ट्रक-चालकों की हड़ताल के प्रभाव

नव-वर्ष के पहले ही दिन देश भर की ट्रक यूनियनों की ओर से ऑल इंडिया मोटर ट्रांस्पोर्ट कांग्रेस के आह्वान पर एकाएक घोषित की गई हड़ताल ने न केवल केन्द्र और राज्यों की सरकारों को चौंकाया है, अपितु देश के जन-साधारण को गम्भीर किस्म की चिन्ताओं में डाल दिया है। ट्रक-आप्रेटरों के साथ निजी बसों की यूनियनों द्वारा भी इस हड़ताल में शामिल हो जाने से सड़क-यातायात बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। इसके साथ ही कई राज्यों की रोडवेज़ बसों के चालकों द्वारा हड़ताल को समर्थन देने की घोषणा ने कोढ़ में खाज का काम किया है। असल में यह राष्ट्र-व्यापी हड़ताल पिछले दिनों केन्द्र सरकार द्वारा हाल ही में संसद में भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी.) में संशोधन करके इसे भारतीय न्याय संहिता-2023 बना कर, इसके ज़रिये हिट एंड रन मामलों में कठोर दण्ड एवं जुर्माने का प्रावधान किये जाने के विरुद्ध की गई है। इस संशोधन के अनुसार यदि कोई वाहन-चालक दुर्घटना के बाद सम्बद्ध पुलिस थाने अथवा मैजिस्ट्रेट को सूचित किये बिना, और घायल को मौका पर छोड़ कर फरार हो जाता है, तो उसे दस वर्ष तक की जेल और सात लाख रुपये तक के जुर्माने की सज़ा हो सकती है। देश भर के अनेक ट्रांस्पोर्ट संगठनों के संयुक्त मोर्चा की ओर से पहले इस हड़ताल को तीन दिवसीय घोषित किया गया था किन्तु मोर्चा के अध्यक्ष चौधरी वेदपाल ने चेतावनी दी है कि इस काले कानून को वापिस लिये जाने तक उनका यह विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा। उन्होंने अपनी मांगों को लेकर पूर्णरूपेण चक्का जाम किये जाने की भी चेतावनी दी है।
इस हड़ताल के कारण जहां देश भर में परिवहन और यात्री यातायात की गम्भीर समस्या उत्पन्न हुई है, वहीं पेट्रोल-डीज़ल और गैस-सिलेण्डरों की कमी का संकट गहरा जाने की स्थिति भी पैदा हो गई है। लोगों द्वारा इस अप्राकृतिक कमी की आशंका में पेट्रोल-डीज़ल का भण्डार करने की होड़ से इस संकट के और भी गम्भीर हो जाने का ़खतरा बन गया है। माल-परिवहन की हड़ताल के कारण घरेलू उपभोग की वस्तुओं की कमी होने और फल-सब्ज़ी आदि का संकट भी आसन्न सामने आकर खड़ा हो गया है। नि:संदेह इससे मूल्य-वृद्धि का ़खतरा भी उत्पन्न होने लगेगा। लम्बी दूरी की बसें न चलने से बड़े शहरों में भीषण सर्दी में यात्रीगण की परेशानियों को आसानी से समझा जा सकता है। एक से दूसरे राज्यों में सामान लाने-ले जाने वाले परिवहन के ठप्प होने से वस्तुओं की कमी उपजने की आशंका भी बलवती होते प्रतीत हुई है। पेट्रोल की कमी से जहां शहरों में कारों-स्कूटरों एवं ऑटो रिक्शा से आवागमन प्रभावित हुआ है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रैक्टर-ट्राली हेतु डीज़ल की अनुपलब्धता से कृषि-कार्यों के प्रभावित होने का भी बड़ा अन्देशा है। 
पंजाब में भी ट्रक आप्रेटर यूनियन द्वारा इस विरोध-प्रदर्शन में सक्रिय रूप से सम्मिलन के दृष्टिगत इस हड़ताल से स्थिति  बड़ी नाज़ुक हो जाने की आशंका है। हड़ताल के कारण कल रात भर से पेट्रोल पम्पों पर वाहनों की लम्बी-लम्बी कतारें लगी देखी गई हैं। इससे यातायात में जाम की स्थिति भी उत्पन्न हुई है। पंजाब ट्रक आप्रेटर यूनियन के प्रधान हैप्पी संधु ने प्रदेश सरकार से आग्रह किया है कि वह उनकी मांगों और उनकी पीड़ा को केन्द्र सरकार तक पहुंचाये। उन्होंने यह भी चेतावनी दी है कि केन्द्र सरकार यदि इस काले कानून को वापिस नहीं लेती अथवा इसमें संशोधन नहीं करती, तो पूरे देश में पूरी तरह से चक्का जाम किया जाएगा। उन्होंने सतलुज नदी पुल से यातायात अवरुद्ध करके पूरे सड़क यातायात को ठप्प करने की भी चेतावनी दी। पंजाब में माल यातायात से जुड़े निजी अथवा पंजीकृत वाहनों की संख्या लगभग तीन लाख है। इस हड़ताल से पूरे प्रदेश में जैसे सड़क यातायात ठप्प होकर रह गया है। जालन्धर से गैस अथवा पेट्रोल-डीज़ल लेकर दूसरे ज़िलों में जाने वाले ट्रक चालकों ने बेशक ज़िला प्रशासन से हुई सहमति के बाद, माल-वाहन बहाल रखने हेतु सहमति जताई है, किन्तु इस सहमति का राष्ट्र-व्यापी हड़ताल से कोई वास्ता नहीं है। हम समझते हैं कि इस समस्या के पीछे अविश्वास और अनिश्चितता दो बड़े कारण हैं। देश की संसद भारी बहुमत से इन कानूनों पर अपनी मुहर लगा चुकी है। नि:संदेह इस कानून में खामी तो है। सरकार को इस त्रुटि को दूर करके ट्रक-चालकों और उनकी यूनियनों की आशंकाओं अथवा संदेहों का निवारण करने के लिए उनके साथ मेज पर बैठकर वार्ता करनी चाहिए। तभी अविश्वास की वो भावना दूर होगी जिसके कारण ये लोग राष्ट्र-व्यापी संघर्ष करने हेतु बाध्य हुए हैं। ट्रक-चालकों के इस दावे में दम है कि वे अक्सर दुर्घटना-स्थल से अपनी जान की हिफाज़त हेतु ही भागते हैं। नि:संदेह इस समस्या का हल वार्तालाप से ही सम्भव हो सकता है। इस बात को केन्द्र सरकार और ट्रक-चालक संगठनों, दोनों को समझना होगा। इसी एक ढंग से देश को इस एक अति गम्भीर, आसन्न संकट से बचाया जा सकता है।