चीन की एक और चुनौती

दुनिया में इस समय दो बड़ी जंगें लगी हुई हैं। पश्चिमी एशिया में इज़रायल और हमास की जंग बड़े खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुकी है। इज़रायल की हिमायत पर अमरीका जैसी महाशक्ति उतरी हुई है। दूसरी तरफ हमास के साथ बहुत सारे अरब देश खड़े दिखाई दे रहे हैं। चाहे इस जंग की शुरुआत गाज़ा में शासन संभाले बैठे हमास ने इज़रायल पर हमला करके की थी लेकिन जिस प्रकार गाज़ा पट्टी में घुस कर इज़रायली सैनिक लगातार बमबारी करके तबाही कर रहे हैं, उससे बहुत से फिलिस्तीनी, बड़ी संख्या में महिलाओं और बच्चों सहित मारे जा रहे हैं। इससे दुनिया भर में इज़रायल के विरुद्ध गुस्सा पैदा हो रहा है। 
इसी प्रकार रूस द्वारा अपने पड़ोसी देश यूक्रेन पर किये गये हमले में बड़ी तबाही हो रही है। चाहे यह तबाही का दृश्य यूक्रेन में देखा जा रहा है लेकिन अमरीका सहित बहुत से पश्चिमी यूरोप के देशों की हथियारों की मदद मिलने के कारण यूक्रेन ने मैदान छोड़ने से इन्कार कर दिया है। इससे भविष्य में और तबाही होने की सम्भावना बन गई है। इसके साथ ही ताईवान के मामले पर भी चीन के तेवर तीखे होते जा रहे हैं। साल 1949 के बाद ताईवान ने मुख्य धरती चीन से अलग होकर अपने अलग अस्तित्व का ऐलान कर दिया था। इस हेतु अमरीका ने उसकी पूरी मदद की थी, लेकिन चीन ने कभी भी ताईवान को एक अलग देश नहीं माना। चीनी शासकों ने हमेशा इसको अपना एक हिस्सा कहते हुए इस पर कब्ज़ा करने की नीति अपनाए रखी है। इसी तरह चीन का हिस्सा रहे हांगकांग में 100 साल के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने अपना अधिकार वापिस ले लिया था, और इसको चीन के हवाले कर दिया था। हांगकांग ने उसके बाद भी अपनी अलग हस्ती कायम करने के लिए संघर्ष जारी रखा हुआ है। यहीं बस नहीं, चीन की विस्तारवादी नीतियों के कारण आज हिन्द-प्रशांत क्षेत्र बड़े तनाव में से गुज़र रहा है, क्योंकि चीन दक्षिण चीन सागर के अधिकतर हिस्से पर अपना अधिकार समझता है, जिससे दक्षिण एशिया के बहुत से देश प्रभावित हो रहे हैं। आज इसी बात को लेकर फिलिपाईन, वीयतनाम, कंबोडिया, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, ब्रूनी और इंडोनेशिया आदि देश चीन के व्यवहार से पूरी तरह नाराज़ हैं। आस्ट्रेलिया, अमरीका, जापान और भारत ने भी चीन के इस व्यवहार के विरुद्ध ‘क्वाड’ नामक एक संगठन बनाया हुआ है, जो हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर में अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार समुद्र द्वारा खुले व्यापार और यातायात के मुद्दे पर चीन के खिलाफ अपने आप को मज़बूत कर रहा है।
इसी समय के दौरान जहां चीन में शी-जिनपिंग के नेतृत्व वाली तानाशाही सरकार का समय लम्बा और मज़बूत होता जा रहा है, वहीं ताईवान ने भी अपने लोकतांत्रिक ढांचे को मज़बूत किया है। पिछले 8 वर्ष से वहां डैमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी की सरकार रही है जिसको चीन विरोधी पार्टी कहा जाता है। इसी माह हुए चुनावों में एक बार फिर इस पार्टी को जीत प्राप्त हुई है। इसके नेता लाई चिंग टी. राष्ट्रपति चुने गये हैं। इस पार्टी ने हमेशा चीन के साथ मिलने का विरोध किया है, जबकि दूसरी दो पार्टियां को मिन तैंग पार्टी, और ताईवान पीपल्ज़ पार्टी चाहे ताईवान के अलग अस्तित्व के पक्ष में हैं, लेकिन चीन की तरफ उनका रवैईया बातचीत और मेलमिलाप वाला रहा है। डैमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी को साल 2016 में, फिर 2020 में और अब तीसरी बार जिता कर अधिकतर ताईवान निवासियों ने चीन को यह स्पष्ट संदेश दिया है कि उससे मिलने के लिए वे बिल्कुल तैयार नहीं हैं। चीन ने पिछले समय में ताईवान की घेराबंदी के लिए बड़ी कार्रवाइयां की हैं। उसने अपने समुद्री बेड़े और सैनिक हवाई जहाजों के साथ चारों तरफ से इस टापू को घेरने के लिए कई बार योजनाबंदी की है, जिसका विस्तार लगातार मिलता रहता है। दूसरी तरफ ताईवान ने अपने बलबूते पर बड़ा विकास किया है।
आज विश्व के बहुत से देशों के साथ इसका व्यापारिक मेलमिलाप गहरा होता जा रहा है। भारत के साथ भी इसका पिछले दशकों में व्यापार बढ़ा है। साल 2001 में दोनों देशों का व्यापार 1.19 बिलियन डॉलर (98 सौ 95 करोड़ रुपये) था जो साल 2022 में बढ़कर 8.45 बिलियन डॉलर (70 हज़ार दो सौ पैंसठ करोड़ रुपये) हो चुका है। आज ताईवान की 250 के लगभग बड़ी कम्पनियां भारत में स्थापित हैं, जिनकी कुल मिलाकर पूंजी 4 बिलियन डॉलर (33 हज़ार दो सौ 63 करोड़) बनती है। हिन्द प्रशांत सागर की सुरक्षा के लिए बने अलग-अलग संगठनों में ताईवान भी बराबर का हिस्सेदार बना हुआ है। ऐसी सूरत में यदि चीन इस टापू पर हमलावर होता है तो इससे एक और बड़ी जंग शुरू होने की सम्भावना बन जाएगी, जो दुनिया के लिए एक और बड़ी तबाही का संदेश होगी। नि:संदेह ये चल रही और निकट भविष्य की अन्य संभावित जंगें विश्व के लिए एक बड़ी तबाही का संदेश बन सकती हैं।
             


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द