यूनेस्को के चुनाव में नहीं बजा भारत का डंका

वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित तमाम भाजपा नेता अक्सर ही दावा करते रहते हैं कि पूरी दुनिया में भारत का डंका बज रहा है। सोशल मीडिया में भाजपा समर्थकों की फौज तो यह भी कहती है कि भारत से पूछे बगैर दुनिया का कोई भी नेता कोई फैसला नहीं करता है, लेकिन अभी संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनेस्को यानी संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन के कार्यकारी बोर्ड में उपाध्यक्ष का चुनाव हुआ, जिसमें पाकिस्तान ने भारत को हरा दिया। इस चुनाव में भारतीय उम्मीदवार विशाल शर्मा को सिर्फ  18 वोट मिले जबकि पाकिस्तानी उम्मीदवार को 38 वोट मिले। अब इस बात की जांच हो रही है कि भारत कैसे कार्यकारी बोर्ड के आधे सदस्यों यहां तक कि ग्लोबल साउथ ब्लॉक के भी वोट नहीं ले सका? गौरतलब है कि भारतीय नेतृत्व खुद को ग्लोबल साउथ के नेता के तौर पर पेश करता रहा है। यूनेस्को में भारत के प्रतिनिधि विशाल शर्मा की राजनीतिक नियुक्ति हुई थी। वह गुजरात के मुख्यमंत्री होने के समय नरेंद्र मोदी के विशेष कर्त्तव्य अधिकारी थे। इसीलिए सवाल है कि क्या विदेश सेवा के अधिकारियों ने उनके साथ सहयोग नहीं किया? सबको पता है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत के मुकाबले पाकिस्तान की हैसियत बहुत खराब है। इसके बावजूद यूनेस्को के उपाध्यक्ष पद पर उसके उम्मीदवार ने भारत को बुरी तरह से हरा दिया। भारत को निश्चित रूप से पता लगाना चाहिए कि कौन-सी विश्व शक्ति भारत के मुकाबले पाकिस्तान को बढ़ावा दे रही है।
खड़गे की बड़ी भूमिका के लिए तैयारी?
कांग्रेस अपने अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को मौजूदा दौर के सबसे बड़े नेता के तौर पर पेश कर रही है। उनके संसदीय जीवन के 50 साल पूरे होने पर उनके ऊपर लिखी गई एक किताब का विमोचन सोनिया गांधी ने किया और उनके राजनीतिक जीवन को बेदाग बताते हुए बेमिसाल करार दिया। भाजपा के ऐसे कई नेता, जो कांग्रेस को कोसते रहे हैं, उन्होंने भी इस किताब में खड़गे की खूब तारीफ  की है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पूर्व उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू, लोकसभा की पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया आदि ने खड़गे के बारे में लिखा है। सिंधिया ने लिखा है कि खड़गे ने कमज़ोर लोगों को सशक्त बनाने के लिए काम किया है। असल में कांग्रेस भी इसी पहलू को ही खड़गे की असली ताकत बता रही है कि वह दलित हैं और वंचितों को आगे बढ़ाने के लिए काम करते हैं। 
गौरतलब है कि खड़गे दलित होने के साथ-साथ बहुत गरीब पृष्ठभूमि वाले परिवार के हैं, जिसका ज़िक्र उन्होंने कई बार किया है। कांग्रेस इसको खड़गे का यूएसपी बता कर पेश कर रही है। कहा जा रहा है कि उन्हें किसी बड़ी भूमिका के लिए तैयार किया जा रहा है। इसीलिए किताब में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कांग्रेस के कई नेताओं ने खड़गे के बारे में बड़ी-बड़ी बातें लिखी हैं। शरद पवार ने भी उनके बारे में लिखा है। किताब के विमोचन के मौके पर सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, डीएमके नेता टी.आर. बालू, राजद के सांसद मनोज झा आदि मौजूद थे। एक तरह से कांग्रेस खड़गे को अजातशत्रु के तौर पर पेश कर रही है।
पुरानी पेंशन का मुद्दा 
आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अन्य तमाम मुद्दों के साथ-साथ एक बड़ा मुद्दा पुरानी पेंशन योजना का होने वाला है। कई राज्यों में यह बड़ा मुद्दा बना है। राजस्थान में कांग्रेस ने अगर पांच साल सरकार चलाने के बाद भी भाजपा को कड़ी टक्कर दी है तो उसमें बड़ा हाथ पुरानी पेंशन योजना का है, जिसे राज्य सरकार ने बहाल कर दिया है। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत में इस मुद्दे का बड़ा योगदान है। कांग्रेस और कई दूसरी विपक्षी पार्टियों की सरकारों ने पुरानी पेंशन योजना लागू कर दी है या सरकार बनने पर लागू करने का वादा किया है। इस बीच केंद्रीय कर्मचारियों के संगठन इस पर बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। पिछले दो-तीन महीने में केंद्रीय कर्मचारियों सहित देश भर के सरकारी कर्मचारियों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में पुरानी पेंशन योजना की बहाली को लेकर दो बड़े प्रदर्शन किए। इन प्रदर्शनों में बड़ी संख्या में कर्मचारी शामिल हुए। अब केंद्रीय कर्मचारी देशव्यापी हड़ताल की तैयारी कर रहे हैं, जिसमें रेलवे के भी 13 लाख कर्मचारियों के शामिल होने की संभावना जताई जा रही है। केंद्रीय कर्मचारियों के संगठनों की बैठकें हो रही हैं। लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले किसी समय उनका आंदोलन शुरू हो सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है।
नितीश सरकार में भाजपा के एजेंट! 
बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार सरकार द्वारा एक के बाद एक ऐसे फैसले लिए जा रहे हैं जिनका राजनीतिक फायदा भाजपा को मिलना ही मिलना है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि नितीश कुमार की पार्टी या सरकार में कुछ लोग भाजपा के लिए काम कर रहे हैं। ताज़ा मामला स्कूलों की छुट्टी का है। इस साल बिहार के शिक्षा विभाग ने रक्षाबंधन से लेकर तीज तक कई छुट्टियों में कटौती की जिसका भारी विरोध हुआ। बाद में सरकार को फैसला बदलना पड़ा। इसके बावजूद अगले साल का जो कैलेंडर जारी किया गया है, उसमें हिन्दू त्योहारों की छुट्टियां कम कर दी गई हैं जबकि मुस्लिम त्योहारों की छुट्टियां बढ़ा दी गई हैं। इसका विरोध हो रहा है और जनता दल (यू) के ही कई नेताओं ने इस पर सवाल उठाए, जिसके बाद यह तय है कि इसे बदल दिया जाएगा, लेकिन ऐसा करके शिक्षा विभाग ने जनता दल (यू) और उसकी सहयोगी पार्टियों राजद व कांग्रेस का जो नुकसान करना था, वह कर दिया। अगले साल के कैलेंडर के मुताबिक मकर संक्रांति, रक्षाबंधन, तीज और जिउतिया की छुट्टियां खत्म कर दी गई हैं जबकि दिवाली और छठ की छुट्टियां कम कर दी गई हैं। इसके विपरीत अब ईद और बकरीद की छुट्टी तीन-तीन दिन और मुहर्रम की छुट्टी दो दिन रहेगी। इसके अलावा मदरसों में साप्ताहिक अवकाश शुक्रवार को कर दिया गया है। शिक्षा विभाग का यह विशुद्ध राजनीतिक फैसला है, जिसका छात्रों को तो कोई फायदा नहीं होगा, लेकिन भाजपा को ज़रूर होगा।
‘आप’ सरकार भी निजीकरण के फेर में
कांग्रेस के साथ-साथ आम आदमी पार्टी (आप) भी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर आरोप लगाती है कि वह सब कुछ निजी हाथों में सौंप रही है, लेकिन अब आम आदमी पार्टी के नियंत्रण वाले दिल्ली नगर निगम यानी एमसीडी ने कानून प्रवर्तन का एक बड़ा काम निजी कंपनियों को देने का फैसला किया है। अब तक दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों में भी पार्किंग का ठेका निजी कम्पनियों को दिया जाता रहा है, लेकिन अवैध पार्किंग में खड़ी गाड़ियों को उठाने और उन गाड़ियों के मालिकों से जुर्माना वसूलने का काम ट्रैफिक पुलिस ही करती रही है। वह ऐसी गाड़ियों को उस इलाके के संबंधित थाने में या निर्धारित जगह पर ले जाती है जहां से गाड़ियों के मालिक वैध कागज़ात दिखा कर और जुर्माना भर कर अपनी गाड़ी ले जाते हैं। यह काम कहीं भी निजी कम्पनियों को नहीं दिया गया है, लेकिन दिल्ली नगर निगम यह काम अब निजी कम्पनियों को देने जा रही है। गाड़ी के वजन और आकार के हिसाब से कम्पनियां उसे उठा ले जाने का शुल्क वसूलेगी और साथ ही जितने समय तक गाड़ी उनके पास खड़ी रहेगी उसका किराया भी कम्पनियां वसूलेंगी। यह कई हज़ार रुपये तक हो सकता है। दरअसल यह साधारण पार्किंग का मामला नहीं है, बल्कि कानून प्रवर्तन का मामला है, जिसे निजी कम्पनियां मुनाफा कमाने का साधन बना सकती हैं। इससे मनमानी बढ़ने का खतरा अलग है। एमसीडी ने इसका टेंडर जारी कर दिया है। अगर इसे नहीं रोका गया तो दिल्ली के लोगों के लिए एक बड़ा सिरदर्द खड़ा होगा।