हरियाणा के आईएएस अधिकारियों का बढ़ रहा है राजनीति में रुझान

हरियाणा के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी रहे विनय सिंह यादव व पूर्व आईएएस अधिकारी वजीर सिंह गोयत कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। इससे पहले रिटायर आईएएस अधिकारी चंद्र प्रकाश सहित कई अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी कांग्रेस सहित अन्य दलों में शामिल हो चुके हैं। ये अधिकारी अब राजनीति में अपना हाथ आज़माने की सोच रहे हैं। इससे पहले आईएएस अधिकारी रहे बिजेंद्र सिंह अपनी नौकरी से त्यागपत्र देकर हिसार से भाजपा टिकट पर चुनाव लड़े और इस समय वह लोकसभा सांसद हैं। इसके अलावा डॉ. अभय सिंह यादव भी आईएएस की नौकरी छोड़कर भाजपा टिकट पर चुनाव लड़कर लगातार दूसरी बार विधायक बने हैं। हरियाणा में अनेक अन्य आईएएस व आईपीएस अधिकारी भी रिटायरमेंट के बाद चुनाव लड़ने की फिराक में हैं। ऐसा नहीं है कि आईएएस अधिकारी हरियाणा में पहली बार चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं बल्कि हरियाणा में कई आईएएस अधिकारी विधायक, सांसद व मंत्री भी रह चुके हैं।
 1987 में चौधरी देवीलाल ने आईएएस अधिकारी रहे किरपा राम पूनिया को चुनाव लड़वा कर विधायक बनवाया था और बाद में वे देवीलाल मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री भी रहे थे। इतना ही नहीं, रिटायर एचसीएस अधिकारी बहादुर सिंह ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी से चुनाव लड़कर लोहारू से विधायक और शिक्षा मंत्री बने। आईएएस अधिकारी पद से रिटायर होने के बाद आईडी स्वामी भाजपा टिकट पर करनाल से सांसद और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री पद पर रहे। आईडी स्वामी ने करनाल से पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय भजनलाल को हराया था और भजनलाल जीवन में सिर्फ एक बार चुनाव हारे थे। रिटायर आईएएस अधिकारी आरएस चौधरी, रिटायर डीजीपी डॉ. एमएस मलिक और रिटायर आईएएस अधिकारी बीडी ढालिया इनेलो संगठन में बड़े पदों पर हैं। हरियाणा में आने वाले दिनों में कुछ अन्य रिटायर अधिकारी भी चुनावों में ताल ठोकते हुए नजर आ सकते हैं। 

विवादों में उदयभान की टिप्पणी

हरियाणा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष उदयभान अक्सर अपनी टिप्पणियों को लेकर विवादों में आ जाते हैं। ताजा विवाद उनके द्वारा जाट समाज के प्रति की गई टिप्पणी को लेकर पैदा हुआ है। उदयभान की टिप्पणी से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा को भी बचाव की मुद्रा में आना पड़ा है। जहां विपक्षी दलों ने उदयभान की जाटों को लेकर की गई टिप्पणी बारे उनकी तीखी आलोचना की है, वहीं जाट समाज के प्रमुख नेताओं ने भी उदयभान की इस टिप्पणी को पसंद नहीं किया है। इससे पहले उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की टीएमसी सांसद द्वारा नकल उतारने के मामले में भी विवाद खड़ा हो गया था और इसे जाट समाज की प्रतिष्ठा के साथ जोड़कर जाटों को कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश की गई थी। अब उदयभान की टिप्पणी को लेकर भी कांग्रेस बचाव की मुद्रा में है। उदयभान ने इससे पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री मनोहर लाल को लेकर एक ऐसी ही टिप्पणी कर दी थी जिसको लेकर भाजपा नेता पूरे प्रदेश में उनके पुतले जलाते रहे थे। वह मामला बड़ी मुश्किल से ठंडा हुआ था और अब उदयभान ने एक बार फिर वैसी ही टिप्पणी कर दी है। कई बार लोग आपसी बातचीत करते समय हल्के-फुल्के ग्रामीण लहजे में कोई बात कह देते हैं तो ऐसी बात को बड़े नेता अक्सर सार्वजनिक मंचों पर कहने से गुरेज किया करते हैं, लेकिन ऐसी ही हल्की-फुल्की बात जब सार्वजनिक तौर पर कोई जिम्मेवार नेता बिना सोचे-समझे बोल देता है तो विवाद उठना स्वभाविक है। 

तेज हुईं राजनीतिक गतिविधियां

हरियाणा में राजनीतिक गतिविधियों ने तेजी पकड़ ली है। इस तेजी से साफ है कि सभी राजनीतिक दल आने वाले लोकसभा व विधानसभा चुनावों की तैयारियों में जुट गए हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल के अलावा भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष नायब सैनी पूरे प्रदेश में चुनावी तैयारियों को लेकर निरंतर बैठकें कर रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष पद से हटने के बाद भाजपा के राष्ट्रीय सचिव बने ओम प्रकाश धनखड़ ने भी अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं।
 कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा व उनके सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा लगातार जन आक्रोश रैलियां आयोजित कर रहे हैं। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव व पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला व किरण चौधरी ने भी प्रदेश में अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। कांग्रेस नेताओं की जनसभाओं में भारी भीड़ भी जुट रही है। इनेलो की ओर से अभय चौटाला और जजपा की ओर से डॉ. अजय चौटाला से लेकर दुष्यंत चौटाला तक और नैना चौटाला से लेकर दिग्विजय चौटाला तक पूरी तेजी से अभियान चलाए हुए हैं। नैना चौटाला की ओर से शुरू की गई हरी चुन्नरी चौपाल के मुकाबले में इनेलो ने सुनैना चौटाला के नेतृत्व में महिला आक्रोश सम्मेलन शुरू कर दिए हैं। इसके अलावा आम आदमी पार्टी की ओर से भी बदलाव यात्रा की गई थी, लेकिन यह यात्रा कहीं कोई ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाई। 

इनेलो के लिए निर्णायक होगा आगामी चुनाव

आने वाला 2024 का लोकसभा व विधानसभा चुनाव इनेलो के लिए निर्णायक सिद्ध होगा। इनेलो पिछले करीब 19 सालों से सत्ता से बाहर है। 2005 के विधानसभा चुनाव में इनेलो मात्र 9 सीटें जीत पाई थी। उसके बाद 2009 के विधानसभा चुनाव में इनेलो ने जबरदस्त वापसी करते हुए 31 सीटें जीती थीं। 2014 के लोकसभा चुनाव में इनेलो ने सिरसा व हिसार लोकसभा सीटें जीतीं, लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी 19 सीटें ही जीत पाई थी। 2018 में चौटाला परिवार में दरार आ गई और इनेलो सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला ने अजय चौटाला और उनके बेटों दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला को पार्टी से बाहर कर दिया और इसके बाद पार्टी भी पूरी तरह से टूट गई। पार्टी के ज्यादातर विधायक, पूर्व विधायक, पूर्व सांसद व पूर्व मंत्री भी इनेलो छोड़ गए। इनमें से कोई कांग्रेस में, कोई भाजपा में और कोई जजपा में चला गया। इनेलो से बाहर होने पर अजय चौटाला व दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी नाम से अपनी अलग पार्टी बनाई और जजपा ने 2019 के चुनाव में 10 सीटें जीती। बहुमत न मिलने पर भाजपा ने जजपा से मिलकर गठबंधन सरकार बनाई। उस चुनाव में इनेलो को मात्र एक सीट मिली और उसके ज्यादातर उम्मीदवार बुरी तरह से हार गए। 
तीन कृषि बिलों के विरोध में इनेलो के एकमात्र विधायक अभय चौटाला ने अपने विधायक पद से इस्तीफा दिया और फिर से ऐलनाबाद से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। दूसरी तरफ भाजपा सरकार में दुष्यंत चौटाला उप मुख्यमंत्री बने और उनकी पार्टी की ओर से देवेंद्र बबली व अनूप धानक भी सरकार में मंत्री बने। कई अन्य जजपा नेताओं को भी गठबंधन सरकार में प्रदेश स्तर पर चेयरमैन बनाया गया। पिछले करीब 19 सालों से सत्ता से बाहर चल रही इनेलो के लिए अगला लोकसभा व विधानसभा चुनाव उनके अस्तित्व के लिए बेहद महत्वपूर्ण चुनाव है। इनेलो नेता अभय चौटाला ने पार्टी की खोई राजनीतिक जमीन वापस पाने और फिर से इनेलो को प्रदेश की राजनीति की मुख्य धारा में लाने के लिए पूरे प्रदेश की पद यात्रा की थी। अब भी पार्टी संगठन को फिर से खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि अगले साल होने वाले लोकसभा व विधानसभा चुनाव में पार्टी को खोई ताकत मिल सके। उन्हें इस मामले में कितनी सफलता मिलेगी, यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन फिल्हाल सभी की नजरें इस पर लगी हुई हैं।

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