पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद ‘इंडिया’ गठबंधन में एकता के लिए तत्परता और बढ़ी 

सभी थे एकता के हक में लेकिन,
सभी ने अपनी-अपनी शर्त रख दी।
दीपक जैन दीप के इस शे’अर जैसी हालत विधानसभाओं के चुनावों से पहले देश की विपक्षी पार्टियों द्वारा बनाये गये ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल पार्टियों की थी जिसका परिणाम सबके सामने है कि भाजपा उत्तर भारत के तीन राज्यों में कांग्रेस को पटखनी देने में सफल रही, परन्तु इस प्रकार प्रतीत होता है कि इस हार ने विपक्षी पार्टियों को यह एहसास करवा दिया है कि यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा के करिश्मे तथा साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति का मुकाबला करना है और 2024 के आम चुनाव में अपनी स्थिति सुधारनी है तो अपनी-अपनी शर्तों को छोड़ कर लचक दिखाते हुए एकता करना ही सब की ज़रूरत है। हमारी जानकारी के अनुसार चाहे अभी इस पराजय के बाद ‘इंडिया’ गठबंधन की कोई विधिवत बैठक नहीं हुई और इस हार में एक-दूसरे के नेताओं के विरुद्ध बोले गये बोल-कुबोलों की कड़वाहट भी निम्न स्तर पर अभी साफ दिखाई देती है, परन्तु ‘इंडिया’ गठबंधन के कुछ बड़े नेताओं में चल रही अनुपचारिक बातचीत में कुछ सहमति बन गई है। ऐसे प्रतीत होता है कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार तथा भाजपा की जीत ‘इंडिया’ गठबंधन के लिए ज़हमत से रहमत बन कर निकलने वाली स्थिति बन रही है। हमारी जानकारी के अनुसार ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल पार्टियों में एकता होना बस अब कुछ समय की ही बात है।
 एक जानकारी के अनुसार 400 से 500 लोकसभा सीटों पर भाजपा के समक्ष विरोधी पार्टियों का एक सांझा उम्मीदवार खड़ा करने पर सहमति बनती जा रही है। वैसे भी इस समय सीटों के विभाजन का मुख्य विवाद सिर्फ पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, बंगाल तथा कुछ दक्षिणी राज्यों में ही अधिक है। पता चला है कि ‘इंडिया’ गठबंधन में इस स्थिति को सुलझाने हेतु 5-7 बड़े नेताओं की एक समिति बनाने के सुझाव पर विचार चल रहा है। सीटों के विभाजन की इस प्रक्रिया में राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव जैसे बने नेताओं की भूमिका सिर्फ अपनी-अपनी पार्टी के हितों तक सीमित होगी। अंतिम फैसला करने के अधिकार बुज़ुर्ग राजनीतिज्ञों की सम्भावित समिति के पास होंगे। यह कमेटी राज्य क्रम के अनुसार संबंधित राज्य की प्रमुख पार्टी तथा शेष पार्टियों के साथ विचार-विमर्श करके सीटों के विभाजन का फैसला सर्वसम्मति से करेगी। 
इस समिति में शरद पवार, मल्लिकार्जुन खड़गे, लालू प्रसाद यादव तथा फारुख अब्दुल्ला जैसे प्रमुख नेता शामिल होंगे और यह समिति प्रत्येक राज्य में जाकर वहां की ज़मीनी हकीकतों तथा ‘इंडिया’ गठबंधन के व्यापक हितों के दृष्टिगत सीटों के विभाजन का फैसला करेगी कि किस पार्टी को किस राज्य में कितनी सीटें दी जाएंगी। एक बार भिन्न-भिन्न राज्यों में सीटों के विभाजन के बाद इस बात का फैसला संबंधित पार्टी पर छोड़ दिया जाएगा कि वह अपना उम्मीदवार किसे बनाए। हमारी जानकारी के अनुसार सीटों के विभाजन का कार्य अब बहुत तेज़ी से सम्पन्न कर लिया जाएगा, परन्तु इसके लिए घोषणा ‘इंडिया’ गठबंधन की एक या दो विधिवत बैठकों में ही किया जाएगा। वास्तव में अब सभी विपक्षी पार्टियों को एहसास है कि वक्त बहुत ही कम बचा है।  
कांग्रेस-‘आप’ समझौता होने की सम्भावना
हालांकि पंजाब की आम आदमी पार्टी का नेतृत्व पंजाब तथा चंडीगढ़ की सभी 14 लोकसभा सीटों पर लड़ने एवं जीतने के दावे कर रहा है, दूसरी ओर पंजाब कांग्रेस का नेतृत्व तथा दिल्ली कांग्रेस के नेतृत्व का बड़ा हिस्सा भी ‘आप’ के साथ किसी समझौते का कड़ा विरोध ही कर रहा है, परन्तु हमारी जानकारी के अनुसार इसके बावजूद ‘आप’ तथा कांग्रेस हाईकमान समझौते के लिए तैयार हो जाएंगे। इसके चार प्रमुख कारण हैं—पहला, आम आदमी पार्टी को हाल ही में हुए पांच विधानसभा चुनावों में अपनी ताकत का पता चल गया है,जिससे ‘आप’ का अहं टूटा है, परन्तु कांग्रेस का अहं