उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम : व्यापक बदलाव की सख्त ज़रूरत 

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-2019 उपभोक्ताओं के व्यापक अधिकारों की सुरक्षा में तभी कारगर हो सकता है, जब या तो स्वयं इस मूल अधिनियम में या फिर इसके नियमों में आमूलचूल बदलाव किया जाये जिससे कि उपभोक्ताओं को शिकायत दर्ज करने की आवश्यकता न रहे, क्योंकि इसके मौजूदा स्वरूप के चलते उपभोक्ताओं का एक बहुत छोटा-सा हिस्सा ही बड़े निर्माताओं के कदाचार के खिलाफ अपने अधिकारों के लिए उपभोक्ता-मंचों का दरवाज़ा खटखटाता है। 
भारत सरकार के उपभोक्ता मामले के विभाग की वेबसाइट पर मौजूद पोर्टल ‘जागो ग्राहक जागो’, ऐसी कंपनियों को ‘आंखों में धूल झोंकने वाले जवाब’ देने हेतु एक डाकघर की तरह काम करता है, जिनके खिलाफ उपभोक्ताओं ने शिकायतें दर्ज कराई होती हैं। उपभोक्ताओं को सलाह दी जाती है कि यदि वे पोर्टल के माध्यम से प्राप्त कंपनियों के जवाब से संतुष्ट नहीं हैं, तो उपभोक्ता न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाएं। यह तरीका ठीक नहीं है, पोर्टल को व्यावहारिक रूप से प्रभावी बनाया जाना चाहिए ताकि विभाग कंपनियों के जवाब की जांच कर सके और जवाब असंतोषजनक पाए जाने पर मामले को आगे बढ़ा सके।
इस अधिनियम में यह अनिवार्य किया जाना चाहिए कि सभी कंपनियां अपनी वेबसाइटों पर संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों और निदेशकों के नाम सहित सम्पर्क-विवरण उपलब्ध कराएं। ऐसी सभी वेबसाइटों पर सरकारी-पोर्टल और उपभोक्ता-फॉर्म का मसौदा भी अनिवार्य रूप से दिया जाना चाहिए। इसी तरह वार्षिक रख-रखाव अनुबंध (एएमसी) को भी व्यावहारिक रूप से विस्तारित वारंटी बनाया जाना चाहिए क्योंकि अधिकांश कंपनियां एएमसी के अंतर्गत आने वाले कई पहलुओं पर ध्यान न देकर उपभोक्ताओं को मूर्ख बनाती हैं। एक ज़रूरी संशोधन पैक की गई वस्तुओं की वास्तविक मीट्रिक भावना में भी हो मसलन 1, 2, 5, 10, 20, 50, 100, 200 की इकाइयों में चीजें पैक होनी चाहिए। साथ ही इन बुनियादी इकाइयों के गुणकों में पैक चीजों पर इकाई-मूल्य के मुद्रित किये जाने की किसी भी ज़रूरत को समाप्त करना चाहिए। आजकल एक दूध-ब्रांड ने क्रमश: 1 लीटर और दो लीटर के पहले के पैक की तरह दिखने वाले 950 मिलीलीटर और 1900 मिलीलीटर में दूध की पैकेजिंग शुरू कर दी है। दूध और दुग्ध उत्पादों में 400 मिलीलीटर, 450 मिलीलीटर जैसे बहुत सारे पैकेज इन दिनों बाज़ार में उपलब्ध हैं, जो उपभोक्ताओं में 500 मिलीलीटर के पैक का भ्रम पैदा करते हैं।
