स्वामी विवेकानंद का पुस्तक मोह

बच्चो! यह बात 1890 ई. की है। स्वामी विवेकानंद उन दिनों में मेरठ शहर में ठहरे हुए थे। उस समय उनकी आयु 26 वर्ष के लगभग थी। उनको पढ़ने का बहुत शौक था। उनका एक शिष्य अखंडनाथ प्रतिदिन शहर की लाइब्रेरी में से उनको एक पुस्तक लाकर देता था। प्रतिदिन वह पुरानी किताब वापिस करता और नई पुस्तक  ले आता था। लाइब्रेरियन को संदेह हो गया कि कोई व्यक्ति चार-पांच सौ पन्नों की एक पुस्तक  प्रतिदिन नहीं पढ़ सकता। उसने अपना संदेह अखंडनाथ के साथ सांझा किया और कहा कि स्वामी विवेकानंद बिना पढ़े ही पुस्तकें वापिस कर देते हैं। अखंडनाथ ने यह बात स्वामी विवेकानंद के साथ सांझी की। स्वामी जी लाइब्रेरियन के पास गये और कहा कि उन्होंने जो 15 दिनों में 15 पुस्तकें पढ़ने के लिए ली थीं, उनमें से कोई प्रश्न पूछो। लाइब्रेरियन जो खुद भी एक अच्छा पढ़ा-लिखा विद्वान था, उसने इन किताबों में से बहुत सारे प्रश्न स्वामी जी से पूछे। उत्तर सुनकर वह हैरान रह गये और उसको विश्वास हो गया कि स्वामी विवेकानंद ज़रूर पुस्तकें पढ़ने में रूचि रखते हैं। लाइब्रेरियन ने स्वामी जी जैसा पाठक पहले कभी नहीं देखा था।
एक बार किसी बच्चे ने स्वामी विवेकानंद से पूछा कि वह जल्दी-जल्दी पुस्तकें कैसे पढ़ लेते हैं तो स्वामी जी ने उत्तर दिया कि बच्चा, पहले अक्षर-अक्षर पढ़कर शब्द पढ़ता है, फिर उसको पूरा शब्द पढ़ने का अभ्यास हो जाता है और आसानी से वह पूरा शब्द पढ़ने के योग्य हो जाता है। इसी प्रकार यदि पाठक अभ्यास करता रहे तो लग्न और एकाग्रता से काम लेते हुए एक बार देखने से पूरा पन्ना पढ़ना सीख जाता है।एक बार स्वास्थ्य खराब होने के कारण स्वामी विवेकानंद बैलूर मट्ठ में ठहरे हुए थे। प्रसिद्ध विद्वान और समाज सेवी श्री शरत चंद्र चक्रवर्ती उनको देखने के लिए आए। स्वामी जी के कमरे में एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका (महाकोष) के सैट की 20 पुस्तकें देखकर वह हैरान हो गये। उन्होंने कहा कि सारी ज़िंदगी में भी यह मोटी-मोटी बारीक अक्षरों में लिखी पुस्तकें पढ़ना सम्भव नहीं है। स्वामी जी ने कहा कि नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। मैंने दस पुस्तक पढ़ ली हैं, इनमें से आप कुछ भी पूछ कर मुझे परख सकते हो। उन्होंने एक पुस्तक में से कितने ही प्रश्न स्वामी जी से पूछे। स्वामी जी ने सभी प्रश्नों के सही-सही उत्तर दिए और उत्तरों में हू-ब-हू उन्हीं शब्दों का उपयोग किया जो किताबों में लिखे हुए थे।
स्वामी विवेकानंद जी अपने शिष्यों का विश्वास बढ़ाने के लिए अकसर कहा करते थे कि संयम और स्वै-काबू, अभ्यास और एकाग्रता का उपयोग करके हर चीज़ आसानी के साथ कंठ की जा सकती है।
-गांव और डाक : खोसा पांडो, ज़िला मोगा।