भी कायम नहीं रहा और उसे भी एहसास हो गया है कि वह अकेले ही भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती। दूसरा, ‘आप’ को चिन्ता होगी कि देश में तो उसकी जड़ें नहीं लगीं। यदि वह दिल्ली तथा पंजाब में भी बड़ी जीत प्राप्त न कर सकी तो उसके अस्तित्व के लिए भी खतरा पैदा हो सकता है, जबकि तीसरा तथा सबसे बड़ा कारण यह है कि ‘इंडिया’ गठबंधन के दो प्रमुख नेता शरद पवार तथा ममता बनर्जी ‘आप’ प्रमुख अरविंद केजरीवाल के बहुत निकट हैं और वे कांग्रेस पर इस समझौते के लिए दबाव बना रहे बताये जाते हैं। चौथा कारण कांग्रेस हाईकमान भी पंजाब तथा दिल्ली में अपने पैर फिर से लगाना चाहता है। इससे उसे हरियाणा में भी कुछ लाभ होने की उम्मीद दिखाई दे रही है। वैसे भी कांग्रेस के पास दिल्ली तथा पंजाब में गंवाने के लिए बहुत कम है और पाने के लिए काफी कुछ। पता लगा है कि अब चंडीगढ़ सहित पंजाब की 14 सीटें 7-7 या 8-6 तथा दिल्ली की 7 सीटें 4-3 के अनुपात में ‘आप’ तथा कांग्रेस में बांटी जा सकती हैं और ‘आप’ के लिए हरियाणा में भी एक या दो सीटें छोड़ी जा सकती हैं।     
अकाली-भाजपा समझौता अभी नहीं
नि:संदेह राजनीति में कब क्या हो जाये, इसकी कुछ भी गारंटी नहीं। चाहे पिछले दिनों में अकाली दल तथा भाजपा के बीच 2024 के लोकसभा चुनाव में समझौता होने की संभावनाओं के बड़े संकेत दिये गये थे, फिर भी हमारी जानकारी के अनुसार अभी फिलहाल भाजपा तथा अकाली दल के बीच समझौते के आसार बहुत कम हैं। इसलिए अकाली दल तो सिखों में अपनी साख फिर से बहाल करने के भरसक प्रयास कर रहा है, क्योंकि अकाली नेतृत्व को यह एहसास हो चुका है कि जब किसी पार्टी की अपनी ताकत कमज़ोर पड़ती है तो दूसरे की नज़र में भी उसका महत्व कम हो जाता है। हम समझते हैं कि अकाली दल बादल इस कोशिश में कुछ न कुछ सफल अवश्य होगा क्योंकि पंजाबी तथा सिख यह समझते हैं कि हमें एक सिख पार्टी की ज़रूरत है, दूसरी ओर बादल विरोधी अकाली दल भी अपनी कोई पोज़ीशन नहीं बना सके। वैसे चर्चा है कि केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह अभी अकाली दल से समझौते के लिए तैयार नहीं हैं। इसलिए हम समझते हैं कि ‘इंडिया’ गठबंधन का टिकटों के विभाजन का समझौता होने पर यदि कांग्रेस तथा ‘आप’ भी समझौता हो जाता है तो अकाली-भाजपा में समझौते की सम्भावना बन सकती है, परन्तु फिलहाल समझौते की दिल्ली दूर दिखाई दे रही है। वैसे भी पंजाब भाजपा पर काबिज़ गुट तथा उनके केन्द्रीय भाजपा में बैठे ‘वकील’ जिनकी पंजाब के मामलों में सबसे अधिक मानी जाती है, भी अभी अकाली दल से समझौते के पक्ष में नहीं हैं।   
दुश्मनी लाख सही, खत्म न कीजै रिश्ता,
दिल मिले या न मिले, हाथ मिलाते रहिये।
(निदा फाज़ली)
आनंद मैरिज एक्ट की पृष्ठिभूमि 
खुशी का बात है कि जम्मू-कश्मीर में भी आनंद मैरिज एक्ट लागू कर दिया गया है। हम आशा करते हैं कि धीरे-धीरे यह पूरे देश के प्रत्येक राज्य में भी लागू हो जाएगा। हमारी जानकारी के अनुसार वर्तमान आनंद मैरिज एक्ट के आर्किटैक्ट राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व चेयरमैन तथा पूर्व राज्यसभा सदस्य तरलोचन सिंह हैं। यह ठीक है कि अंग्रेज़ी शासन के समय भी आनंद मैरिज को कानूनी मान्यता थी। यह आनंद मैरिज एक्ट 1909 के नाम से जाना जाता था, परन्तु स्वतंत्र भारत में इसका कोई कानूनी स्थान नहीं रही, अपितु 1952 में बना हिन्दू मैरिज एक्ट ही सिखों पर भी लागू था। उस समय के सिख सांसदों ने इस पर कोई आपत्ति नहीं की थी। वर्ष 2006 में तरलोचन सिंह ने राज्यसभा में एक प्राइवेट मैंबर बिल के रूप में आनंद मैरिज एक्ट का प्रारूप पेश किया था, जिसे संसद की कानूनी समिति को विचार हेतु भेज दिया गया था। दो वर्ष की बहस के बाद समिति ने इसे स्वीकृति दे दी थी, परन्तु अंत में 2012 में यह संसद के दोनों सदनों लोकसभा व राज्यसभा में सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया, परन्तु इसे लागू करने तथा इस संबंधी आवश्यक नियम-उपनियम बनाने का अधिकार राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया था। 
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