अपनी सीमाओं की रक्षा

बहुत समय व्यतीत हो चुका है। वर्ष 1962 में चीन ने भारत की सीमा पर हमला करके देश की बहुत-सी ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया था। आज तक भी यह ज़मीन चीन के कब्ज़े में है। उस समय भी उसने भारत के दबाव के कारण नहीं, अपितु अपनी इच्छा से इस हमले को रोका था। 60 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी न सिर्फ कब्ज़ा किया हुआ यह क्षेत्र चीन के कब्ज़े में ही है, अपितु इसके अलावा वह अरुणाचल प्रदेश तथा लद्दाख के एक बड़े भाग पर भी अपना हक जताता आ रहा है। यहां तक कि जब कोई बड़ा भारतीय नेता अरुणाचल प्रदेश में जाता है तो चीन की ओर से  उसी समय धमकी भरा रवैया अपनाने के बयान आ जाते हैं। यहीं बस नहीं, दोनों देशों की हज़ारों किलोमीटर लम्बी सीमाओं पर नियन्त्रण रेखा को लेकर भी सीमाओं पर तैनात चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों के साथ धमकी भरा रवैया धारण करके अक्सर टकराते रहते हैं।
सीमाओं के मामले को लेकर दोनों देशों में अब तक छोटे से लेकर व्यापक स्तर पर दर्जनों ही नहीं, अपितु सैकड़ों आपसी बैठकें हो चुकी हैं, परन्तु अपने अड़ियल स्वभाव के कारण चीन इस संबंध में टस से मस नहीं हुआ, अपितु इसकी बजाय उसने इस गम्भीर मामले को न सुलझाये जाने की नीति ही धारण की हुई है। अक्सर चीन की सैनिक टुकड़ियां सीमा पर तैनात तथा गश्त कर रही भारतीय सैनिक टुकड़ियों के साथ भिड़ती रहती हैं। पिछले छ: दशकों के दौरान राजनीतिक, व्यापारिक एवं सांस्कृतिक पक्ष से प्रतिनिधियों के माध्यम से दोनों देशों का आदान-प्रदान चलता रहा है।  इस समय के दौरान ही भारत के प्रधानमंत्री तथा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक-दूसरे के देशों का दौरा भी करते रहे हैं। चीन तथा भारत के आपसी व्यापार की स्थिति यह है कि आज व्यापक स्तर पर चीन का सामान भारतीय बाज़ारों में बिकता दिखाई दे रहा है। चीन ने इस संबंध में हमेशा दोहरी नीति अपनाई हुई है। एक तरफ वह भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान को हर तरह की सहायता देकर भारत के विरुद्ध उकसाता रहता है, दूसरी तरफ भारत के साथ बड़ा व्यापारिक भागीदार भी बना हुआ है।
वह अक्सर अपनी ताकत के दम पर भारत को आंखें दिखाता रहता है, जिसका उदाहरण इस घटना से मिलता है, जब वर्ष 2020 में पूर्वी लद्दाख में चीन के सैनिकों ने एक बार फिर अपने कड़े तेवर दिखाए थे। उस समय गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने सीमाओं पर गश्त करत रहे भारतीय सैनिकों को रोका था, जिस कारण हुए आपसी टकराव में जहां 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गये थे, वहीं चीन का भी भारी नुकसान हुआ था। उसके बाद चीनियों ने सीमाओं पर बड़ी संख्या में अपने सैनिक भेज कर वहां अपने मूलभूत ढांचे को बेहद मज़बूत करना शुरू कर दिया था। भारत ने भी सीमाओं पर अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी थी। आज तक भी इस मामले पर दोनों देशों में तनाव चला आ रहा है।
भारत ने अब इस संबंध में कड़ी नीति अपना ली है। पिछले दिनों इस संबंध में सम्बोधित करते हुये भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीन को कड़ा सन्देश देते हुये कहा है कि अब भारत इस मामले पर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की उस समय अपनाई गई चीन संबंधी नरम नीति के अनुसार नहीं चलेगा, क्योंकि पंडित जी ने दोनों देशों के संबंधों में चीन को पूरी मान्यता दी हुई थी। उन्होंने ही उस समय ‘हिन्दी-चीनी भाई-भाई’ का नारा लगाया था, परन्तु चीन ने पंडित जी के भावुक रवैये को दृष्टिविगत करते हुये वर्ष 1962 में सीमांत मसले को लेकर भारत पर हमला कर दिया था। अब भारत का रवैया इस संबंध में कड़ा हो चुका है। उसने स्वयं को चीन के साथ हर तरह मुकाबला करने के लिए तैयार करना शुरू कर दिया है। इसी नीति के तहत ही भारत की ओर से चीन के साथ लगती सीमाओं पर सड़कों सहित अन्य मूलभूत ढांचे को हर तरह से मज़बूत किया जा रहा है। हम समझते हैं कि चीन को उसके अपने रैवये के अनुसार जवाब दिया जाना ज़रूरी है। ऐसी नीति ही भारत की ओर से  अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर भी अपनाये जाने की ज़रूरत होगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द