कृषि प्रसार सेवा को नई दिशा देने की ज़रूरत

कृषि प्रसार सेवा के लिए मुख्य रूप में कृषि तथा किसान प्रशिक्षण विभाग ज़िम्मेदार है। विभाग द्वारा ज़िला स्तर पर मुख्य कृषि अधिकारी तैनात किए गए हैं, जिनकी सहायता के लिए कृषि विकास अधिकारी उपलब्ध हैं। ब्लाक स्तर पर कृषि अधिकारी, कृषि विकास अधिकारी तथा उप-निरीक्षक तैनात हैं। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय भी अपने विशेषज्ञों के माध्यम से किसानों को नेतृत्व तथा ज्ञान उपलब्ध करवाता है। सरकार की योजनाओं, सब्सिडियों तथा अन्य कृषि संबंधी विषयों की जानकारी भी कृषि तथा किसान कल्याण विभाग के कर्मचारियों के माध्यम से किसानों तक पहुंचाई जाती है। कृषि विज्ञान केन्द्र जो ज़िले में एक स्थापित है, वह भी अनुसंधान करके तथा केन्द्र से जानकारी देकर किसानों की सहायता करता है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने ज़िलों में तथा अपने परिसर में भी कृषि प्रसार सेवा के लिए विशेषज्ञ निर्धारित किए हुए हैं। रेडियो, टी.वी. तथा मोबाइल तकनीक को भी किसानों तक कृषि विज्ञान पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, परन्तु इसके बावजूद कृषि अनुसंधान, नई तकनीक तथा फसलों की नई किस्मों के बीज दूरवर्ती गांवों में विशेष कर छोटे एवं सीमांत किसानों तक नहीं पहुंच रहे, जिस कारण विभिन्न गावों तथा एक ही गांव के किसानों के उत्पादन में अंतर है। दूर भीरत के गांवों में कृषि कर रहे छोटे किसानों को तो केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा दी जा रही सहायता, सब्सिडियां तथा ग्रांटें भी समय पर पूरी मात्रा में उपलब्ध नहीं होतीं, जिस कारण इस श्रेणी के किसान ये सुविधाएं लेने तथा इन योजनाओं के लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं। यही कारण है कि वे गरीबी तथा ऋण के बोझ तले दबा हुआ जीवन व्यतीत कर रहे हैं। किसानों की विभिन्न श्रेणियों के बीच अंतर बढ़ रहा है। अमीर अधिक अमीर होते जा रहे हैं तथा गरीब और गरीबी की ओर बढ़ते जा रहे हैं। कृषि प्रसार सेवा के ढांचे पर दृष्टिपात करने की आवश्यकता है। कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि इसका पुनर्गठन होना चाहिए। 
पंजाब के किसानों पर ऋण के बोझ तथा अन्य संकट बढ़ने की एक वजह कृषि प्रसार सेवा अपूर्ण होने के कारण इसका आवश्यकता के अनुसार प्रभावशाली न होना भी है। इसीलिए पंजाब के किसानों पर औसतन सभी राज्यों से अधिक ऋण 2.95 लाख प्रति किसान है। हरियाणा तथा गुजरात के किसान भी ऋण के पक्ष से पंजाब से बेहतर हैं, जहां क्रमश: प्रति किसान औसतन 2.11 लाख तथा 2.28 लाख है। कृषि विभाग के अधिकारियों को कृषि प्रसार सेवा से अतिरिक्त कृषि सामग्री, जिसमें कीटनाशक तथा बीज आदि शामिल हैं, के वितरण की देख-रेख करना, विभाग द्वारा आवश्यक आंकड़े तैयार करना तथा सब्सिडियों की निगरानी तथा उचित इस्तेमाल संबंधी कार्रवाई करना भी है। इसमें कृषि प्रसार सेवा हेतु निर्धारित कर्मचारियों का अधिक समय लग जाता है। 
सरकारी कृषि प्रसार सेवा के अप्रभावी होने के कारण अब निजी क्षेत्र के संस्थान यह सेवा करने के लिए इस क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। कई बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों ने गांवों में अपने कृषि विशेषज्ञ भी तैनात कर दिए हैं। कृषि विभाग तथा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों से अपेक्षित सम्पर्क न होने के कारण आम किसान व्यापारिक संस्थानों द्वारा दी जा रही सेवाएं ले रहे हैं। फसली घनत्व बढ़ने से फसलों की बीमारियों की भी भरमार है, जिसके लिए आम किसानों को इन बीमारियों के उपचार तथा रोक के लिए कीटनाशक दवाइयों के निर्माताओं तथा डीलरों की सलाह लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है। कई बार किसान निर्धारित मात्रा से अधिक कीटनाशक इस्तेमाल कर लेते हैं और गेहूं, धान में नदीन नाशकों द्वारा काम न करने के उपरान्त दो-तीन बार भी नदीन नाशक इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। इस संबंधी उन तक विशेषज्ञों की पहुंच शायद नहीं हो रही होती।
किसानों को ब्लाक मुख्यालय पर जाकर भी विशेषज्ञों की सलाह तथा नेतृत्व भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं होता। उनकी गेहूं व धान की सीधी कृषि के अतिरिक्त कृषि से संबंधित विषयों के संबंध में भी समस्याएं होती हैं, जिनका समाधान करने के लिए एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय के चक्कर लगाकर वे अपना समय गंवा देते हैं। कृषि प्रसार सेवा का दायरा तो बहुत विशाल होना चाहिए, जिसमें कृषि के अतिरिक्त मंडीकरण, बीमा, प्रोसैसिंग, ऋण तथा रोज़गार आदि के मामले शामिल हैं। वर्तमान ढांचे में तो बागबानी एवं सब्ज़ियों की काश्त का विभाग भी कृषि विभाग से अलग है। दोनों विभागों के ब्लाक एवं ज़िला स्तर के कार्यालय भी भिन्न-भिन्न स्थानों पर हैं। किसानों के जीवन तथा आर्थिकता में सुधार लाना प्रसार सेवा विधि के अधीन आना चाहिए। वर्तमान सरकारी प्रसार सेवा फसलों के उत्पादन पर ही अपना ध्यान केन्द्रित रखती है। इसका दायरा बहुत ही सीमित है। कृषि प्रसार सेवा किसान के आर्थिक विकास का एक क्रम होना चाहिए। किसानों का ही नहीं, अपितु गांवों में रह रहे दूसरे लोगों का जीवन स्तर ऊंचा करना भी कृषि प्रसार सेवा का उद्देश्य होना चाहिए। 
गत शताब्दी के छठे दशक में सब्ज़ इन्कलाब के आगाज़ से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों ने कृषि प्रसार सेवा को गांवों के विकास का केन्द्र समझते हुए ग्रामीण आर्थिक विकास तथा किसानों के जीवन के सभी पहलुओं संबंधी उन्हें सेवा उपलब्ध करने के लिए संबंधित विभागों के विशेषज्ञों के ब्लाक स्तर पर एकत्रित करके एक ही खिड़की पर सभी सेवाएं उपलब्ध करवाने का प्रबंध किया था। इस प्रबंध से स. कैरों ने पंजाब का कृषि उत्पादन दोगुणा करके दिखाया था। किसानों की आर्थिकता तथा कृषि में सुधार लाने के लिए कृषि कैरों माडल में समय के अनुसार कुछ बदलाव लाकर इस माडल को कृषि प्रसार सेवा प्रदान करने के लिए नई राह पर लाया जाए।