जित्थे बाबा पैर धरि

मैं इस बार याद किये गये तथा दृष्टिविगत किये गये स्वतंत्रता सेनानियों का अनुसरण कर रहा था कि श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व की आमद ने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया। विशेषकर केवल धालीवाल की सम्पादित विशाल पुस्तक ‘जित्थे बाबा पैर धरि’ ने। मेरी लाइब्रेरी में यह रचना चार वर्ष से पड़ी है, परन्तु अच्छे-बुरे घटनाक्रमों ने इसकी ओर ध्यान नहीं जाने दिया। केवल ने इस पुस्तक में पंजाबी के 13 छोटे-बड़े नाटक शामिल करके श्री गुरु नानक देव जी के जीवन फलसफे को बहुत ही अच्छे ढंग से पेश किया है। लिखने वालों में उसके स्वयं के बिना सतविन्दर धोनी, जे.एस. बावा, अजमेर औलख, दविन्दर दमन, कपूर सिंह घुम्मन, गुरचरण सिंह जसूजा तथा सुरजीत सिंह सेठी ही नहीं डा. गुरदयाल सिंह फुल्ल, डा. हरचरण सिंह, डा. हरिभजन सिंह, बलवंत गार्गी तथा गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी जैसे महारथी भी हैं। इन सभी ने श्री गुरु नानक देव जी के जीवन के उपकार को अलग-अलग अंदाज़ में पेश किया है। 
इन नाटकों में श्री गुरु नानक देव जी के आगमन से पंजाबी जीवन एवं संस्कृति में आए बदलाव का लेखा जोखा है। लगभग दस हज़ार दर्शकों तथा श्रेताओं की उपस्थिति में खेले गए हरचरण सिंह के नाटक ‘पुन्निया दे चन्न’ को मात देने वाले गुरदयाल सिंह फुल्ल के नाटक ‘जिन सच पल्लै होए’ को गुरशरण सिंह के अदाकारों ने 2000 से अधिक बार खेला और मंच-रंगमंच अमृतसर की टीम ने 500 बार केवल धालीवाल के निर्देशन में। 
संयुक्त पंजाब के हिन्दू, सिख तथा मुसलमान किसी कमज़ोर समय में कितने भी एक दूसरे के शरीक प्रतीत हों, परन्तु गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी के नाटक ‘कोधरे दी रोटी’ के हिन्दू, मुस्लिम तथा सिख पात्र पंजाबियत तथा मानवता की बात करते रहेंगे। ‘गगन मै थाल’ (बलवंत गार्गी) के रबाबियों का जत्था गुरबाणी गायक द्वारा मानवीय साझों का संदेश देता है और इस नाटक की वृतांतिक गति को शिव कुमार बटालवी के तीन गीत और भी तीव्र करते हैं। 
सुरजीत सेठी का ‘गुरु बिन घोर अंधार’ में बाबा नानक के समय के झूठ-पाखंड, कायरता, लूट-पाट, कठोरता तथा ज्ञान-हीनता को खूब उभारता है। इसी भावना को जसूजा की रचना ‘चढ़िया सोधन धरत लुकाई’ तथा घुम्मन की ‘कूड़ अमावस’ वैकल्पिक रूप में पेश करते हैं। जहां तक हरिभजन सिंह ने नाटक ‘संत गुरु नानक’ का संबंध है, इसे 1969 में भारत की 24 भाषाओं में अनुवाद करके आल इंडिया रेडियो ने प्यार तथा सम्मान से पेश किया और गुरु बाबा नानक मानवीय संदेश भारत के कोने-कोने तक पहुंचाया। दविन्दर दमन का ‘साखी’ तथा अजमेर औलख का ‘ब्रह्म भोज’ किसानों की हक-सच्च कर की कमाई की त्रासदिक पेशकारी तथा जे. एस. बावा ‘ओड़क सचु रही’ में इसी धारणा को गुरु जी के जीवन तथा बाणी के माध्यम से उजागर करती है। सतविन्दर सोनी ने अपने नाटक ‘जित्थे बाबा पैर धरि’ में इसी धारणा को सर्वव्यापी करने के लिए काव्य अंदाज़ का सहारा लिया है।
केवल धालीवाल ने अपने नाटक ‘जिओ कर सूरज निकलिया’ में बाबा नानक जी के आगमन से अंत तक के जीवन को करतारपुर साहिब के उस पवित्र अस्थान तक चित्रित किया है, जिसकी चर्चा गत कई वर्षों से करतारपुर गलियारा के रूप में हो रही है। वैसे भी केवल धालीवाल ने 13 नाटकों के गुलदस्ते के माध्यम से श्री गुरु नानक देव जी के जीवन तथा फलसफे के इतने रूप पेश किये हैं कि इन्हें गुरु साहिब के किसी भी पर्व पर पढ़ा और आनंद लिया जा सकता है। 
