स्वतन्त्रता के 76 वर्ष बाद भी नहीं मिले ़गरीबी उन्मूलन योजनाओं के अपेक्षित परिणाम 

देश में गरीबी हटाने के लिए विभिन्न सरकारों ने बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई परन्तु दुर्भाग्य से स्वतन्त्रता के 76 वर्ष पश्चात भी देश की गरीबी उन्मूलन योजानओं के अपेक्षित परिणाम नहीं दिखाई दिये। 1971 में इन्दिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ देश बचाओ’ का नारा दिया था और इस तरह गरीबी हटाओ के नाम पर उन्हें दो तिहाई बहुमत से सत्ता हासिल हुई। प्रचार-प्रसार हुआ, बड़े-बड़े बजट बने, परन्तु गरीबी जस की तस बनी रही और गरीबी उन्मूलन योजना बुरी तरह फ्लॉप रही।    
5वीं पंचवर्षीय योजना में (1974 से 1978 तक) जब इन्दिरा गांधी के विरोधियों ने इन्दिरा हटाओ का नारा दिया तो जवाब में उन्होंने गरीबी हटाओ का नारा दिया। एक बार फिर  वह प्रधानमंत्री के रूप में सत्तासीन हुईं, परन्तु गरीबी हटाओ सिर्फ एक नारा ही रहा।
स्व. राजीव गांधी ने भी इन्दिरा गांधी के पद-चिन्हों पर चलते हुए गरीबी हटाओ का नारा दिया था। छठी पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य गरीबी को समाप्त करना था। योजना तो समाप्त हो गयी पर गरीबी ज्यों की त्यों बनी रही। राजीव गांधी ने सातवीं पंच वर्षीय योजना के अंतर्गत एक बार फिर गरीबी विरोधी कार्यक्रम के माध्यम से प्रयास किए। 
मनमोहन सिंह ने 1975 में इन्दिरा गांधी के 20 सूत्री कार्यक्रम को 21वीं शताब्दी के अनुरूप पुनर्गठित कर गरीबी उन्मूलन को प्रतिस्थापित कर प्रासंगिक बनाने की कोशिश की।  आंदोलन से प्रभावित होकर 12वीं पांच वर्षीय योजना 2012 में शुरू हुई। इस दौरान गरीबी को 10 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया, परन्तु हर बार की तरह हुआ कुछ नहीं। बीमारी जैसे की तैसे बनी रही। 2014 में मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल में समग्र रूप से गरीबी उन्मूलन की विभिन्न योजनाएं शुरू हुईं और उनके परिणाम भी देश ने देखे।
भारत की स्वतन्त्रता के 76 साल बाद आज देश के पास गरीबी उन्मूलन की विभिन्न सरकारों की योजनाओं और उनके कार्यनिष्पादन के तुलनात्मक आंकड़े हैं जिनके आधार पर हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि किन सरकारों ने वास्तव में देश से गरीबी मिटाने के लिए काम किया।  
गरीबों की बुनियादी आवश्यकताओं में पुरातन काल से ही ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ की मूलभूत आवश्यकताओं की अवधारणा रही है। कालांतर में एक निर्धन व्यक्ति की इन तीन आवश्यकताओं के साथ पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, शौचालय, बिजली और गैस की आवश्यकताओं को भी जोड़ा गया जिसकी अपेक्षा एक निर्धन व्यक्ति अपनी प्रगतिशील समाज और सरकार से रखता हैं।        
सबसे पहले 1971 के  लोकसभा के आम चुनाव से लेकर 2014 और 2019 के आम चुनावों तक देश की गरीबी तो नहीं हटी परन्तु गरीब और गरीब होता चला गया। 1966 से 1977 तक उन दिनों श्रीमती गांधी ने गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों में  ‘20 सूत्री कार्यक्त्रम’ का ढिंढोरा बड़े ज़ोर-शोर से पीटा था। सरकार और उसके अफसर इसे किस हद तक लागू करवा सके, नहीं मालूम। 
वास्तव में उन दिनों सरकार और उनके अफसरों की गरीबी हटाने में न तो कोई दिलचस्पी थी और न ही कोई दृष्टिकोण, न तो कोई नीति थी और न ही कोई नियति, न कोई कार्यक्रम थे और न ही योजनाएं। देश के दबे-कुचले वर्ग की निर्धनता को कैसे दूर किया जाये, इस पर किसी का ध्यान ही नहीं था।  2014 में मोदी सरकार के आने के बाद आज 21वीं सदी की आवश्यकताओं में जल, बिजली, गैस, स्वास्थ्य के साथ एक महत्वपूर्ण कारक शौचालय को भी शामिल किया गया। 
गरीबी तभी दूर होगी जब गरीबों के लिए चलने वाली योजनाओं का पैसा सीधे गरीबों तक पहुंचेगा। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने एक बार स्वीकार किया था कि सरकार द्वारा गरीबों को भेजा गया एक रुपया उन तक पहुंचते-पहुंचते मात्र 15 पैसे ही रह जाता हैं। 
स्वतन्त्रता के 76 वर्ष बाद भी गरीबी हटाओ योजनाओं की असफलता पर आज मंथन करने की महत्ती आवश्यकता हैं। आज सभी राजनीतिक दलों को गरीबों के कल्याण के लिए कुछ करने की आवश्यकता हैं। (युवराज)