मानवता की सेवा

आस्ट्रेलिया की सिस्टर एलिजाबेथ केनीके जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन दीन - दुखियों की सेवा में समर्पित कर दिया। यही नहीं वे आजीवन कुंवारी रहीं। उनका जन्म आस्ट्रेलिया के एक धनी परिवार में हुआ था। सुखी-सम्पन्न परिवार में जन्म लेने के कारण वे ऐश्वर्यों के बीच पली-बढ़ी। एक दिन वे अपने घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाने जा रही थी। 
अभी कुछ दूर गयी होंगी कि उनके कानों में कुछ बच्चों के रोने की आवाज़ सुनायी दी। उन्होंने तुरंत घोड़े को रोक नीचे उतर गयी और रोने की आवाज़ की दिशा में बढ़ गयी। आवाज एक झोपड़ी से आ रही थी। वे झोपड़ी के भीतर गयी। वहां का दृश्य देखकर उनका हृदय द्रवित हो उठा। आंखों में आंसू आ गये। छह आदिवासी बच्चे जमीन पर पड़े रो रहे थे। एलिजाबेथ ने बारी-बारी से बच्चों के शरीर को स्पर्श किया। सभी बच्चे तेज़ बुखार से पीड़ित थे। अचानक उनकी निगाहें झोपड़ी के किनारे खांसती हुई एक वृद्ध महिला पर जाकर टिक गयी। वे उसके पास जाकर बच्चों के माता-पिता के बारे में पुछने लगीं। 
वृद्ध महिला ने बताया कि बच्चे के माता-पिता हैजे के शिकार हो गये। छह बच्चों में से चार को लकवा हो गया है। वह स्वयं भी क्षय रोग से पीड़ित है। 
उसकी बातें सुनकर एलिजाबेथ सोच में पड़ गयी। फिर मन ही मन उन्होंने कुछ करने का निश्चय कर लिया। वे एक डॉक्टर के पास गयी। 
डॉक्टर के देखने के बाद उन्होंने उसकी देखभाल की जिम्मेवारी अपने ऊपर ले ली। उनकी निस्वार्थ सेवा से बच्चे पूर्णत: ठीक हो गये। एलिजाबेथ की जीवन दिशा यही से बदल गयी। वे सोचने लगी- ‘इस संसार में और लोग भी हैं जिन्हें उनकी सेवा की आवश्यकता है।’
उसी दिन से वे मानवता की सेवा में लग गयी। उन्होंने नर्सिंग की ट्रेनिंग की और फिर डॉक्टर की पढ़ाई कर डॉक्टर बन गयी।  वे जीवन भर दीन-दुखियों की सेवा में तत्परता से लगी रहीं। जब भी उनके परिवार वाले उनसे अपनी गृहस्थी बसाने की बातें करते। वे कहती-‘जब सारा संसार ही कष्ट में हो, तो कुछ लोगों को ऐसे भी होना चाहिए, जो स्वेच्छा से सांसारिक सुखों को दरकिनार कर स्वयं को मानवता की सेवा में समर्पित कर दें। जहां तक मेरा प्रश्न है, दीन-दुखियों की सेवा से बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं है। गरीब-लाचार की सेवा ही मेरे लिए विवाह है।’
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