सरकार द्वारा प्रशासित वस्तुओं की कीमतें एक रुपये प्रति यूनिट (जैसे पेट्रोल-डीज़ल के लिए) के पूर्ण आंकड़े में और 100 रुपये से अधिक बिक्री मूल्य वाली वस्तुओं में दस रुपये के गुणक में होनी चाहिए (जैसे एलपीजी रिफिल)। इसका उपभोक्ताओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि डिलीवरी करने वाले कभी भी शेष सिक्के वापस नहीं करते। जबकि पूर्णांकित कीमतें सरकारों के लिए अतिरिक्त राजस्व अर्जित कर सकती हैं। चूंकि फेडरेशन ऑफ  होटल एंड रेस्तरां एसोसिएशन ऑफ  इंडिया और नेशनल रेस्तरां एसोसिएशन ऑफ  इंडिया ने होटल और रेस्तरां के बिलों में सेवा शुल्क लगाने पर केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को अदालत में चुनौती दी है, इसलिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में संशोधन किया जाना चाहिए ताकि होटल और रेस्तरां सरकारी करों के अलावा कोई अतिरिक्त लेवी लगाने में सक्षम न हो सकें। इसके अलावा, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को होटलों और रेस्तराओं को ‘नो टिप्स’ बोर्ड को प्रमुखता से प्रदर्शित करने के निर्देश देने वाली टिप भुगतान की औपनिवेशिक प्रथा पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। भारत सबसे बड़ा उपभोक्ता-आधार होने के नाते, भारत में वस्तुओं का निर्यात करने वाली विदेशी कंपनियों पर भारत में अपनी विनिर्माण ईकाइयां स्थापित करने की शर्तें लगा सकता है, खासकर तब जब ऐसी कई विदेशी कंपनियां मूल देश के अलावा अन्य देशों में निर्मित उत्पादों के साथ भारतीय बाज़ारों में बाढ़ लाती हैं। 
 विद्युत प्लग और सॉकेट की तर्ज पर सभी मोबाइल फोन के लिए मोबाइल चार्जर का मानकीकरण भी किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार को टायर और बैटरी जैसे सामान्य सामान के मानकीकरण को भी प्रेरित करना चाहिए ताकि विभिन्न कार-निर्माताओं द्वारा उत्पादित कारों के विभिन्न मॉडलों में समान का उपयोग किया जा सके। वर्तमान में किसी वस्तु पर अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) और वस्तुओं के पूर्व-कारखाने मूल्य के बीच कुल व्यापार-मार्जिन की अनुमति की कोई सीमा नहीं है। यही कारण है कि किफायती कीमत वाली जेनेरिक दवाओं पर भी एमआरपी मुद्रित होती है, जो उनके थोक मूल्य से दस गुना तक अधिक होती है। ऐसे बड़े व्यापार-मार्जिन खरीद में भ्रष्टाचार को प्रेरित करते हैं। इसके भुक्तभोगी सामान्य उपभोक्ता हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के, जिनके पास थोक बाज़ारों तक पहुंच और ज्ञान नहीं है। उपभोक्ता मामलों के विभाग को वस्तुओं की एमआरपी को कम करने के लिए किसी भी वस्तु के लिए अधिकतम कुल व्यापार-मार्जिन तय करना चाहिए। उपभोक्ता कानून के ज़रिये बिल संबंधी हेरफेर में भी रोक लगनी चाहिए क्योंकि रोज़ाना लाखों रुपये की बिक्री करने वाले नामी हलवाई भी बिल जारी नहीं करते, जिससे सरकारी खजाने को बड़ा नुकसान होता है। 
चंडीगढ़ में एक उपभोक्ता-फोरम ने एक बार पेपर-बैग की कीमत के रूप में 3 रुपये वसूलने के लिए एक प्रसिद्ध जूता-कंपनी पर 9000 रुपये का जुर्माना लगाया था। लेकिन वही जूता-कंपनी और कई मशहूर ब्रांडेड शॉपिंग मॉल अभी भी खरीदारों से पेपर-बैग की कीमत वसूल रहे हैं। उपभोक्ता मामलों के विभाग को केवल सामान पैक करने के लिए शॉपिंग बैग की ‘बिक्री’ पर कानूनन प्रतिबंध लगाना चाहिए।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर