शिक्षक अनुपात (पीटीआर) 21 था। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में वर्तमान छात्र शिक्षक अनुपात (पीटीआर) 28 है। अखिल भारतीय स्तर पर प्रति 100 पुरुष शिक्षकों पर केवल 63 महिला शिक्षक थीं, जो अब बढ़कर प्रति 100 पुरुष शिक्षकों पर 74 महिला शिक्षक हो गई हैं। भारत एक ऐसी शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा दे रहा है जिसका उद्देश्य प्रत्येक नागरिक को सर्वोच्च शिक्षा प्रदान करना और देश को वैश्विक ज्ञान का केंद्र बनने के लिए प्रेरित करना है।

-चांसलर, चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी
मुख्य संरक्षक एनआईडी फाउंडेशन