ज्ञानी गुरदित्त सिंह की जन्म शताब्दी
‘मेरा पिंड’ वाले ज्ञानी गुरदित्त सिंह की रचनाएं वर्तमान पीढ़ी के लिए एक प्रकार से प्रकाश सतम्भ हैं। धड़ा-धड़ पढ़ी गई तथा अनेक एडिशनों में प्रकाशित इस रचना ने ज्ञानी जी द्वारा पेश किये गये भाई लालो, भाई दित्त सिंह, रागी हीरा सिंह, भाई रणधीर सिंह, अकाली कौर सिंह, भाई काहन सिंह, प्रिंसीपल तेजा सिंह, ज्ञान सिंह राड़ेवाला तथा संत हरचंद सिंह लौंगोवाल सिंह सभा लहर की देन से संबंधित रचनाओं को ही छुपाकर रखने की कोई कसर नहीं छोड़ी।
यह बात अलग है कि उनके जीवन काल में उनकी रचनाकारी के प्रशंसकों ने भारत में ही नहीं सात समुद्र पार भी पूरा मूल्य पाया और उनको अलग-अलग तरह के सम्मानों के साथ सम्मानित किया गया। वह ज्ञानी गुरदित्त ही थे जिन्होंने तर्क तथा प्रमाणों के आधार पर स्थापित कई धारणाओं को चुनौती दी और नाम कमाया। उन्होंने इस धारणा को भी नकारा कि भगत बाणी का गुरु नानक बाणी पर प्रभाव था। उनके विचार के अनुसार यदि कोई प्रभाव था तो गुरु नानक बाणी का भगत बाणी पर था न कि भगत बाणी का गुरु नानक बाणी पर। उनकी देन के कारण जन्म शताब्दी ने इन दिनों में चंडीगढ़ के 36 सैक्टर वाले पीपल्ज़ कनवैंशन सैंटर में उनको पटियाला वाले डा. जसविन्दर सिंह ने मचलते, धड़कते जज़्बों वाला खोजी सृजक करार देकर सराहा। उनकी लिखतों में पढ़ने तथा आनंद देन वाली वार्तक शैली का ज़िक्र करते हुए ‘मेरा पिंड’ को ऐसी बेमिसाल रचना कहा जिसे आज तक तोहफे के रूप में भेंट किया जाता है। वही थे जिन्होंने उन दिनों के पंजाबी जीवन में रीति-रिवाजों की प्रधानता का ज़िक्र किया है। 
जसविन्दर सिंह ने इस रचना को रीति-रिवाज़ों की रैफरैंस बुक बताते हुए ज्ञानी जी द्वारा उभारी गईं उन जज महिलाओं का भी ज़िक्र किया है, जो प्रसिद्ध पुरुष विरोधियों को सज़ा सुनाती हैं और उन जन-धारणाओं का भी जिनके अनुसार महिलाओं का राज आ गया है, चक्की छूटेगी और चूलहे ने भी छूट जाना है।
विवाह-शादी की उन रस्मों का हवाला भी पढ़ने वाला है जिनके अनुसार विवाह-शादी के समय जंज बांधने व जंज छुड़ाने की कला भी थी और नानका मेल के आने से खुशियों का संगम भी जिसके लिए लेखक ने दो दरियाओं के मेल का चिन्ह इस्तेमाल किया है।
जब किसी ने ज़िक्र किया कि ज्ञानी जी बायें हाथ से लिखते थे तो उनके बेटे रुपिन्दर सिंह ने अपनी माता जी के हवाले से बताया कि वह दोनों हाथों से लिख लेते थे। एक हाथ के थक जाने पर दूसरा हाथ इस्तेमाल कर लेते थे। यह बात भी नोट करने वाली है कि इस महारथी के साथ विवाह करवाने वाली इन्द्रजीत कौर वाइस चांस्लर के पद तक पहुंची। 
कुल मिला कर ज्ञानी गुरदित्त सिंह को याद करने वाली यह बैठक यादगारी रही। अध्यक्षता की ज़िम्मेदारी निभा रहे सुरजीत पातर ने तो यह इच्छा व्यक्त की कि यदि कोई ज्ञानी जी का सानी हो तो वर्तमान गांवों में आये बदलाव को आधार बना कर पंजाबी गांव के वर्तमान रूप की बात करे, परन्तु कहां से लाएं ढूंढ कर गुरदित्त सिंह कोई और।

अंतिका
—मुहम्मद इकबाल—
फिर उठी आवाज़ तौहीद की पंजाब से
हिन्द को इक मर्द-ए-कामिल ने जगाया ़ख्वाब से।